कोरोना से लोगों की सांस बचाने वाले डॉक्टर, ख़ुद कैसे करते हैं तनाव का सामना?

Khoji NCR
2021-07-01 09:09:55

नई दिल्ली, National Doctor's Day 2021: कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान मरीज़ों की जान बचाते वक्त फ्रंटलाइन वर्कर डॉक्टर, नर्सें और अन्य स्वास्थ्यकर्मी खुद भी संक्रमित हो गए। इनमें से कई लोगों ने अपनी जान भ

गवांई। इतना ही नहीं चारों तरफ जान बचाने के लिए मची चीख-पुकार, लगातार हो रहीं मौतें, गंभीर होते मरीज़ों ने स्वास्थ्यकर्मियों को भी झकझोर कर रख दिया। हमारी तरह रातों की नींद इन्होंने भी खोई, बेचैनी, घबराहट और तनाव ने इन्हें भी नहीं छोड़ा, लेकिन फिर भी ये वीर योद्धा की तरह डटे रहे और मरीज़ों की सांस बचाने के लिए दिन-रात लड़ते रहे। Inner Hour के फाउंडर और सीईओ, डॉ. अमित मलिक ने हेल्थ केयर वर्कर्स के मानसिक स्वास्थ्य पर बात करते हुए कहा, " वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के खिलाफ हमारी सामूहिक लड़ाई में हेल्थकेयर पेशेवर सबसे आगे रहे हैं। दूसरी लहर के दौरान, हेल्थ केयर वर्कर्स ने मरीज़ों का इलाज करते वक्त प्रतिदिन ट्रॉमा, मौत और गहरे दुख का सामना करने के साथ, उच्च स्तर के तनाव और थकावट को भी झेला। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं, लेकिन दुर्भाग्य से, हमारे मेडिकल वर्कर्स भी संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें रोज़ाना जैसे अनुभव हो रहे हैं, उसका असर न सिर्फ उनके शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। इस सब के बीच, उन्हें भी थकावट, चिंता, तनाव, दु:ख और गंभीर अवसाद का अनुभव होने का जोखिम रहता है।" आज के दिन यानी एक जुलाई को हर साल नैशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। इस दिन डॉक्टर्स को उनके योगदान के लिए सराहा जाता है। कोरोना महामारी से जारी जंग के दौरान डॉक्टर्स ने भी नींद खोई, तनाव के शिकार हुए। आम लोगों की तरह इनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा। फ्रंट लाइन वर्कर्स को भी दवाओं और काउंसलिंग की ज़रूरत पड़ी। इस मौके पर आइए जानें डॉक्टर्स की ज़ुबानी कि आखिर वे बढ़ते तनाव से कैसे जूझते हैं? रोज़ाना तनाव का सामना करते हैं फ्रंट लाइन वर्कर्स कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गाज़ियाबाद के इंटरनल मेडिसिन डॉ. दीपक वर्मा ने कहा, "लगभग दो सालों तक कोविड-19 महामारी के प्रकोप में रहने के बाद यह संकट निश्चित रूप से किसी के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है, ख़ास करके डॉक्टरों और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी है। इसका कारण यह है कि वे प्रतिदिन बहुत ज्यादा तनाव का सामना करते हैं, जिसने धीरे-धीरे उनके मानसिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया है। सभी डॉक्टर और फ्रंटलाइन वर्कर्स डिप्रेशन, इंसोमेनिया और साइकोलॉजिकल डिस्ट्रेस (मनोवैज्ञानिक संकट) के लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं। डॉक्टरों को न केवल मरीजों की देखभाल बल्कि लगातार बदलते मेडिकल प्रोटोकॉल का पालन करने की चिंता होती है, बल्कि वे खुद को ऐसी स्थिति में भी डाल देते हैं जहां वे अपनी इच्छा से महीनों तक खुद को अपने परिवार से अलग कर लेते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार "शोक, अलगाव, पैसे की कमी और डर की वजह से मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा हैं या जिन लोगों का मानसिक स्वास्थ्य पहले से ख़राब हैं उनमें महामारी और ज्यादा बदतर असर डाल रही है।" तनाव का कैसे सामना कर