खेलों में महिलाओं को पहनावे के चुनाव का हक, खेल का मैदान हो या घर का आंगन- बहस जारी

Khoji NCR
2021-07-30 09:19:55

। टोक्यो ओलिंपिक के प्रशिक्षण सत्र में जर्मन महिला जिम्नास्ट टीम ने फुल-लेंथ बाडी सूट पहना और कहा कि प्रतियोगिता में भी इसे ही चुना जा सकता है। दरअसल टीम का मकसद यह दिखाना था कि पहनावे का चुना

हमारा होगा। इसी टीम का हिस्सा जिम्नास्ट सारा वास के मुताबिक हम दिखाना चाहते हैं कि हर महिला, हर इंसान को तय करना चाहिए कि क्या पहनना है?दरअसल खेल का मैदान हो या घर का आंगन, औरतों के पहनावे को लेकर बहस जारी है। इसी के चलते आज भी पहनावे से जुड़े नियम महिलाओं को कई क्षेत्रों का हिस्सा बनने से रोकते हैं। काबिलियत और रुचि के बावजूद किसी खास क्षेत्र में दस्तक देने में बाधा बनते हैं तो घरों में पहनावे से जुड़े नियम बंधन से लगते हैं। हमारे देश में ही नहीं दुनियाभर में ड्रेस कोड से जुड़ी असहजता औरतों के कदम ही पीछे नहीं खींचती, बल्कि यह उनकी सहूलियत से जुड़ा मामला भी है। खेल के समय तो सबसे ज्यादा सहजता की दरकार होती है, पर यह भी सच है कि खेलों की दुनिया में महिलाओं के स्पोर्ट्सवियर को लेकर कई नियम आज भी मौजूद हैं। बीते दिनों नार्वे की बीच हैंडबाल टीम पर यूरोपीय हैंडबाल फेडरेशन ने मैच में बिकिनी बाटम्स की जगह शार्ट्स पहनने को लेकर जुर्माना लगाया था। फेडरेशन ने इसका कारण यूनिफार्म के नियम को तोड़ना बताया था। नार्वे में आमजन से लेकर खेल मंत्री तक ने फेडरेशन द्वारा जुर्माना लगाए जाने को लेकर विरोध जताया। इस विषय पर खूब विमर्श हुआ कि खेल के मैदान में महिला खिलाड़ी असुविधाजनक पहनावे के बजाय सहजता और सहूलियत के मुताबिक ड्रेस क्यों नहीं पहन सकतीं? क्यों कई खेलों के ड्रेस कोड के साथ एक खास सोच जुड़ी है? यह भी एक तरह का लैंगिक भेदभाव ही है, जो महिला खिलाड़ियों के लिए असुविधा का कारण बनता है। गौरतलब है कि साल 2018 में राष्ट्रमंडल खेलों के उद्घाटन समारोह में भारतीय महिला खिलाड़ियों के दल ने भी साड़ी की जगह ब्लेजर और पैंट पहनने की शुरुआत की थी। तब भारतीय ओलिंपिक संघ ने खिलाड़ियों के प्रतिनिधियों से सलाह-मशविरे के बाद यह फैसला लिया। गौरतलब है कि भारतीय महिला एथलीट अंजू बाबी जार्ज ने भी कहा था कि ओलंपिक खेलों में भारतीय दल में महिला खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व करते समय साड़ी पहनकर चलते हुए उन्हें काफी दिक्कत हुई थी। ऐसे में तीन साल पहले यह कदम महिला खिलाड़ियों के पहनावे को लेकर परंपरागत नियमों से अलग उनकी सहजता और सहूलियत को देखकर उठाया गया था। ध्यान रहे कि सहज सा लगने वाला यह कदम महिला खिलाड़ियों की सहूलियत से जुड़ा एक बड़ा बदलाव था। अब जर्मन महिला जिम्नास्ट टीम द्वारा दिया गया यह संदेश कई मोर्चो पर औरतों की बेहतरी से जुड़ा है।

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