एस.के. सिंह, नई दिल्ली। बैंकों की जमा और कर्ज वृद्धि दर में अंतर पर इन दिनों बहुत चर्चा हो रही है। जमा की तुलना में कर्ज वृद्धि दर लगातार अधिक रहने पर सरकार और रिजर्व बैंक, दोनों चिंता जता चुके है
ं। उनकी चेतावनी के बाद पिछले कुछ हफ्तों में यह अंतर कम हुआ है। लगातार 3 से 4 प्रतिशत चल रहा अंतर 20 सितंबर तक घट कर 1.62% पर आ गया। लेकिन यह ट्रेंड कब तक रहेगा यह कहना मुश्किल है। माना जा रहा है कि आरबीआई अगले हफ्ते नहीं तो दिसंबर में होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट घटाएगा। बैंक कर्ज सस्ते होंगे तो कर्ज की मांग और बढ़ने की उम्मीद है। दूसरी तरफ बैंकों पर जमा पर ब्याज घटाने का भी दबाव रहेगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय बैंकों के बीच जमा राशि जुटाने की प्रतिस्पर्धा है। वे जमा पर ब्याज में तेजी से कटौती नहीं करेंगे। इसलिए जमा पर अधिक ब्याज का दौर कुछ और समय तक जारी रह सकता है। उनका यह भी मानना है कि बैंक एफडी को अलग एसेट क्लास मान कर टैक्स में रियायत दी जाए तो इसका आकर्षण बढ़ सकता है। सरकार और आरबीआई की चिंता वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ दिनों पहले बैंक प्रमुखों के साथ बैठक में उन्हें अपने मूल बिजनेस यानी जमा राशि जुटाने और कर्ज देने पर फोकस बढ़ाने को कहा। उन्होंने कहा कि आम लोगों से जमा राशि बढ़ाने के लिए बैंक इनोवेटिव और आकर्षक स्कीम लेकर आएं। खास तौर से ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में ग्राहक सेवा बढ़ाने पर जोर देते हुए वित्त मंत्री ने कहा, “जमा वृद्धि दर बढ़ाने के लिए सिर्फ बड़ी जमा पर फोकस करने के बजाय बैंकों को छोटी जमा के पुराने पारंपरिक तरीके पर भी ध्यान देने की जरूरत है। बैंकों की आजीविका छोटी जमा जुटाने पर निर्भर है, बड़ी जमा राशि जुटाना तो हमेशा आलसी बैंकरों का काम रहा है।” आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, “हम कर्ज और जमा वृद्धि दर में 300-400 आधार अंकों का अंतर देख रहे हैं। पिछले कुछ महीने से जमा वृद्धि दर कम है…। अभी कोई संकट नहीं है, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे लिक्विडिटी प्रबंधन में समस्या आ सकती है। इसलिए सावधानी बरतते हुए बैंकों से जमा वृद्धि में गिरावट को थामने के लिए कहा जा रहा है।” दास ने कहा कि कर्ज की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बैंक कम अवधि वाले नॉन-रिटेल डिपॉजिट और दूसरे तरीके अपना रहे हैं। इससे बैंकिंग सिस्टम में तरलता की समस्या आ सकती है। बैंक कर्ज और जमा का ट्रेंड क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर और चीफ रेटिंग्स ऑफिसर कृष्णन सीतारमण जागरण प्राइम से कहते हैं, “ऐतिहासिक रूप से देखें तो बैंकिंग सेक्टर में पहले भी जमा वृद्धि दर, कर्ज वृद्धि की तुलना में कम रही है। वित्त वर्ष 2023-24 में जब बैंक जमा पर ज्यादा ब्याज दे रहे थे तो जमा वृद्धि दर भी अधिक थी। मौजूदा वित्त वर्ष (2024-25) में ब्याज दरें स्थिर हो गई हैं तो जमा वृद्धि दर भी धीमी हो गई।” एसबीआई रिसर्च का आकलन है कि वित्त