सोहना,(उमेश गुप्ता): यहां पर शहर में पलवल रोड स्थित प्राचीन शनिदेव मंदिर प्रांगण में महंत बाबा मुख्त्यारपुरी जी महाराज का कहना है कि बर्डफ्लू राजस्थान सहित देश के 8 राज्यो में फैल चुका है। बेज
बान पक्षी कोए, कबूतर, बतख, मुर्गी, कोयल आदि रोजाना बड़ी संख्या में दम तोड़ रहे है। पक्षियों की लगातार हो रही मौतों को देखते हुए विशेषज्ञों ने मांस नही खाने की सलाह दी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मुर्गी के अंडे और मछली सेवन भी नुकसान कर सकता है। बर्ड फ्लू के प्रकोप के मददेनजर एक बार फिर शाकाहार का महत्व समझा जा सकता है। उन्होने कहा कि हालांकि बदलते परिवेश में मांस खाने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है और अब सनातन संस्कृति को मानने वाले भी मांस खाने लगे है, जो पूरी तरह अनुचित है क्योकि भारत की सनातन संस्कृति में मांस का सेवन निषेध है। विशेषज्ञ भी मानते है कि यदि जानवर के मांस की प्रोसेसिंग सही ढंग से नहीं की गई तो हानिकारक होगा। महंत बाबा मुख्त्यारपुरी जी महाराज का कहना है कि देखा जाए तो विदेशों में फार्महाउसों में पलने वाले जानवरों का ही मांस खाया जाता है। मांस के प्रोसेसिंग की प्रक्रिया भी लम्बी है जबकि भारत में तो गली-कूचों में घूमने वाले जानवरों का मांस भी खा लिया जाता है। अब जब वायरस से पक्षी ही मर रहे है तो मांस के जानलेवा हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है जबकि शाकाहार में ऐसा कभी नहीं होता है। मौसम में बदलाव की वजह से कभी-कभार सब्जियों के स्वाद में फर्क हो जाता है लेकिन शाकाहार से कभी भी शरीर को नुकसान नही होता। मांसाहार में प्रोटीन होने के तर्क बेमानी है। महंत बाबा मुख्त्यारपुरी जी महाराज ने बताया कि शाकाहार में भी ऐसी अनेक वस्तुएं है, जो शरीर में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह शाकाहार के कोई साइड इफेक्ट नहीं होते जबकि मांस खाने वालों को हमेशा खतरा बना रहता है। उन्होने बताया कि पहले भी वक्त-वक्त पर ऐसे कई अध्ययन सामने आए हैं, जब फूड पॉइजनिंग की घटनाएं मांस खाने वालों में ज्यादा होती है। मांस खाने वालों के शरीर की पाचन क्रिया भी धीरे होती है। समुंद्र के किनारे रहने वाले लोगों के लिए सी-फूड ही उपलब्ध होता है लेकिन शहरी क्षेत्र में जहां फल-सब्जियां आराम से उपलब्ध होती है, वहां लोगों को मांस से परहेज करना चाहिए। जो लोग प्रतिदिन मांस खाते हैं, वे यदि एक माह मांस का सेवन त्याग दे तो अपने शरीर में बदलाव देख सकते है। जैन धर्म में तो मांस के सेवन को जीव हत्या से जोड़ रखा है। श्वेताम्बर जैन समाज के साधु-संत तो हमेशा अपने मुंह पर कपड़ा (मास्क) बांधकर रखते है ताकि उनके सांस से भी किसी जीव की हत्या ना हो। अच्छा हो कि ताजा बर्डफ्लू के प्रकोप से लोग मांस के सेवन को त्यागने की सीख ले। जो लोग शौकिया या स्वाद के लिए मांस का सेवन करते है, उन्हे बर्डफ्लू के माहौल में मांस नही खाने का संकल्प लेना चाहिए। शाकाहारी भोजन खाने से मन-दिमाग भी शांत रहता है बल्कि दिमाग ज्यादा स्र्फूत रहता है।
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