किन्नू-मौसमी घोल रहे किसान की जिंदगी में रस

Khoji NCR
2020-12-10 07:50:50

नहरी पानी की कमी। बारिश समय पर न होना। फसल पर प्राकृतिक आपदा। परंपरागत खेती में आय कम। ये कारण है, जिनके चलते किसान की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा जाती है। ऐसे में कुछ किसान ऐसे भी हैं जो हौसला नहीं खोत

े। ये किसान बदलते हैं तो सिर्फ रास्ता। ऐसे ही एक किसान हैं खरकड़ी बावनवाली के सतवीर सिंह। सतवीर ने हालातों से समझौता किए बिना अपना आमदनी का जरिया बदल डाला। किसान सतवीर ने अपने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए पांच साल पहले तीन एकड़ भूमि में किन्नू और मौसमी का बाग लगाया। इससे परंपरागत कृषि के साथ अतिरिक्त आमदन शुरू हो गई। लीक से हटकर कुछ करने के जज्बे ने किसान सतवीर को हरियाणा के साथ-साथ निकटवर्ती राजस्थान के आस- पास के गांवों में अलग पहचान भी दिलाई। सतवीर सिंह ने बताया कि रेतीली जमीन और नहरी पानी की हमेशा कमी के कारण परंपरागत खेती में अच्छी बारिश होने पर तो बचत हो जाती वरना घाटा ही लगता। पांच वर्ष पहले स्कीम के बारे में विभाग से जानकारी और प्रेरणा लेकर तीन एकड़ जमीन में किन्नू और मौसमी का बाग लगाया। किन्नू और मौसमी के पौधों में जल्दी सिचाई की जरूरत नहीं होती। किसान सतवीर सिंह ने बताया कि अब इस जमीन में किन्नू मौसमी के पौधों के साथ-साथ मौसमी फसलें गेहूं, सरसों, ग्वार बाजरा और कपास नरमे की खेती भी करता है। किन्नू और मौसमी के बाग से उसे पहले 2 से 2.5 लाख रुपये सालाना अतिरिक्त आमदनी होने लगी है। जब भी सिचाई की जरूरत होती है तभी किन्नू और मौसमी के पौधों और फसलों मे सिचाई कर लेता है। वह सिचाई ड्रिप सिस्टम की ओर से की जाती है, जिससे पानी व खाद और दवा सीधे पौधों को मिल जाती है और पानी भी बेकार नहीं होता। किसान ने बताया कि उसके बाग को देखकर गांव के कई किसानों ने भी किन्नू और मौसमी के बाग लगाकर कमाई शुरू कर दी है। पास लगते दर्जनभर गांवों के किसान किन्नू और मौसमी का बाग देखने के लिए आते हैं और परंपरागत खेती के साथ अतिरिक्त कमाई का जरिया देखकर खुश होते हैं। किसान ने बताया कि वह सब्जियां अपने खेत में ही उगाता है, कभी भी बाजार से नहीं लाता।

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