सोहना,(उमेश गुप्ता): तीन कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ दिल्ली बार्डर पर 2 महीने से भी अधिक समय से शांतिपूर्वक और अहिंसक तरीके से चल रहे किसानों के आंदोलन को उपद्रवियों ने दिल्ली में गणतंत्र दिवस
र उपद्रव व लाल किले की प्राचीर पर गैर भारतीय झंडा लहराकर ऐसा पलीता लगाया है, जिसकी भरपाई होना संभव नही है। वही अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों के सामने भी अब अपने आंदोलन को शांतिपूर्वक तरीके से चलाने का रास्ता आसान नही रहा है। जागरूक लोगों की माने तो राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी को बंधक बनाकर लालकिले की प्राचीर पर तिरंगा से अलग झंडा फहराने और मुख्य मार्गों पर हिंसक वारदातों से किसान आंदोलन को पहले से मिल रहा जनसमर्थन कम हो सकता है। चाहे संयुक्त किसान मोर्चा ने ट्रैक्टर परेड़ के नाम पर निहंग सिख समुदाय से जुड़े लोगों के दिल्ली की सडक़ों पर उपद्रव करने से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है। बावजूद इसके किसान आंदोलनों की साख पर बटटा जरूर लगा है और किसान नेताओं की किरकिरी भी हो रही है। कल तक आंदोलन चला रहे जो किसान नेता भाजपा को कठघरे में खड़ा कर रहे थे, आज भाजपा किसान नेता व आंदोलन को कठघरे में खड़ा कर रही है। जिससे किसान नेता बैकफुट पर नजर आ रहे है और इस पूरे हिंसावादी प्रकरण के लिए दीपू सिद्धू को आरोपी मानकर उसे कोस रहे है तथा कह रहे है कि पहले से ही दीपू सिद्धू इस तरह की हरकते कर रहा था। संयुक्त किसान मोर्चा का लालकिले पर जाने का कोई निर्णय ही नही था। बावजूद इसके किसान आंदोलन की आड़ में उपद्रवियों ने खुलकर ऐसा नंगा नाच नचाया कि गणतंत्र शर्मसार हो गया।
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