दस वर्ष बाद पहली बार आज मिलेंगे बाइडन और पुतिन, तनातनी के बीच जानें- क्‍या है बातचीत का एजेंडा

Khoji NCR
2021-06-16 08:25:57

जिनेवा । विश्‍व की दो महाशक्तियों के बीच बुधवार को जिनेवा में एक बेहद खास मुलाकात होने वाली है। ये दो महाशक्तियां अमेरिका और रूस हैं। काफी लंबे समय से चली आ रही तनातनी के अमेरिकी राष्‍ट्रपति

ो बाइडन और रूसी राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन के बीच होने वाली ये मुलाकात कई मायनों में खास है। आपको बता दें कि इन दोनों के बीच 10 मार्च 2011 को मास्‍को में आखिरी मुलाकात हुई थी। हालांकि उस वक्‍त बाइडन अमेरिका के उपराष्‍ट्रपति थे, और पुतिन रूस के प्रधानमंत्री थे। वर्तमान मुलाकात के दौरान दोनों के के ही पद बदल चुके हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति बाइडन ने जहां 20 जनवरी 2021 से राष्‍ट्रपति का पदभार संभाला है वहीं व्‍लादिमीर पुतिन अगस्‍त 1999 से ही रूस के राष्‍ट्रपति हैं। देश और दुनिया में उनकी गिनती एक ताकतवर नेता के रूप में होती आई है। पुतिन और बाइडन के बीच आज होने वाली मुलाकात के बीच इस बात को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि आखिर इन दोनों के बीच बातचीत का एजेंडा क्‍या होगा। आपको बता दें कि बीते कुछ वर्षों में अमेरिका और रूस के बीच जो खटास पैदा हुई है उसकी एक नहीं कई बड़ी वजह हैं। इनमें से एक अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव को प्रभावित करना भी है, जिसको काफी अहम मुद्दा माना जा रहा है। इसके अलावा अमेरिकी एजेंसियों और निजी कंपनियों पर किए गए साइबर अटैक के लिए भी रूसी राष्‍ट्रपति को ही जिम्‍मेदार ठहराया जाता रहा है। अमेरिका राष्‍ट्रपति पुतिन के सामने उनके विरोधी नेताओं को जहर देकर मारने की कोशिश करने का भी मुद्दा उठा सकता है। पुतिन के घोर विरोधी नेता एलेक्‍सी नवलनी के साथ जो कुछ हुआ उसको लेकर अमेरिका समेत कई देश रूस के खिलाफ हैं। इसके अलावा ब्रिटेन में पूर्व रूसी एजेंट और उनकी बेटी को नर्व एजेंट से मारने की कोशिश के लिए साजिश रचने का आरोप पुतिन पर ही लगा था। नवलनी की गिरफ्तारी और उसके बाद हुए प्रदर्शनों को दबाने और इसके लिए बल प्रयोग करने पर भी अमेरिका और अन्‍य देश पुतिन के खिलाफ हैं। अमेरिका कई बार रूस पर मानवाधिकार उल्‍लंघन का आरोप लगाता रहा है। दोनों देशों के बीच हथियार एक बड़ा मुद्दा है। हाल के कुछ समय में रूसी की रक्षा प्रणाली एस 400 इसकी एक बड़ी वजह बनी है। अमेरिका नहीं चाहता है कि रूस की इस प्रणाली को कोई भी देश खरीदे। इसको लेकर रूस और अन्‍य देशों पर दबाव भी डाला जा रहा है। तुर्की और भारत पर भी ये दबाव डाला गया है। हालांकि दोनों ही देश इससे पीछे हटने से साफ इनकार कर चुके हैं। इसके अलावा सीरिया में पुतिन का सरकार को समर्थन और वहां पर ताबड़तोड़ हमले करना साथ ही सीरियाई फौज को मदद करना हमेशा से ही अमेरिका को नापसंद रहा है। ऐसा ही कुछ यू्क्रेन और लीबिया में भी है। बाइडन के राष्‍ट्रपति बनने के बाद से दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्‍तों में भी काफी हद तक गिरावट देखी गई है। पुतिन जहां अमेरिकी जेलों में बंद अपने नागरिकों की रिहाई की बात कर सकते हैं वहीं बाइडन की रूसी जेला में बंद अपने नागरिकों के लिए ऐसी ही मांग कर सकते हैं।

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