सोहना,(उमेश गुप्ता): अरावली पर्वत की श्रंखलाओं से घिरे सोहना-रायसीना और आसपास क्षेत्र में अरावली की हजारों एकड़ भूमि पर हो रहे गैर वाणिकी कार्यों के चलते क्षेत्र में खासी तादाद में फार्महाउस,
स्कूल धार्मिक स्थल और ऊंची-ऊंची इमारतें आदि बन गई है। पेड़ों की कटाई के साथ-साथ रातोंरात पत्थर तोड़ खनन भी किया जाता रहा है। पहले भी जब विधानसभा सत्र में पूर्व वनमंत्री किरण चौधरी ने अरावली के संरक्षण का मामला प्रमुखता से उठाया तो इस मामले में अपने को घिरते देख सरकार की तरफ से जवाब दिया गया कि अरावली की भूमि पर गैर वाणिकी कार्य करने और फार्महाउस बनाने वालों के खिलाफ और ज्यादा सख्ती बरती जाएगी। जितने भी फार्महाउस बनाए गए है, वह किसी भी कीमत पर नियमित नही किए जाएंगे। पर्यावरण प्रेमी दयाराम सैनी, शिक्षाविद सचिन लोहिया, किसान नेता विजय सिंह डागर, युवा समाजसेवी मोहित यादव, क्रांतिकारी नगेन्द्र डागर, पूर्व नगरपार्षद ओमप्रकाश सैनी, सुरेन्द्र तंवर आदि समेत जागरूक लोगों का कहना है कि अरावली पर्वत की श्रंखलाओं वाले पहाड़ी क्षेत्र को पूरे एनसीआर क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी माना जाता है। बावजूद इसके अरावली क्षेत्र संरक्षण के लिए जितनी गंभीरता दिखानी चाहिए, उतनी नजर नही आ रही है। हालात ये है कि 14 वर्ष पहले जब वर्ष-2007 में वन विभाग के तत्कालीन संरक्षक डाक्टर आरपी बलवान ने इस मामले में रिपोर्ट तैयार की तो अरावली में करीब पांच हजार एकड़ भूमि पर गैर वाणिकी कार्य किए जाने की बात सामने आई। सोहना समेत एनसीआर का काफी क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील जोन-4 में है। अरावली पहाड़ काफी पुराना होने की वजह से ठोस हो चुका है। यही वजह है कि इस पर भूकंप का असर नही होता लेकिन यदि अरावली में गैर वाणिकी कार्य कर अरावली का सीना ऐसे ही चीरा जाता रहा तो फिर यहां भूकंप से कभी भी भारी तबाही का अंदेशा बन सकता है। सेवानिवृत मुख्य नगर योजनाकार व पर्यावरण कार्यकर्ता प्रोफेसर केके यादव तो साफ-सपाट लहजे में बताते है कि अरावली पहाड़ी क्षेत्र में अधिकांश फार्महाउस सत्ता के गलियारों तक जबरदस्त रसूख और ऊंची पहुंच वालों के है। शायद यही कारण है कि स्थानीय अधिकारियों की इतनी हिम्मत नही कि वह उनका कुछ बिगाड़ सके। जब तक खुद सरकार नही चाहेगी, तब तक अरावली पहाड़ी क्षेत्र की सुरक्षा ईमानदारी से होना सुनिश्चित नही है। अरावली आंदोलन के सूत्रधार व सेवानिवृत वन संरक्षक डाक्टर आरपी बलवान का आज अनुमान ये है कि अरावली क्षेत्र में कम सेे कम करीब 15 हजार एकड़ भूमि पर गैर वाणिकी कार्य चल रहे है। जिसका दायरा दिनोंदिन बढ़ रहा है। भूमाफियाओं और बिल्डरों से लेकर सभी की ललचाई निगाहे अरावली पर लगी है। कोई भी अरावली को बचाना नही चाहता है। अरावली बचाने के लिए सरकार कोई ठोस निर्णय ले तो कुछ ही दिनों के भीतर तस्वीर बदल जाएगी। बशर्ते कि धरातल पर सरकार ईमानदारी से काम करे। इस मामले में मुख्य वन संरक्षक ने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया जबकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी का कहना रहा है कि फार्महाउसों से संबंधित काफी मामले पर्यावरण अदालत में लंबित है। अरावली की सुरक्षा को लेकर कई विभाग प्रयासरत है। अरावली क्षेत्र में अवैध निर्माण की शिकायत मिलने पर तुरंत कार्रवाई अमल में लाई जाती है। उन्होने लोगों से आग्रह किया कि यदि कोई भी जागरूक व्यक्ति अरावली वन क्षेत्र में कही भी गैर वाणिकी कार्य, निर्माण, अवैध गतिविधियां देखे तो तुरंत प्रशासन को सूचित करे ताकि उनके खिलाफ तुरंत प्रभाव से ठोस कार्रवाई अमल में लाई जा सके।
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