वर्ष 2022-23 में बैंक जमा और कर्ज दोनों 1951-52 के बाद सबसे अधिक बढ़े। जमा में 15.7 लाख करोड़ और कर्ज में 17.8 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई। वर्ष 2023-24 में जमा में 24.3 लाख करोड़ और कर्ज में 27.5 लाख करोड़ की वृद्धि हुई। कृष्णन के अनुसार, यह सही है कि कर्ज की तुलना में जमा वृद्धि दर लगातार कम है, लेकिन अभी तक बैंक दूसरे तरीकों से अपने फंड की जरूरत पूरी करने में सफल रहे हैं। एक तो उनके पास महामारी के बाद अतिरिक्त लिक्विडिटी थी, इसके अलावा उन्होंने वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) में अतिरिक्त जमा का भी इस्तेमाल किया। लेकिन पिछले दो वित्त वर्ष में बैंकों का अतिरिक्त एसएलआर 250 आधार अंक घट गया है। इससे जमा वृद्धि के मोर्चे पर उनकी स्थिति विकट हो गई है। रिजर्व बैंक ने 20 सितंबर को जारी अपने बुलेटिन में बताया है कि बैंक जमा राशि जुटाने के लिए लगातार सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (सीडी) पर निर्भर हैं, ताकि कर्ज की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके। हालांकि कर्ज और जमा वृद्धि दर में अंतर अब कम होने लगा है। हालांकि इसके और कारण भी हैं। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFC) विदेशी बांड जारी करके भी पैसे जुटा रही हैं। दूसरी ओर, एसेट क्वालिटी की समस्या के कारण माइक्रोफाइनेंस संस्थानों की कर्ज वृद्धि दर कम हुई है। आरबीआई के अनुसार, इस साल (2024-25) प्राइमरी बाजार में 6 सितंबर तक सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट के जरिए 65% अधिक धनराशि जुटाई गई है। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 2.72 लाख करोड़ की तुलना में इस वर्ष 4.51 लाख करोड़ रुपये जुटाए गए हैं। यह मुख्य रूप से बैंकों की कर्ज और जमा वृद्धि दर में अंतर को पूरा करने के लिए है। एनबीएफसी के लिए आरबीआई के रिस्क वेटेज बढ़ाने के कारण एनबीएफसी कॉमर्शियल पेपर से ज्यादा रकम जुटा रहे हैं। अप्रैल-अगस्त के दौरान उन्होंने पिछले साल के 5.88 लाख करोड़ के मुकाबले 6.28 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं। आरबीआई गवर्नर ने जो ढांचागत समस्या की बात कही, उसका प्रमुख कारण है कि छोटी जमा पर बैंकों को कम लागत आती है। सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट या दूसरे तरीकों से फंड जुटाने पर उन्हें अधिक ब्याज देना पड़ता है। कुल जमा में सेविंग्स का हिस्सा जून 2024 में घट कर 29.8% रह गया, जो एक साल पहले 31.8% था। युवाओं में एफडी का आकर्षण घटा बैंकरों के साथ बैठक में वित्त मंत्री ने कहा, “छोटी बचत वाले परिवारों के पास भी शेयर बाजार में निवेश का विकल्प है। ज्यादा रिटर्न के लिए लोग वहां जा रहे हैं। इसलिए बाजार में खुदरा निवेश बढ़ा है…। जब उनके पास इतने विकल्प हैं तो जमा राशि जुटाने के लिए बैंकों को भी नए तरीके अपनाने होंगे।” आरबीआई गवर्नर ने कहा कि आम लोग अपनी बचत म्यूचुअल फंड और पेंशन फंड जैसे इंस्ट्रूमेंट में लगा रहे हैं, इसलिए बैंक जमा अनुपात कम हो रहा है। दरअसल, युवाओं में