अपनेपन, सहयोग और प्यार से डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बिता सकते हैं बेहतर जीवन: डॉ. ममगाईं

Khoji NCR
2021-03-20 11:34:23

कुरुक्षेत्र,20मार्च ( सुदेश गोयल ):"डाउन सिंड्रोम मनुष्यों में सबसे आम गुणसूत्र आसामान्यताओं में से एक है और यह हर साल पैदा हुए प्रति हजार बच्चों में से एक में होता है। वर्ष 2015 में डाउन सिंड्रोम 5

.4 मिलियन व्यक्तिओं में मौजूद था और इसके परिणाम स्वरूप 1990 में इससे 27000 मौतें हुई। इसका नाम ब्रिटिश डॉ.जॉन लैंगडन डाउन के नाम पर रखा गया है, जिसमें 1866 में डाउन सिंड्रोम का पूरी तरह से वर्णन किया था।" यह कहना है लोकनायक जयप्रकाश जिला नागरिक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक और फिजिशियन डॉ.शैलेंद्र ममगाईं शैली का। वे आज 'डाउन सिंड्रोम डे'-2021 की पूर्व संध्या पर बातचीत कर रहे थे। उन्होंने बताया कि डाउन सिंड्रोम के कुछ पहलुओं का वर्णन 1838 में जीन एटियेन डोमिनिक एस्किरोल रोल और 1844 में एडवर्ड सैगुइन द्वारा किया गया था ।1959 में क्रोमोसोम 21 की एक अतिरिक्त प्रतिलिपि को डाउन सिंड्रोम का अनुवांशिक कारण माना गया। डॉ. शैली ने बताया कि इस साल डाउन सिंड्रोम का थीम है- 'कनेक्ट'और अभी भी लोगों में डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता का अभाव है। वे ऐसे बच्चों का मजाक उड़ाते हैं और उन्हें मानसिक रोगी समझते हैं। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को कई मानसिक और शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।ऐसे बच्चों में आई.क्यू.बहुत कम होता है ,इसलिए वे अपने आस पास होने वाले बदलावों के प्रति प्रतिक्रिया नहीं दे पाते हैं। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में भौतिक विशेषताएं हो सकती हैं,जिनमें एक छोटी सी ठोड़ी, तिरछी आंखें,मांसपेशियों की खराब टोन,चपटी नाक, हथेली की एक क्रीज और एक छोटे से मुंह और अपेक्षाकृत बड़ी जीभ के कारण एक प्रकोप वाले जीभ शामिल हैं। ऐसे लोगों में वायु मार्ग में परिवर्तन डाउन सिंड्रोम के लगभग आधे लोगों में नींद अवरोधक एपनिया का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त अन्य विशेषताओं में चपटा मुंह और चौड़ा चेहरा ,छोटी गर्दन ,अत्यधिक संयुक्त लचीलापन ,पैर की बड़ी उंगली और दूसरी उंगली के बीच अतिरिक्त जगह,उंगलियों और छोटी उंगलियों पर असामान्य पैटर्न शामिल हैं।इनकी ऊंचाई में वृद्धि धीमी होती है जिसके परिणाम स्वरूप व्यस्क छोटे स्तर के होते हैं ।पुरुषों के लिए ऊंचाई 154 सेंटीमीटर और महिलाओं के लिए 142 सेंटीमीटर होती है। डाउन सिंड्रोम से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का जिक्र करते हुए डॉ. ममगाईं ने बताया कि इनमें हृदय से संबंधित विकृतियां, पाचन तंत्र से संबंधित समस्याएं, इम्यून डिसऑर्डर, मोटापा, स्पाइन से संबंधित समस्याएं और स्मृति लोप आदि शामिल हैं।इसके अलावा दांतो से संबंधित समस्याएं, दौरे पड़ना, कानों का संक्रमण और सुनने व देखने में परेशानी आना जैसी समस्याएं भी इनमें शामिल हैं। डॉ.शैली के मुताबिक डाउन सिंड्रोम वाले आधे से अधिक लोगों में श्रवण और दृष्टि विकार होते हैं। दृष्टि की समस्या 36 से 88 लोगों में और 20 से 50 फ़ीसदी के में स्ट्रेबिस्मस होता है, जिनमें दो आंखें एक साथ नहीं बढ़ती और मोतियाबिंद 15 फ़ीसदी में पाया जाता है। उनमें जन्मजात हृदय रोग की दर लगभग 40 फ़ीसदी है और रक्त के कैंसर की संभावना 10 से 15 फ़ीसदी बढ़ जाती है। डाउन सिंड्रोम वाले पुरुष आमतौर पर पिता के बच्चे नहीं होते हैं; जबकि महिलाओं में प्रभावित लोगों के सापेक्ष उर्वरता की कम दर होती है । डाउन सिंड्रोम के निदान की चर्चा करते हुए डॉ. शैली ने बताया कि इसकी पुष्टि के लिए अल्ट्रासाउंड, कुछ निश्चित बायोमार्कर , गर्भावस्था की 16 सप्ताह की अवधि पर एमनियोसेंटेसिस की जरूरत होती है और बच्चे के जन्म के बाद गुणसूत्रों का एक विश्लेषण आवश्यक है। डाउन सिंड्रोम के उपचार की चर्चा करते हुए डॉ. शैली ने बताया कि डाउन सिंड्रोम का पूरी इतना इलाज संभव नहीं है लेकिन अगर ठीक प्रकार से देखभाल की जाए तो जीवन की गुणवत्ता सुधारी जा सकती है। अलग-अलग थेरेपी से इसका इलाज किया जाता है; जिनमें फिजिकल थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, बिहेवियर थेरेपी आदि शामिल हैं। इस बीमारी का जितनी जल्दी उपचार किया जाए ,उतना बेहतर होता है क्योंकि इससे उन्हें सामान्य जीवन जीने में सहायता मिलती है । इसके लिए सबसे जरूरी है कि माता-पिता ऐसे बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करें और उन्हें अपने रोजमर्रा के काम के लिए प्रेरित करें। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों का विकास धीमा होता है। ऐसे बच्चे पढ़ -लिख सकते हैं, स्कूल जा सकते हैं और बहुत तक सामान्य जीवन जी सकते हैं। इन्हें सामान्य से अधिक देखभाल अथवा प्यार की जरूरत होती है। परिवार के साथ ही आसपास के लोग भी उनके साथ अपनेपन का व्यवहार करें, तभी वे स्वास्थ्य और अनुशासित जीवन शैली जीने में समर्थ हो पाएंगे।

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