रहे हैं डॉक्टर्स डॉ. दीपक वर्मा ने कहा, "भले ही डॉक्टरों में बर्नआउट सिंड्रोम और डिप्रेशन होना काफी आम बात है, लेकिन वे इस समस्या से निपटने के लिए छोटे-छोटे कदम उठा रहे हैं। कई डॉक्टरों का कहना है कि आराम करने के लिए वे बीच-बीच में छोटे-छोटे ब्रेक लेते हैं और सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का पालन करते हुए हॉस्पिटल के गलियारे के अंदर टहलते हैं। योग और ट्रेडमिल पर दौड़ने जैसे इनडोर एक्सरसाइज करने से डॉक्टरों को अपने मूड और नींद की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है। कुछ डॉक्टर मन को शांत करने वाली एक्सरसाइज भी करते हैं जैसे कि माइंडफुलनेस और मेडिटेशन कुछ ऐसी एक्सरसाइज हैं जो उन्हें ऐसे मुश्किल समय के दौरान तनाव से बचने में मदद करते हैं। इसके अलावा ड्यूटी के दौरान भी अपने परिवारों के संपर्क में रहने से भी उन्हें शांत होने में मदद मिलती है। ये चिकित्सा कर्मचारी महामारी के बीच लोगों के जीवन को बचाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं, उन्हें संस्थागत सहायता प्रदान करने के लिए बहुत कम काम किया गया है। इस दिशा में बेहतर काम करने से वे मानसिक स्वास्थ्य इलाज की तलाश कर सकते हैं।" डॉक्टर्स को भी है ब्रेक की ज़रूरत मदरहुड हॉस्पिटल, नोयडा की गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटेत्ट्रिसियन कंसल्टेंट डॉ. मनीषा रंजन ने कहा, "अनियमित काम करने का समय, संक्रमण का ख़तरा और परिवार के सदस्यों और प्रियजनों के साथ कम संपर्क में रहने से फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स को चिंता, डिप्रेशन, बर्नआउट, अनिद्रा और तनाव से संबंधित डिसऑर्डर से पीड़ित कर दिया है। इसलिए उनकी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने की दिशा में काम करना बहुत जरूरी हो जाता है। उन्हें प्रभावी ढंग से बात करने में सक्षम बनाना, उन्हें प्रशासन/वरिष्ठों से सही सहायता प्रदान करना, मानसिक स्वास्थ्य समस्या की जांच करना, क्वारंटाइन/आइसोलेशन में कम रोक लगाना और विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से लगातार संपर्क बनाए रखना और मीडिया द्वारा फैलाई गई गलत सूचना/अफवाहों पर अंकुश लगाना आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिससे हेल्थकेयर वर्कर्स के बीच डर और डिप्रेशन को कम किया जा सकता है। यहां तक कि डॉक्टर भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखकर, मेडिटेशन करके और मीडिया और सोशल मीडिया की खबरों से ब्रेक लेकर अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रख सकते हैं।" खुद की देखभाल ज़रूरी नोवा आइवीएफ, नई दिल्ली में फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. अस्वती नायर का कहना है, "जब आप कोरोना की मुश्किल परिस्थितियों से गुजर रहे हैं तो यह जरूरी हो जाता है कि हेल्थकेयर प्रोफेशनल के नाते मैं खुद की देखभाल बेहतर तरीके से करूं, जिससे मैं अन्य लोगों की देखभाल अच्छे से कर पाऊं। हम यह सुनिश्चित करें कि हम सभी अपने परिवार और दोस्त से सोशल मीडिया और फोन के ज़रिए एक दूसरे से जुड़े रहें। सिर्फ हेल्थकेयर वर्कर्स ही महामारी की मार को नहीं झेल रहे हैं बल्कि समाज का हर आदमी एक ही समान मानसिक स्थिति से गुज़र रहा है। इसलिए जब हम किसी मरीज़ों या उसके परिवार के सदस्य को फोन या विडियो कॉल के जरिये काउंसल करते हैं, तो हम अपने आपको कम अकेला पाते हैं। हम अपनी ओपीडी के दौरान कुछ स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज भी करते हैं।"

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