जानें- आखिर क्‍या है इस्तांबुल कन्वेंशन जिससे पीछे हट गया तुर्की और महिलाओं से क्‍या है इसका संबंध

Khoji NCR
2021-07-01 09:16:28

इस्‍तांबुल । इस्‍तांबुल कंवेंशन से तुर्की के पीछे हटने के बाद माना जा रहा है कि वहां पर एक बार फिर महिलओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा में तेजी आ सकती है। ये कहना है एमनेस्‍टी इंटरनेशनल का।

सने इसके प्रति देश और दुनिया को आगाह भी किया है। इस संधि से बाहर निकलने की घोषणा राष्‍ट्रपति रैसेप तैयप इर्दोगन ने मार्च में की थी। अपने एक बयान में उन्‍होंने कहा था कि इससे बाहर होने के बाद इस तरह के अपराध को रोकने में किसी भी किस्‍म की कोई कौताही नहीं बरती जाएगी। तुर्की 1 जुलाई 2021 को इस संधि से औपचारिक रूप से बाहर हो गया है। इंस्‍तांबुल कंवेशन के नाम से जानी जाने वाली ये संधि वर्ष 2011 में लागू हुई थी। इसका मकसद तुर्की समेत अन्‍य देशों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा को रोकना और समाज को लैंगिक बराबरी के लिए प्रोत्‍साहित करना था। इस संधि पर 38 देशों ने हस्‍ताक्षर किए थे। राष्‍ट्रपति इर्दोगन के इस फैसले की तुर्की के नागरिकों खासतौर पर महिलाओं ने कड़ी निंदा की है। इसके अलावा अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भी तुर्की की इसको लेकर आलोचना की है। तुर्की राष्‍ट्रपति के इस फैसले को पलटने के लिए दायर याचिका को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया है। रॉयटर्स के मुताबिक आने वाले दिनों में सरकार के इस कदम के खिलाफ धरना प्रदर्शन हो सकता है। फेडरेशन ऑफ टर्किश वूमेंस एसोसिएशंस की अध्यक्ष कनन गुलु ने सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि ऐसा करके तुर्की ने अपने पांव पर खुद कुल्‍हाड़ी मारी है। उन्‍होंने बताया कि महिलाओं का संघर्ष जारी रहेगा। उनके मुताबिक वैश्विक महामारी के दौर में तुर्की में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में तेजी आई है। वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल की महासचिव एग्नेस कैलामार्ड ने कहा कि इस फैसले ने तुर्की को दस वर्ष पीछे खड़ा कर दिया है। एक तरफ जहां सरकार के इस कदम का महिलाएं जमकर विरोध कर रही हैं वहीं दूसरी तरह रूढि़वादियों का मानना है कि ये संधि उनके परिवार के ताने-बाने को कमजोर करती थी। समाचार एजेंसी के मुताबिक संधि से बाहर आने के बाद अब महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने वालों का सजा से बचना संभव हो जाएगा। जर्मनी की एक संस्‍था की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2020 में कम से कम 300 महिलाओं की हत्‍या कर दी गई थी। संस्‍था की रिपोर्ट बताती है कि तुर्की में ये एक बड़ी समस्‍या है। एक रिपोर्ट में ये भी बात सामने आई है कि बीते पांच वर्षों में हर रोज कम से कम एक महिला की हत्‍या तुर्की में हुई है। इस संधि की वकालत करने वालों का कहना है कि तुर्की में इस संधि को जिस तरह से लागू करना चाहिए था उस तरह से लागू नहीं किया गया था। कुछ ये भी मानते हैं कि ये संधि समलैंगिकता को बढ़ावा देती है। यूरोपीय परिषद के मानवाधिकार आयुक्त दुन्या मिजातोविच ने हाल ही तुर्की के गृह मंत्री को लिखे एक पत्र में कहा था कि तुर्की के कुछ अधिका‍री लगातार समलैंगिक विरोधी बयान दे रहे हैं, जो चिंताजनक है।

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