12 साल बाद कन्नौज सीट से चुनाव में अखिलेश यादव, भाजपा को विकास तो सपा को PDA पर भरोसा; इत्रनगरी में किसकी फैलेगी खुशबू?

Khoji NCR
2024-05-01 08:50:19

अखिलेश 12 वर्ष बाद फिर इस सीट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं। इससे भाजपा को चुनौती मिलना तय है। भाजपा को विकास राष्ट्रवाद और रामकाज के सहारे फिर विजयश्री का भरोसा है। सपा ने पीडीए (पिछड़ा दलित और

ल्पसंख्यक) का नारा दिया है। हालांकि यहां उसकी जीत का आधार हमेशा से एमवाई (मुस्लिम व यादव) ही रहा है। यूं तो इत्र नगरी कन्नौज सम्राट हर्षवर्धन और महाराजा जयचंद के काल से ही राजनीति का केंद्र रही है, लेकिन समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने साल 1967 में सीट गठन के बाद जब यहां से पहला चुनाव लड़ा और जीता तो यह फिर चर्चा के केंद्र में आ गई। खुद को लोहिया का अनुयायी कहने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, उनके पुत्र अखिलेश यादव और बहू डिंपल ने भी यहां से प्रतिनिधित्व किया। 2014 की नरेंद्र मोदी की लहर में भी सपा के पास रही यह सीट 2019 में राष्ट्रवाद के ज्वार में भाजपा के हाथ आ गई। अखिलेश 12 वर्ष बाद फिर इस सीट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं। इससे भाजपा को चुनौती मिलना तय है। भाजपा को विकास, राष्ट्रवाद और रामकाज के सहारे फिर विजयश्री का भरोसा है। सपा ने पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का नारा दिया है। हालांकि, यहां उसकी जीत का आधार हमेशा से एमवाई (मुस्लिम व यादव) ही रहा है। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सोची-समझी लंबी रणनीति के तहत कन्नौज लोकसभा सीट से दावेदारी ठोक दी है। सपा ने मोदी बनाम अखिलेश और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश है। लोग भारत के विदेश में बढ़े मान और प्रदेश की कानून एवं व्यवस्था के लिए सरकार को जमकर सराहते हैं। वहीं, कन्नौज वालों के प्रति अखिलेश के सहज व्यवहार और लगाव के भी लोग कायल हैं। हालांकि, इस सीट का इतिहास रहा है कि आखिर में मतदान जातीय समीकरणों पर आकर टिक जाता है। मकरंद नगर रोड पर प्रोविजन स्टोर और पान की दुकान चलाने वाले मनीष चौरसिया बेरोजगारी के मुद्दे को नकारते हैं। वह कहते हैं कि अगर रोजगार नहीं है तो आखिर युवाओं के हाथों में एक-एक लाख की बाइक कहां से आ जाती है? निजी कंपनी में नौकरी करने वाले शिवम का मानना है कि विपक्ष जरूर बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसका कोई असर नहीं होने वाला। उनके मुताबिक, बेरोजगार वही है, जो सिर्फ सरकारी नौकरी ही करना चाहता है। ठठिया में मिले शिवेंद्र अग्निहोत्री भी जिले में सपा और देशभर में भाजपा के विकास की प्रशंसा करते हैं। कन्नौज में कितने मतदाता हैं? कन्नौज में करीब 17 लाख से अधिक हिंदू और ढाई लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। हिंदुओं में ढाई लाख यादव, दो लाख क्षत्रिय, दो लाख लोधी, पौने दो लाख ब्राह्मण, पाल और शाक्य ढाई लाख, अनुसूचित जाति के करीब तीन लाख मतदाता हैं। साल 1998 से 2014 तक ज्यादातर यादव और मुस्लिम के साथ लोध, शाक्य और पाल सपा को वोट करते आए। 2014 की मोदी लहर में एमवाई और लोध, शाक्य व पाल गठजोड़ कमजोर पड़ गया। डिंपल यादव तो विजयी रहीं पर जीत का अंतर काफी कम रहा। 2019 लोकसभा चुनाव में यादव और मुस्लिम को छोड़कर बाकी जातियों में अपनी पैठ गहरी करके भाजपा के सुब्रत पाठक ने सपा से यह सीट छीन ली। वह इस बार भी चुनाव मैदान में हैं। कन्नौज के सियासी समीकरण में माना जाता है कि बहुसंख्यकों के साथ छोटी जातियों को जिसने जोड़ लिया, चुनाव में वही जीतता है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव से ही यादव और मुस्लिमों के अलावा अन्य जातियों में गहरी पैठ बनाई है। यादवों के प्रभावशाली स्थानीय नेताओं को भी भाजपा ने जोड़ा है।

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