सोहना,(उमेश गुप्ता): अरावली पर्वत की श्रंखलाओं वाली पहाडियां जहां जीवनदायिनी गंगा का काम कर रही है, वही इन पहाडियों में कोरोना से बचाव का खजाना भी छुपा हुआ है क्योकि धरोहर रूपी अरावली की पहाडि
ों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले व अन्य औषधीय पौधों की भरमार है। जरूरत आज इस बात की है कि इन्हे अच्छे से संरक्षित रखा जाए और युवा पीढ़ी को अरावली में पैदा हो रही औषधीय पौधों के महत्व से अवगत कराया जाए। अब वह समय आ गया है, जब हम आयुर्वेद की अपनी सनातन विद्या की गहराई को समझे और वन विभाग भी अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाए। देखा जाए तो आयुष मंत्रालय की एडवाइजरी में भी गिलोय व संशमणि वटी शामिल है। गिलोय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में उपयोगी है तो अश्वगंधा का उपयोग नर्वस सिस्टम में होता रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने आयुर्वेद के कई ग्रंथों में इसके गुणों की महिमा गाई है। डाक्टर नितिन गोयल की माने तो आज देश दोबारा से स्वदेशी वस्तुओं और प्राचीनकाल की तरफ लौट रहा है। लोग जल बचत व संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण को बचाने व हरियाली को बढ़ावा देने के लिए जागरूक बन रहे है। उन्होने बताया कि गुजरात से दिल्ली के रायसीना पहाडी तक फैली 692 किलोमीटर लंबी अरावली पर्वत श्रंखलामाला केवल चटटानों की संरचना नही है बल्कि जीवनदायिनी गंगा की तरह 570 मिलियन वर्ष पुरानी यह श्रंखला इम्युनिटी बढ़ाने वाली औषधि उपलब्ध कराने वाली भी है और इसमें कोरोना जैसी महामारी से बचाव का भरपूर खजाना छुपा है। यहां गिलोय व अश्वगंधा जैसी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली और बांसा जैसी श्वसन तंत्र को ताकत देने वाली औषधियां सुलभ है। कोरोना से बचाव में सबसे बड़ा हथियार इम्युनिटी यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता है। अरावली की पहाडियों में ना केवल गिलोय, अश्वगंधा व वन तुलसी जैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले पौधे है बल्कि दमा का दम निकालने वाले बासा या बांसा भी बहुतायत में है। स्तावरी, अपामार्ग, इंद्रजो व चामरोड जैसे औषधीय पौधों की भी भरमार है। डाक्टर नितिन गोयल की माने तो अश्वगंधा, गिलोय व वन तुलसी में मौजूद आक्सीडेंट इम्युनिटी सिस्टम को ताकत देता है। वन तुलसी, वात, पित्त व कफ से दोष मुक्त करती है तो वासा का प्रयोग दादा-नाना के जमाने से सर्दी-जुकाम व फ्लू में होता रहा है। किसी भी औषधि या औषधीय पौधे के किसी अंग का सेवन बिना किसी वैद्य की सलाह के नुकसानदायक हो सकता है मगर आज भी गांव-देहातों में अरावली की तलहटी वाले गांवों में रहने वाले बड़े-बुजुर्ग कई वनस्पतियों के औषधीय गुणों से परिचित है। यह अलग बात है कि युवा पीढ़ी के लिए अधिकांश पौधों का महत्व जंगली खरपतवार जैसा है। ऐसे में जरूरी है कि अरावली में औषधीय पौधों के रख-रखाव पर विशेष ध्यान देकर इन्हे अच्छे से संरक्षित रखा जाए और युवा पीढ़ी को अरावली में पैदा हो रही औषधीय पौधों के महत्व से अवगत कराया जाए। अब वह समय आ गया है, जब हम आयुर्वेद की अपनी सनातन विद्या की गहराई को समझे और वन विभाग भी अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाए।
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