भारतीय आईटी उद्योग उम्मीद कर रहा है कि अंतरराष्ट्रीय ग्राहक जल्द ही अपना प्रौद्योगिकी बजट बढ़ाना शुरू कर देंगे क्योंकि यूरोप और अमेरिका ने ब्याज दरें कम करना शुरू कर दिया है। ऐसे में आईटी इं
डस्ट्री में हायरिंग को लेकर सकारात्मकता आई है। 250 अरब डॉलर के भारतीय आउटसोर्सिंग उद्योग के लिए यूरोप और अमेरिका प्रमुख बाजार हैं। अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि इनोवेशन को लेकर बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की बढ़ती मांग, क्लाउड ट्रांसफॉर्मेशन, साइबर सिक्योरिटी सॉल्यूशंस और लगातार लागत में कटौती के दबाव से आउटसोर्सिंग को फायदा होगा। ऐसे में जॉब मार्केट में नए सेक्टर में मौके बढ़ेंगे। फिलहाल अगले क्वॉर्टर में नौकरियां बेहतर होने का अनुमान इंडस्ट्री लगा रही है। हालांकि एक्सपर्ट कहते हैं कि एआई में अधिक तकनीकी नौकरियां नहीं बनेंगी। आईटी प्रोफेशनल्स के लिए क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सिक्योरिटी में मौके बढ़ेंगे। वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि आईटी सेक्टर में अगर लगातार नौकरियां बढ़ानी हैं तो यूरोप और यूएस पर निर्भरता कम करनी होगी। आईटी कंपनी विभवंगल अनुकुलकारा प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और प्रबंध निदेशक सिद्धार्थ मौर्या कहते हैं कि संभवतः यूरोपीय लोगों द्वारा ब्याज दरों में कटौती के भारतीय आईटी क्षेत्र के लिए सकारात्मक और नकारात्मक दोनों परिणाम होंगे। सबसे पहले, ये कटौतियां यूरोप की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में मदद कर सकती हैं, जिससे आईटी सेवाओं की मांग बढ़ सकती है और भारतीय आउटसोर्सिंग, अर्थात आईटी सेवाओं के लिए अवसर बढ़ सकते हैं। दूसरे, वे कड़ी लागत वाली प्रतिस्पर्धा को जन्म देंगे। हालांकि, इससे भी भारतीय कंपनियों को फायदा हो सकता है क्योंकि उनके ग्राहक उन्हें कम लागत वाले सेवा प्रदाताओं के रूप में देखते हैं। विनिमय दरों में बदलाव से भारत को ऑफशोर एक्टिविटीज से मिलने वाला तुलनात्मक लाभ कम हो जाएगा, लेकिन इसमें अधिक असर नहीं पड़ेगा। आईटी कंपनी टैगलैब्स के हरिओम सेठ कहते हैं कि यूरोपीय कंपनियों का अपने बाज़ार में विस्तार अन्य लाभ ला सकता है, विशेष रूप से साझेदारी और आउटसोर्सिंग के मामले में, जिसका उपयोग भारतीय आईटी कंपनियां अच्छी तरह से कर सकती हैं। नॉलेज माइग्रेशन के मामले में भी मौके बनेंगे। भारतीय कंपनियों के पास डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, क्लाउड माइग्रेशन और यहां तक कि परफॉर्मेंस बेस्ड एनालिटिक्स की काबिलियत हैं जो नए बाजारों में जाने की कोशिश कर रहीं यूरोपीय कंपनियों के लिए काम आएंगी। इसके अलावा, मेजबान देश में इन यूरोपीय फर्मों की स्थापना के साथ, भौतिक बुनियादी ढांचे, सिस्टम इंटीग्रेशन और रखरखाव की स्थापना में सहायता के लिए भारतीय कंपनियों के पास मौके और क्षमताएं दोनों है। यूरोप और यूएस पर कम करनी होगी निर्भरता स्टार्टअप इंटरप्रिन्योर, इन्वेस्टर और एडवायजर धीरज आहूजा कहते हैं कि यूएस और यूरोप पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। यूएस ने बीते तीन चार दशकों में डॉलर की शक्ति का बेइंतहा इस्तेमाल किया। आज दुनिया के कई मुल्क डॉलर की पॉवर को चैलेंज कर रहे हैं। यूएस की इकोनॉमी में बड़े बदलाव आने वाले हैं। इसके चलते आईटी कंपनियों को इस बारे में सोचना पड़ेगा कि कैसे यूएस और यूरोप के अलावा दुनिया के अन्य हिस्सों में अपनी भागीदारी को बढ़ाएं। आईटी कंपनियों को साउथ ईस्ट एशिया, मिडिल ईस्ट एशिया पैसिफिक, अफ्रीका आदि में अपनी पकड़ को मजबूत करना होगा। कई कंपनियों ने इस पर काम करना शुरू कर दिया है। आने वाले एक-दो साल में फिलहाल जितनी नौकरियां आती थीं, उतनी आने वाली नहीं है। फेड रेट कम होने से फौरी तौर पर रोजगार बढ़ेंगे लेकिन जितनी उम्मीद और आवश्यकता है, उतना बाजार पर असर नहीं पड़ेगा।
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