। जानवरों और इंसानों के द्वंद्व के बीच एक सशक्त महिला वन्य अधिकारी की कहानी पर आधारित होगी फिल्म ‘शेरनी’। 18 जून को डिजिटल प्लेटफार्म अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो रही इस फिल्म में विद्या बा
लन मुख्य भूमिका में नजर आएंगी। उनसे दीपेश पांडेय की बातचीत के अंश... कोरोना काल में खुद को कैसे सकारात्मक रखा? (गंभीर मुद्रा में) यह दौर सभी के लिए बहुत दुखद रहा है। ढेर सारे लोग बीमार हुए और कई लोगों की जानें गईं। इस दौर में जब हम शारीरिक रूप से किसी की मदद के लिए उपस्थित नहीं हो सकते थे, तो मैंने अपना वक्त घर में रहकर लोगों के लिए प्रार्थना करते हुए बिताया। ऐसे ही मैं खुद को सकारात्मक और मजबूत रख पाई। इस फिल्म में आपके लिए खास आकर्षण क्या था? इस फिल्म के निर्देशक अमित मसूरकर हैं। मैंने उनके साथ बहुत से विज्ञापनों में काम किया है। उनके साथ मेरा बहुत अच्छा तालमेल है। दुनिया को देखने का उनका नजरिया दूसरों से बिल्कुल अलग है, लिहाजा कहानी दर्शाने का उनका तरीका भी काफी अलग है। इस फिल्म को करने से पहले मुझे फारेस्ट डिपार्टमेंट के बारे में कुछ भी नहीं पता था। मैं सिर्फ इतना जानती थी कि यह डिपार्टमेंट जंगलों के लिए काम करता है, लेकिन क्या और कैसे करता है, इसके बारे में काफी कुछ पता चला। शेरनी शब्द ज्यादातर सशक्त महिलाओं के लिए भी उपयोग किया जाता है, आप इससे कितना इत्तेफाक रखती हैं? हर औरत एक शेरनी होती है, लेकिन इस बात का एहसास नहीं होता। हमें लगता है कि जो दहाड़ती है वही शेरनी है, लेकिन हर बार दहाड़ने की जरूरत नहीं होती। लोग शांत शेरनी से भी डरते हैं। हमें दूसरों के नजरिए से खुद को देखने की आदत लगाई गई है। जब हम खुद को अपने नजरिए से देखेंगे, तब दूसरों से नहीं डरेंगे। इस फिल्म में मेरा किरदार भी शेरनी है। वह चुपचाप रहती है, अपने काम से काम रखती है। उसे दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन वह निडर है। हमारे गांवों की औरतों की बात करें तो जो औरत अपने घर को चला रही है या जो परंपराओं की बेड़ी तोड़कर थोड़ा सा घूंघट ऊपर उठाती है (इशारों से दिखाते हुए) और किसी दिन पूरा घूंघट उठाने की हिम्मत रखती है, वह शेरनी ही है। वन्य अधिकारी का किरदार निभाना आपके लिए कैसा अनुभव रहा? इस किरदार के लिए मैं एक फारेस्ट अफसर से मिली थी। उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए कुछ किताबें दीं और कुछ डाक्यूमेंट्रीज देखने का भी सुझाव दिया। पर्यावरण के प्रति मनुष्य की क्या जिम्मेदारियां हैं, यह हम सभी को स्कूल और कालेज में पढ़ाया जाता है, लेकिन हमेशा जंगलों के बीच रहने वाले फारेस्ट अफसर की बातों को सुनकर मैं उन बातों को गहराई से समझ पाई। मध्य प्रदेश के जंगलों में शूटिंग का अनुभव कैसा रहा? जंगल में शूट करते हुए कुछ पाबंदियां होती हैं। आप वहां ज्यादा लोग नहीं ले जा सकते। ऐसे में हमें चिंता थी कि शूटिंग कैसे होगी? मैं मध्य प्रदेश सरकार की शुक्रगुजार हूं कि जंगलों में पूरी शूटिंग अच्छे तरीके से हो गई। हमें वहां के लोकल लोगों का भी सहयोग मिला। फिल्म के कुछ सीन में एक्टिंग के बारे में जरा भी न जानने वाले कुछ गांव वालों और वास्तविक फारेस्ट अफसरों ने भी एक्टिंग की है। बिना इन लोगों के सहयोग के यह फिल्म नहीं बन सकती थी। आपके ज्यादातर किरदार सशक्त और प्रेरणात्मक महिलाओं के ही रहे हैं, क्या यह किसी योजना का हिस्सा है? (झट से बोलते हुए) मैं किसी को प्रेरित करने के लिए खुद को काबिल नहीं समझती। मुझमें इतनी हिम्मत भी नहीं है। मैं सिर्फ वही काम करती हूं, जो मुझे अच्छा लगता है। हर औरत साहसी और हिम्मती होती है, फिर चाहे वह कोई गृहणी हो या अधिकारी। कभी-कभी मेरा किरदार ऐसी महिलाओं का भी होता है जो शुरू में सशक्त नहीं होतीं, लेकिन किसी घटना की वजह से सशक्त बन जाती हैं। (हंसते हुए) मुझे जब इस तरह के मजेदार किरदारों के प्रस्ताव मिल रहे हैं, तो मैं बस इसका फायदा उठा रही हूं। ‘शेरनी’ की शूटिंग तो पिछले साल ही खत्म हो गई थी, उसके बाद आपने अगली फिल्म की घोषणा नहीं की? मैं अनाउंसमेंट करने ही वाली थी कि तब तक कोरोना की दूसरी लहर आ गई। अब पता नहीं मेरी कौन सी फिल्म पहले शुरू होगी। इसलिए फिलहाल मैं अपनी अगली किसी भी फिल्म के बारे में बात नहीं कर सकती। मैंने अभी तीन फिल्मों के लिए हामी भरी है। जिनमें से दो फिल्में अगले साल आएंगी। जानवरों से आप कितना लगाव रखती हैं? मुझे जानवरों से इतना ज्यादा लगाव नहीं कि उन्हें घर पर रखूं। मुझे डाग्स बहुत प्यारे लगते हैं, लेकिन दूर से ही। इस फिल्म को करने से पहले मैं बिल्लियों से बहुत डरती थी, इस फिल्म ने मेरा वह डर निकाल दिया। यह कैसे हो पाया, वह आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा।
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