एफडी का आकर्षण घटा है। एसबीआई रिसर्च के अनुसार, 47% एफडी वरिष्ठ नागरिकों के हैं। दूसरी तरफ पूंजी बाजार में निवेश करने वालों की औसत उम्र सिर्फ 32 साल रह गई है। इनमें भी 40% निवेशक 30 साल से कम उम्र के हैं। अलग-अलग एसेट पर रिटर्न की तुलना करें तो इसका कारण स्पष्ट हो जाता है। सालाना 7-7.5% ब्याज की दर से 10,000 रुपये पर 10 साल में लगभग 11,000 रुपये ब्याज मिलेगा। यानी इस दर पर 10 साल में रकम दोगुनी होगी। दूसरी तरफ सेंसेक्स पिछले 10 वर्षों में 3.7 गुना बढ़ा है। वर्ष 2014 से 2023 के दौरान पांच साल ऐसे बीते जब सोने पर रिटर्न एफडी से कम या निगेटिव रहा। लेकिन बाकी वर्षों में इसने 10% से ज्यादा रिटर्न दिया है। सोना 2024 में तो 30% बढ़ चुका है। डाक घर की सावधि जमा (एफडी) और कंपनियों की तरफ से जारी किए जाने वाले बांड पर भी बैंकों से ज्यादा ब्याज मिलता है। वित्त मंत्री ने बैंकों से ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों के ग्राहकों पर ध्यान देने को कहा है, लेकिन यहां समस्या आमदनी की है। पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के आंकड़े बताते हैं 2023-24 में कुल रोजगार में कृषि क्षेत्र का हिस्सा बढ़ा है। यह 2022-23 के 45.8% की तुलना में पिछले वर्ष 46.1% हो गया। अर्थात कृषि पर लोगों की निर्भरता बढ़ी है, जहां आमदनी निश्चित नहीं होती। टैक्स प्रावधानों के कारण भी एफडी का आकर्षण कम विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे समय जब लोग बचत के बजाय निवेश की ओर जा रहे हैं, बैंकों ने डिपॉजिट को आकर्षित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास भी नहीं किए हैं। उनमें एफडी के बजाय थर्ड पार्टी प्रोडक्ट बेचने का चलन बढ़ा है। कुछ बैंकर्स ने जमा पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स में राहत का सुझाव दिया है। टैक्स के लिहाज से डिपॉजिट दूसरे इंस्ट्रूमेंट की तुलना में कम आकर्षक हैं। सेबी रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार जीतेंद्र सोलंकी कहते हैं, फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) या रेकरिंग डिपॉजिट (आरडी) पर मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल होता है। यह आपकी कुल आय में जुड़ता है और स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स लगता है। आयकर रिटर्न में इसे अन्य स्रोतों से आय के तौर पर दिखाना पड़ता है। साल में ब्याज आय 40,000 रुपये से अधिक होने पर बैंक टीडीएस काटते हैं। वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह सीमा 50,000 रुपये है। टीडीएस ब्याज भुगतान के समय ही कटता है। अगर आपने तीन साल के लिए एफडी कराया है तो हर साल का ब्याज देने से पहले बैंक टीडीएस काटेगा। अगर कुल सालाना आय 2.5 लाख रुपये से कम है तो टीडीएस नहीं कटेगा, लेकिन इसके लिए बैंक को फॉर्म 15जी (वरिष्ठ नागरिकों के लिए फॉर्म 15एच) जमा देना पड़ेगा। पांच साल या इससे अधिक अवधि की एफडी पर आयकर कानून की धारा 80सी के तहत डिडक्शन का लाभ लिया जा सकता है। एफडी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें रिटर्न की गारंटी होती है। एफडी की अवधि 7 दिन से लेकर 10 साल तक होती है, इस तरह समय का लचीलापन मिलता है। अन्य इंस्ट्रूमेंट के विपरीत बैंक एफडी के लिए कोई मेंटनेंस फीस नहीं लेते। लॉक-इन पीरियड होने के बावजूद इसे समय से पहले भुनाया जा सकता है, हालांकि तब बतौर पेनल्टी ब्याज की दर कम हो सकती है। हालांकि एफडी की सीमाएं भी हैं। जैसे, टैक्स-सेवर एफडी 80सी के तहत ही आता है, जिसमें पीएफ, होम लोन प्रिंसिपल समेत कई इंस्ट्रूमेंट शामिल हैं। टैक्स-सेवर एफडी बनाम इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम टैक्स-सेवर एफडी और ईएलएसस की तुलना पर सोलंकी बताते हैं, एफडी में रिटर्न निश्चित होता है लेकिन ईएलएसएस में रिटर्न बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है। एफडी में जोखिम लगभग नहीं होता, लेकिन बाजार गिरने पर ईएलएसएस में घाटा हो सकता है। एफडी में कम से कम पांच साल का लॉक-इन होता है, जबकि ईएलएसएस में यह तीन साल है। धारा 80सी के तहत उपलब्ध इंस्ट्रूमेंट में सबसे कम लॉक-इन अवधि ईएलएसएस की ही है। एफडी में मिलने वाली ब्याज आय पूरी तरह टैक्सेबल (स्लैब के अनुसार) होती है। ईएलएसएस में लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) 12.5% है, लेकिन अगर कैपिटल गेन एक लाख रुपये से कम है तो एलटीसीजी नहीं लगता। अगर निवेशक डिविडेंड का विकल्प चुनता है तो उसके स्लैब रेट के मुताबिक डिविडेंड पर ब्याज लगेगा। इसके अलावा सालाना 5,000 रुपये से अधिक डिविडेंड पर 10% काटने का भी प्रावधान है। दो-तिहाई से ज्यादा एफडी 7% से अधिक ब्याज वाले बैंकों के पास इस समय जो एफडी हैं, उनमें से दो-तिहाई से ज्यादा 7% से अधिक ब्याज वाले हैं। मार्च 2022 में सिर्फ 4.5% एफडी पर बैंक 7% से अधिक ब्याज दे रहे थे। उसके बाद महंगाई पर अंकुश के लिए आरबीआई ने अलग-अलग चरणों में रेपो रेट में कुल 250 आधार अंक (2.5%) की बढ़ोतरी की। जमा पर ब्याज दरें बढ़ने के साथ अधिक ब्याज वाली जमाराशि का अनुपात भी बढ़ता रहा। मार्च 2023 में 33.5%, जून 2023 में 45.4%, सितंबर 2023 में 54.7%, दिसंबर 2023 में 61.4%, मार्च 2024 में 64.4% और जून 2024 में 66.9% एफडी 7% से ज्यादा ब्याज वाले थे। आरबीआई ने फरवरी 2019 से मार्च 2022 तक रेपो रेट 2.5% घटाया था। उस दौरान नई एफडी पर औसत ब्याज दर 2.59% और कर्ज पर औसत ब्याज दर 2.32% घटी थी। एक साल के मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स-बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) में 1.55% की गिरावट आई थी। मौद्रिक सख्ती का दौर शुरू होने पर आरबीआई ने मई 2022 से रेपो रेट 2.5% बढ़ाया। मई 2022 से अगस्त 2024 तक बैंकों का एमसीएलआर औसतन 1.7% बढ़ा। मई 2022 से अगस्त 2024 तक नए कर्ज पर औसत ब्याज दर 1.89% बढ़ी। एक साल का एमसीएलआर सरकारी बैंकों का 1.65% और निजी बैंकों का 1.70% बढ़ा। जहां तक जमा की बात है, तो नई एफडी पर ब्याज दर में मई 2022 से जुलाई 2024 तक औसतन 2.45% वृद्धि हुई है। नई जमा पर औसत ब्याज दर सरकारी बैंकों में 2.64% और निजी बैंकों में 2.05% बढ़ी।
Comments