अधीर की डबल हैट्रिक की राह में यूसुफ पठान, पहली बार बहरमपुर में TMC के इस दांव की चर्चा

Khoji NCR
2024-05-08 09:12:43

पश्चिम बंगाल की बहरमपुर लोकसभा सीट पर चौथे चरण में चुनाव है। यहां दिग्गज कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने क्रिकेटर यूसुफ पठान को उतारा है। इस सीट में लगभग 52 फ

सदी मुस्लिम आबादी है। भाजपा ने निर्मल साहा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। बंगाल में इस बार दो क्रिकेटरों की सियासी साख दांव पर है। तृणमूल कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले अभिषेक बंदोपाध्याय राजनीति में अभी नए हैं और अन्य युवाओं की तरह वह भी - चलो कुछ कर के दिखा देते हैं– टाइप फैसले लेते हैं। अरब सागर के किनारे वाले क्रिकेटर यूसुफ पठान को बंगाल की खाड़ी के पास बहरमपुर में लड़ा देने का आइडिया भी उन्हीं का था। ऐसे हुई यूसुफ की राजनीति में इंट्री अभिषेक बंदोपाध्याय ने यूसुफ से टाइम लेने की कोशिश की। कई संदेश भिजवाए। मिलने की कोशिश की। कई प्रयास के बाद सफल रहे। मिलने में और मनाने में भी। फिर गोपनीयता रखी गई। कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में घोषणा हुई और भारतीय और आईपीएल की केकेआर टीम से खेल चुके यूसुफ अपनी राजनीतिक पारी खेलने पहुंच गए। बंगाल में दो क्रिकेटर चुनाव मैदान में बंगाल में इस बार दो क्रिकेटर चुनाव लड़ रहे। दुर्गापुर से कीर्ति आजाद, बहरमपुर से यूसुफ। युसूफ तो बंगाल की राजनीति के ब्रेट ली कहे जाने वाले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के मुकाबले उतरे हैं। 1999 से पांच बार अधीर रंजन यहां से जीते हैं। इस बार जीतेंगे तो डबल हैट ट्रिक होगी। पहली बार मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी 52 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इस क्षेत्र में उनके खिलाफ पहली बार कोई मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा है। तृणमूल की रणनीति है मुस्लिम वोट के सहारे ऐसे दुश्मन को परास्त करना, जो बहुत बोलता है। बंगाल की राजनीति में दो ही ऐसे नाम हैं, जिन्हें सुनकर ममता को गुस्सा आता है। एक अधीर और दूसरा भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी। अधीर अभिषेक को ‘खोका बाबू’ कहते हैं। बांग्ला में छोटे बच्चे को खोका कहते हैं। और राजनीति के इसी बच्चे ने अधीर रंजन को लंबा स्पेल लेकर गेंद डालने पर मजबूर कर दिया है। पहली बार अधीर को जनता को विकास और रोजगार समझाना पड़ रहा है। अधीर के समर्थकों के लंबे तर्क इस बार फार्म में कौन है ? प्रत्याशी के तौर पर निश्चित तौर पर अधीर। उनके समर्थकों के पास उनकी प्रशंसा में लंबे-लंबे तर्क हैं। बाहरी नहीं हैं। खोजने पर मिलते हैं। लड़ाकू हैं। फ्रंट में आकर खेलते हैं। लोगों के दुख-सुख में काम आते हैं। बड़े नाम हैं। टीएमसी ने सजाई फील्डिंग उधर, तृणमूल ने टीम और फील्डिंग अच्छी सजाई है। तृणमूल का बंगाल में शासन है। संगठन के लिहाज से सबसे मजबूत पार्टी है। कुछ योजनाएं लोगों को फायदा पहुंचा रहीं। मुस्लिम समुदाय के साथ खड़ी है। लंबे समय तक राजनीति कर रहे अधीर के विरोधी भी कम नहीं हैं। कई लोग अपनी कहानी सुनाते हैं कि उनकी वजह से थाना-पुलिस हुआ और खोजने पर नहीं मिले। ऐसे लोगों की सहानुभूति भाजपा के साथ भी है और ममता के साथ भी। बाहरी के मुद्दे पर सियासत गर्म तृणमूल पिछले लोकसभा चुनाव का गणित देख रही। मात्र 81 हजार वोट से अधीर जीते थे। यूसुफ को बांग्ला नहीं आती। वह हिंदी बोलते हैं। कहते हैं तृणमूल ने मौका दिया है, तो यहां के लोगों की आवाज संसद में पहुंचाऊंगा। अधीर लोगों को बता रहे कि कहां खोजने जाइएगा। चुनाव बीतने के बाद वह नहीं मिलेंगे। यूसुफ पठान की ये दलील यूसुफ की दलील है कि प्रधानमंत्री गुजरात से आकर बनारस में लड़ सकते हैं, तो मैं बहरमपुर में क्यों नहीं? अधीर कहते हैं सब भाजपा के इशारे पर हो रहा। नौ घंटे तक ईडी की पूछताछ के बाद ही ‘खोका बाबू’ को मुझे हराने का असाइनमेंट मिला। देखिएगा एक दिन अभिषेक बंदोपाध्याय बंगाल में भाजपा के सीएम फेस होंगे। कांग्रेस-माकपा कर रही ये प्रचार मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्स और कांग्रेस-माकपा खुलकर प्रचार कर रही कि ममता बनर्जी अंदर ही अंदर भाजपा के साथ मिली हुई हैं, अपने दल के भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं को बचाने के लिए। संशय का माहौल है। यह संशय वोट को बांटेगा। यहां से भाजपा के उम्मीदवार निर्मल साहा के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यंमत्री आदित्यनाथ ने रैली की है। साहा खुश हैं कि तृणमूल कांग्रेस ने सेलिब्रेटी क्रिकेटर को उतारा है। अल्पसंख्यक मुस्लिम यहां बहुसंख्यक हैं। उनका वोट बंटा, तो भाजपा का अपना वोट उसे मिलना ही है। वैसे भी आम जनता तृणमूल के भ्रष्टाचार से तंग आ गई है। चैलेंज देना आदत औपचारिक तौर पर तो यही सच है कि अधीर, यूसुफ के खिलाफ लड़ रहे। वास्तव में उनकी सीधी लड़ाई उनके शब्दों में ‘पीसी’ (बुआ) और ‘खोका बाबू’ (भतीजा) से है। जंगीपुर से प्रणब मुखर्जी पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव में जीते थे, तो उसका श्रेय अधीर रंजन को जाता है। कांग्रेस ने उन्हें संसद में पार्टी का नेता बनाया था। चैलेंज देना उनकी आदत है। हारे तो राजनीति छोड़ देंगे, टाइप चैलेंज वह कई बार कर चुके हैं। फिर वह कहने लगते हैं कि हारेंगे भी नहीं और राजनीति कैसे छोड़ सकते हैं, यही तो उन्हें आता है।

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