सोहना,(उमेश गुप्ता): कोरोनाकाल में आर्थिक तंगी व मंदे के दौर में इन दिनों सरकारी स्कूलों में बिना एसएलसी के प्रोविजनल दाखिला लेने वालों की तादाद दिनोंदिन बढ़ रही है। अभिभावकों का कहना है कि नि
जी स्कूल संचालक उन्हे अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में कराने के लिए एसएलसी देने में बहानेबाजी कर रहे है और कोई ना कोई बहाने गढक़र एसएलसी नही दे रहे है जबकि शिक्षा निदेशालय ने निजी स्कूलों को एसएलसी जारी करने का 15 दिन का समय दिया हुआ है। हालातों को देखकर नजर आ रहा है कि इस बार सरकारी स्कूलों में कक्षा नौवीं व 11वीं के दाखिले भी बढऩे की संभावना है क्योकि निजी स्कूल कोरोनाकाल में आर्थिक तंगी व मंदे के दौर के बावजूद टयूशन फीस के अलावा दाखिला फीस और तरह-तरह के फंड वसूलने से बाज नही आ रहे है। ऐसे में परेशान अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में कराने के लिए तरजीह दे रहे है। सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को दाखिले के लिए स्कूल छोडऩे का ऑनलाइन प्रमाणपत्र जारी हो रहा है तो निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं को प्रोविजनल तौर पर दाखिला मिल रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि शिक्षा निदेशालय के बिना एसएलसी के दाखिला देने की अनुमति देने पर दाखिला प्रक्रिया स्थाई रूप में पूरी कर ली जाएगी। सीनियर सैकेंडरी गल्र्ज विद्यालय की प्रधानाचार्या सुनील कुमारी और माडल संस्कृति सीनियर सैकेंडरी बाल विद्यालय के प्रधानाचार्य सुरेन्द्र वर्मा का कहना है कि निजी स्कूलों से आने वले छात्र-छात्राओं को प्रोविजनल तौर पर दाखिला हाथोंहाथ दिया जा रहा है लेकिन एसएलसी के बारे में पूछताछ की जा रही है। बिना एसएलसी के दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को लेकर शिक्षा निदेशालय की तरफ से जो भी दिशा-निर्देश मिलेगा, उसी के अनुरूप आगे कार्रवाई की जाएगी। वही अभिभावकों का कहना है कि निजी स्कूलों की लूट-खसोट व अंधेरगर्दी पर रोक लगाने के लिए जरूरी है कि शिक्षा निदेशालय सरकारी स्कूलों में प्रोविजनल दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं को स्थाई रूप में दाखिला दिए जाने की कार्रवाई अमल में लाए ताकि अभिभावकों को परेशान ना होना पड़े और गरीबों के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर सके। आर्थिक तंगी व पैसे के अभाव में वह अनपढ़ ना रह जाए। शिक्षा का अधिकार कानून भी सभी को शिक्षा का अधिकार देता है।
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