अगर आप कोरोना से ठीक हो चुके हैं तो आपके पास मौका है किसी की जान बचाने का। आपके प्लाज्मा से आईसीयू में भर्ती कोरोना मरीज की जान बचाई जा सकती है। कोरोना की पहली वेव में हजारों लोगों की जान इससे ब
ाई गई हैं। आइए जानते हैं कि क्या है प्लाज्मा थ्योरी और इसके जरिए कैसे किसी की जान बचा सकते हैं। कैसे डोनेट कर सकते हैं प्लाज्मा? प्लाज्मा थेरेपी के लिए सबसे पहले दान करने वाले का टेस्ट होगा। टेस्ट के जरिए ये देखा जाएगा कि उनके खून में किसी प्रकार का संक्रमण तो नहीं है। मसलन शुगर, एचआईवी या हेपेटाइटिस तो नहीं है। अगर ब्लड ठीक पाया गया तो उसका प्लाज्मा निकालकर आईसीयू के पेशेंट को दिया जाए तो वो ठीक हो सकता है। कैसे काम करता है प्लाज्मा? कोरोना पॉजिटिव मरीजो में इलाज के बाद ब्लड में एंटीबॉडीज आ जाती हैं। डॉक्टरों के अनुसार अब उसके ब्लड से प्लाज्मा निकालकर कोरोना पेशेंट को दिया जाए तो वो उसे ठीक होने में हेल्प करेगा। इस तरह ठीक हो गए पेशेंट से बीमार को देकर उसे ठीक कर सकते हैं। ये एंटी बॉडीज मरीज के ब्लड में मिलकर कोरोना से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। ये लोग दान कर सकते हैं प्लाज्मा - कोरोना पॉजिटिव हुए हों - अब निगेटिव हो गए हों - ठीक हुए 14 दिन हो गए हों - स्वस्थ महसूस कर रहे हों और प्लाज्मा डोनेट करने के लिए उत्साहित हों - उनकी उम्र 18 से 60 वर्ष के बीच हो ऐसे लोग नहीं दे सकते प्लाज्मा - जिनका वजन 50 किलोग्राम से कम है - महिला जो कभी भी प्रेग्नेंट रही हो या अभी हो - डायबिटीज के मरीज जो इंसुलिन ले रहे हों - ब्लड प्रेशर 140 से ज्यादा हो - ऐसे मरीज जिनको बेकाबू डायबिटीज हो या हाइपरटेंशन हो - कैंसर से ठीक हुए व्यक्ति - जिन लोगों को गुर्दे/हृदय/फेफड़े या लिवर की पुरानी बीमारी हो। ऐसे हुई थी प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत नोबल प्राइज विनर जर्मन वैज्ञानिक एमिल वॉन बेरिंग ने प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत की थी। इसके लिए उन्होंने खरगोश में डिप्थीरिया का वायरस डाला, फिर उसमें एंटीबॉडीज डाली गई। इसके बाद वो एंटीबॉडीज बच्चों में डाली गई। इसलिए एमिल को सेवियर ऑफ चिल्ड्रेन कहा जाता है।
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