सोहना,(उमेश गुप्ता): एनसीआर क्षेत्र में शामिल सोहना में कही रिसोर्ट तो कही वाटिकाएं, कही बार तो कही मोबाइल टावर, कही रेस्टोरेंट तो कही पीजी आदि बिना किसी ट्रेड लाइसेंस के चल रहे है जबकि सरकार द्
वारा लागू नियमों व हिदायतों के अनुसार सोहना नगरपरिषद में इन सभी का रजिस्टे्रशन होना चाहिए ताकि शासन-प्रशासन की जानकारी में रहे कि सोहना और आसपास क्षेत्र में कितने रिसोर्ट, कितनी वाटिकाएं, कितने मोबाइल टावर, कितने रेस्टोरेंट और बार चल रहे है। यदि मुख्यमंत्री मनोहर लाल सरकार इन सभी का नगरपरिषद के माध्यम से रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बनाए तो ना केवल इनकी सही से गिनती हो सकेगी, साथ ही नगरपरिषद को भारी राजस्व की प्राप्ति होगी और उपरोक्त में से कोई भी सरकार द्वारा निर्धारित कायदे-कानून का उल्लंघन भी नही कर पाएगा क्योकि अब तक यही देखने में आ रहा है कि रिसोर्ट हो चाहे वाटिका, मोबाइल टावर हो चाहे नामी-गिरामी रेस्टोरेंट या फिर जगह-जगह मनमर्जी से चल रहे पीजी हाउस इनके नगरपरिषद में पंजीकृत ना होने और प्रदूषण रोकथाम विभाग, पुलिस प्रशासन, आबकारी एवं कराधान विभाग समेत किसी भी संबंधित विभाग के सही से ध्यान ना देने के कारण क्षेत्र में चल रहे रिसोर्ट, वाटिका, मोबाइल टावर, रेस्टोरेंट और बार, पीजी हाउस आदि संचालक ना केवल मोटी कमाई कर जमकर चांदी कूट रहे है बल्कि एकाध को छोडक़र सरकार की आंखों में धूल झोकते हुए पूरी ईमानदारी से अपनी हो रही आमदनी पर पूरा टैक्स भी नही भर रहे है। कृषि योग्य भूमि पर रिसोर्ट चलाकर कमर्शियल गतिविधियां संचालित की जा रही है तो होटलों और रेस्टोरेंटों में बिना लाइसेंस अनुमति के देर रात तक शराब, बीयर आदि पीने-पिलाने का दौर आम है। वाटिकाओं में देर रात तक तेज आवाज में बजने वाले डीजे ना केवल ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे है बल्कि रोगियों के दर्द को ज्यादा बढ़ा रहे है। देखने में आया कि विवाह-शादियों के दौरान भी वाटिका संचालकों और डीजे चलाने वालों के आगे निर्धारित नियम कोई मायने नही रखते। सोहना शहर की कई वाटिकाओं में तो पार्किंग स्थल की सुविधा तक उपलब्ध नही है। जब भी इन वाटिकाओं में कोई विवाह, शादी, छोटे-बड़े आयोजन होते है तो गाड़ी खड़ी करने के नाम पर पूरे सर्विस रोड पर कब्जा हो जाता है। ऐसे में जरूरतमंद लोग चाहकर भी सर्विस रोड से नही निकल पाते है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में जगह-जगह लोगों के विरोध के बावजूद आबादी क्षेत्र में मोबाइल टावर लगे है लेकिन कही, कोई अधिकारी इस तरफ ध्यान नही दे रहा है। ऐसा ही नजारा यहां जगह-जगह खुले पीजी हाउसों में देखने को मिल रहा है। ऐसे धंधे संचालित करने वालों में से शायद ही किसी के पास फायर एनओसी, हैल्थ एनओसी, आक्यूपेशन प्रमाणपत्र समेत कोई भी एनओसी मुश्किल से मिलेगी। ट्रेड लाइसेंस ना लिए जाने से इन्हे हैल्थ की एनओसी नही मिल सकती तो ऐसे में यहां परोसे जाने वाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की निगरानी रखने वाला भी कोई नही है। लाइसेंस ना लिए जाने से संबंधित विभाग को राजस्व चोरी कर लाखों रुपए का मोटा चूना लगाया जा रहा है लेकिन शासन-प्रशासन आंखे मूंदे हुए है।
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