छठ व्रत से सबके मनोरथ पूर्ण होते हैं : परमहंस द्विवेदी।

Khoji NCR
2023-11-08 10:32:55

खोजी/सुभाष कोहली कालका/पंचकूला। छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला महापर्व है जो भारत में मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता

ै। इसे और भी कई अन्य नामों जैसे डाला छठ, सूर्योपासना व्रत, षष्ठी व्रत और सूर्य व्रत के नाम से जाना जाता है। पूरे उत्तर भारत मे या कहें तो पूरे भारत वर्ष में शारदीय नवरात्र से शुरू हो कर छठ पूजन की समाप्ति तक लगभग एक माह तक त्यौहार और पर्व का माहौल छाया रहता है। यह ऐसा पर्व है, जो नहाय खाय से शुरू हो कर खरना, डूबते सूर्य को अर्घ्य दे कर पुनः एक बार उगते सूर्य को अर्घ्य दे कर समाप्त होने वाला अत्यंत ही कठिन निर्जला व्रत है। यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमे डूबते सूरज को जल दिया जाता है, अर्थात अर्घ्य दिया जाता है। ततपश्चात दूसरे दिन ही उगते सूरज भगवान को अर्घ्य देकर इस महापर्व की समाप्ति की जाती है। व्रती महिलाएं, पुरुष और बच्चे छठ के प्रसाद के साथ व्रत का पारण करते हैं। भारत मे मुख्य रूप से दो प्रकार के छठ का वर्णन है। पहला चैती छठ और दूसरा कार्तिक छठ है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्थी को नहाय - खाय, पंचमी को खरना, षष्ठी को निर्जला व्रत के साथ सन्ध्या अर्घ्य और सप्तमी को उषा काल मे सूर्य देवता को अर्घ्य देकर समाप्त कर प्रसाद से पारण किया जाता है। सूर्य की उपासना करके ही मातायें सूर्य के समान तेज़ और यशस्वी पुत्र की कामना भी करती है, इसलिये इस पर्व को सर्वश्रेष्ठ पर्व और सर्वसिद्धि कामना वाला व्रत कहते है। ऐसा नही की यह व्रत केवल महिलाएं ही रखती है, पुरुष भी तथा बच्चे भी इस व्रत को रखते है। केवल ध्यान देना इस बात का होता है कि 36 घण्टे तक चलने वाले इस व्रत में साफ सफाई और पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है। हिंदी पंचांग की मान्यता के अनुसार कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाते है, तो ठीक दीवाली के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी को छठ मनाया जाता है। छठ में किसी भी मूर्ति की पूजा नही की जाती है बल्कि सूर्य देवता और छठी मैया का आह्वान किया जाता है। इस पूजा में नदी या तालाब के किनारे मिट्टी की वेदी बना कर इस पर ही पूजन की शुरुआत होती है।

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