ताइपे, । चीन ने ताइवान की सीमा पर अब तक की सबसे बड़ी घुसपैठ की है। शुक्रवार को ताइवान की सरहद पर चीन के चार परमाणु बॉम्बर समेत 20 लड़ाकू विमानों की गर्जना दक्षिण चीन सागर में तैनात अमेरिकी सैनि
ों को जरूर सुनाई पड़ी होगी। ताइवान की सरहद पर यह चीन की सबसे बड़ी घुसपैठ है। दक्षिण चीन सागर पर यह उसका सबसे बड़ा सैन्य अभियान है। खास बात यह है कि चीन ने अपने इस सैन्य अभियान को तब अंजाम दिया है, जब अभी हाल में क्वाड की बैठक में अमेरिका ने चीन को सख्त चेतावनी दी थी। जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका का गठबंधन क्वाड की बैठक में चीन की दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती दिलचस्पी पर गहरी चिंता व्यक्त की गई थी। हालांकि, उस वक्त चीन ने इस बैठक पर सख्त ऐतराज जताया था। इसके बाद चीन ने इस अभियान को अंजाम दिया। आखिर चीन के इस सैन्य अभियान के पीछ क्या है उसका बड़ा मकसद। क्या वह सच में अमेरिका को युद्ध के लिए उकसा रहा है। युद्ध नहीं दुनिया में एक नए शीत युद्ध की दस्तक प्रो. हर्ष पंत का मानना है कि चीन के बड़े सैन्य अभ्यास का मकसद अमेरिका को युद्ध के लिए उकसाना नहीं है। इस अभियान का मकसद अमेरिका को इस बात का एहसास करना है कि वह अपने टारगेट से विचलित नहीं हुआ है। ताइवान को लेकर वह अपने रुख पर कायम है। चीन ने अमेरिका और उसके सहयोगी राष्ट्रों को संकेत दिया है कि ताइवान के मुद्दे पर वह किसी की भी सुनने वाला नहीं है। वह किसी महाशक्ति के दबाव में आने वाला नहीं है। वह अपने इस रुख पर कायम है कि ताइवान उसका हिस्सा है। ताइवान उसकी संप्रभुता के अधीन है। वह उसके भू-भाग का हिस्सा है। प्रो. पंत का मानना है कि इतने बड़े सैन्य अभियान के पीछे उसकी मंशा साफ है कि वह किसी सैन्य कार्रवाई के आगे झुकने वाला नहीं है। डरने वाला नहीं है। फिर चाहे वह अमेरिका ही क्यों न हो। उसने बिना युद्ध किए अमेरिका को अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया है। यह धमकी ताइवान के साथ अमेरिका और उस क्षेत्र में उसके सहयोगी राष्ट्रों के लिए है। उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि ताइवान के लिए अगर युद्ध की भी जरूरत पड़ी तो वह पीछे हटने वाला नहीं है। चीन का यह सैन्य अभ्यास दक्षिण चीन सागर और ताइवान में तैनात अमेरिकी सैनिकों के लिए यह एक सबक जरूर हो सकता है। उन्होंने कहा कि चीन जानता है कि ताइवान की राह में उसकी सबसे बड़ी बाधा अमेरिका है। इसलिए वह अपने अभ्यास में अमेरिकी नौसेना बेड़े को टारगेट रखता है। अब अमेरिका का इस पर क्या स्टैंड होता है, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या अमेरिका वाकई इस क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को कम करने के लिए कोई सख्त सैन्य रणनीति अपनाता है। अभी तो इस क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच लुकाछिपी का खेल चल रहा है। पंत का मानना है कि दुनिया में एक बार फिर कोरोना वायरस की लहर चल रही है। दुनिया के मुल्क कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में जुटे हैं। ऐसे में चीन के लिए यह उपयुक्त समय है कि वह ताइवान के मुद्दे पर तेजी दिखाए। इसलिए उसने ताइवान और दक्षिण सागर चीन पर अपने सैन्य अभ्यास तेज कर दिए हैं। अमेरिका में ट्रंप के बाद बाइडन का प्रशासन है। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद देश के आंतरिक हालत से निपटना उनके लिए एक बड़ी चुनौती है, ऐसे में ताइवान और सहयोगी राष्ट्रों का कितना साथ देते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। चीन भी अमेरिका की परीक्षा लेने में जुटा है कि वह ताइवान का कितना साथ देता है। उन्होंने कहा कि क्वाड की बैठक के बाद रूस और चीन के बीच हुए समझौते से दुनिया में एक नया शक्ति संतुलन स्थापित हुआ है। रूस से गठबंधन के बाद अमेरिका के खिलाफ अब चीन अकेले नहीं रहा। इस गठबंधन के बाद चीन और मजबूत हुआ है। ऐसे में अमेरिका यहां किस तरह की रणनीति अपनता है यह देखना होगा। लेकिन इतना तय है कि इस रूस-चीन के गठबंधन के बाद इस क्षेत्र में युद्ध के आसार कम हुए हैं। अलबत्ता एक नए शीत युद्ध ने दस्तक दिया है।
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