सोहना,(उमेश गुप्ता): सोहना के गांव हरचंदपुर में रहने और गांव हरचंदपुर-खरौदा के बीच स्थित एशियन पब्लिक सीनियर सैकेंडरी स्कूल में कक्षा 11वीं व 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद चंद महीनों पहले भारतीय से
ना में भर्ती होने वाले 19 वर्षीय निखिल दायमा के आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद होने की जानकारी मिली है। जैसे ही भारतीय फौज जाबांज जवान निखिल दायमा के शहीद होने की जानकारी गांव हरचंदपुर में आई, पूरे गांव व क्षेत्र में मातम छा गया। निखिल दायमा मूल रूप से राजस्थान के औद्योगिक क्षेत्र भिवाड़ी के गांव सैैदपुर के रहने वाले थे और सोहना के गांव हरचंदपुर मेें उनके फूफा कैप्टन ज्ञान सिंह व उनकी बुआ मीना देवी निखिल दायमा को मात्र ढाई वर्ष की आयु में ही गांव सैदपुर से अपने पास गांव हरचंदपुर में ले आए थे और गांव हरचंदपुर की माटी में ही पलकर बड़े हुए निखिल दायमा ने यहां पर हरचंदपुर-खरौदा के बीच स्थित एशियन पब्लिक सीनियर सैकेंडरी स्कूल से वर्ष-2019 के जून महीने में कक्षा 12वीं उत्तीर्ण की। जिसके बाद वह फौज की भर्ती में गए तो उनका वहां भारतीय फौज के लिए चयन कर लिया गया। भारतीय सेना में भर्ती होने के बाद जम्मू कश्मीर के उरी में उनकों तैनाती दी गई। मात्र 19 वर्ष की आयु में ही निखिल दायमा जम्मू कश्मीर के उरी में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। जैसे ही 19 वर्षीय निखिल दायमा के शहीद होने की सूचना गांव हरचंदपुर व सैदपुर में आई, पूरे गांव व क्षेत्र में मातम सा छा गया। जवानी की दहलीज पर पैर रखने वाले अविवाहित 19 वर्षीय निखिल दायमा की शहादत से उनके घर में हाहाकार मचा है। शहादत पाने वाले मात्र 19 वर्षीय नौजवान निखिल दायमा के बुजुर्ग पिता मंजीत दायमा, मां सविता दायमा के साथ-साथ फूफा कैप्टन ज्ञान सिंह और बुआ मीना देवी समेत परिजनों और यार-दोस्तों व चहेतों की आंखों में आंसू थमने का नाम नही ले रहे है लेकिन इस गमगीन माहौल में रोते हुए बस एक ही बात निखिल दायमा की मां सविता दायमा के मुंह से निकल रही थी कि मेरे लाडले ने देश नाम रोशन किया है। उनकी शहादत पर मुझे गर्व है। बस एक बार अपने लाडले का मुंह देख लूं। मेरे बेटे ने पीठ पर नही सीने पर गोली खाकर आतंकियों को वीर होने का परिचय दिया है। गांव हरचंदपुर में स्कूल चलाने वाले एशियन पब्लिक सीनियर सैकेंडरी विद्यालय प्रबंधन समिति चेयरमैन सचिन लोहिया और निर्देशिका भारती लोहिया तथा गांव हरचंदपुर में रहने वाले प्रमुख लोगों का कहना है कि जब मात्र 19 वर्ष की उम्र में निखिल दायमा का भारतीय फौज में चयन हुआ तो उनकी छाती गर्व से चौड़ी हो गई थी। निखिल दायमा इसी वर्ष में बारह जनवरी को अपनी छुटिटयां बिताकर वापिस फौज में डयूटी पर गए थे। निखिल दायमा को उनकी बुआ का लडक़ा अरूण खुद दिल्ली एयरपोर्ट तक छोडक़र आया था। अरूण और उसके परिजनों को यह भरोसा ही नही हो रहा है कि अब निखिल दायमा उनके बीच नही रहा और आतंकियों से मुकाबला करते हुए उसने अपनी शहादत दे दी। शहीद निखिल दायमा के फूफा कैप्टन ज्ञान सिंह ने बताया कि निखिल दायमा का एक छोटा भाई चंदन दायमा है, जो फिलहाल गांव आलूपुर के सरकारी स्कूल में कक्षा 12वीं में शिक्षा ग्रहण कर रहा है और उसके माता-पिता दोनों खेतीबाड़ी कर अपने घर की आजीविका चलाते है। दुख और गम में डूबी शहीद निखिल दायमा की बुआ मीना देवी भामला निखिल की शहादत की खबर सुनकर अपने घर आने-जाने वालों से बस यही कहती है कि उनका बेटा निखिल अभी आने वाला है। गांव सिरसका में रहने वाले युवा समाजसेवी अमित अधाना का कहना है कि शहीद निखिल दायमा के वीरगति प्राप्त होने की खबर आने के बाद परिजनों की तमाम आस, उम्मीदें धूमिल हो गई है। जहां शहीद निखिल दायमा के परिजनों को अपने लाडले की शहादत पर गर्व व नाज महसूस हो रहा है, वहीं गांव हरचंदपुर व आसपास गांवों के लोग अपने इस देशभक्त होनहार युवा सैनिक की वीरता की गाथाएं कहते हुए थक नहीं रह रहे है। बता दें कि सोहना इलाके को सैनिकों की खान कहा जाता है। ब्लॉक के हर गांव में शायद ही कोई ऐसा घर होगा, जिस घर से नौजवान भारतीय सेना में ना हो। कई परिवार तो ऐसे है, जहां एक ही घर से कई-कई जवान भारतीय सेना में भर्ती है और राष्ट्र धर्म निभा रहे है। युवाओं में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। यहां के वीरों ने चाहे देश की सरहद पर सेवा की बात हो या विदेश में जाकर अपने देश का नाम रोशन करने की, हर बार अपने देश व गांव का नाम शान से रौशन किया है। गांव नाहरपुर रूपा के पूर्व सरपंच धर्मबीर डागर अलीपुरिया, प्रमुख समाजसेवी व भाजपा नेता भाई राकेश जैन झिरका वाले, जजपा के वरिष्ठ क्षेत्रीय नेता चौधरी रोहताश रिठौजिया, शिक्षाविद सचिन लोहिया व भारती लोहिया आदि समेत क्षेत्र के लोगों का कहना है कि सोहना क्षेत्र को सैनिकों की खान और देशभक्तों का गांव कहा जाता है। आजादी के संग्राम में भी सोहना, हरचंदपुर, रिठौज, खेड़ला, दमदमा, अभयपुर, रायसीना, गढ़ीमुरली, अलीपुर, घामडौज, भौंड़सी और आसपास लगते गांवों में रहने वाले लोगों ने अहम भूमिका निभाई थी। देश की आजादी से पहले की बात हो या फिर आजादी से लेकर अब तक जब-जब भारत देश पर कोई संकट आया, यहां के वीरों ने अपने सीने पर गोली खाकर क्षेत्र का नाम रोशन किया है। इतिहास साक्षी है कि दर्जनों युवाओं ने अपने देश की आन, बान व शान की खातिर शहादत दी है।
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