कीर्ति ने बताया कि वृंदावन और मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की पोशाक और पर्दे बनाने का कार्य होता है लेकिन वह केवल लोकल तक ही सीमित था। अब रिटेल से शुरू हुआ व्यापार विदेश में फैल चुका है। अब इस समय
करीब 30 से अधिक महिलाएं इससे आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। महिलाओं का करवां धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है। शहर की कला को देश-विदेश में पहचान दिलाने के लिए मथुरा के मसानी में रहने वाली कीर्ति ने 2016 में एक निजी कंपनी की नौकरी छोड़ दी। परिवार के लोगों का साथ मिलने के बाद वृंदावन की कला को आगे बढ़ाने के लिए जून 2016 में स्टार्टअप शुरू किया। उन्होंने बताया कि वृंदावन और मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की पोशाक और पर्दे बनाने का कार्य होता है, लेकिन वह केवल लोकल तक ही सीमित था। अब रिटेल से शुरू हुआ व्यापार विदेश में फैल चुका है। डिविनिटी कंपनी की फाउंडर कीर्ति ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के बड़े मंदिरों में बैकड्राप पर्दे उन्हीं के लगाए जा रहे हैं। शहर की 50 महिलाओं को दे रही रोजगार एक बैकड्राप पर्दे को तैयार करने में एक महीने का समय लगता है। 3डी का लुक देने के लिए पर्दे में रेशम, जरी, सितारे और स्टोन का प्रयोग किया जा रहा है। शहर की महिलाओं को इससे रोजगार मिल रहा है। 2016 में दो महिलाओं से शुरुआत की थी। अब इस समय करीब 30 से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। महिलाओं का करवां बढ़ता ही जा रहा है। यूपी प्रो प्रापर प्रोजेक्ट के जरिए महिलाओं को तलाशा कीर्ति ने बताया कि उन्होंने यूपी प्रो प्रापर प्रोजेक्ट के जरिए शहर के विभिन्न कारखानों में कार्य करने वाले कामगारों से बातचीत की। इसके साथ ही ऐसे कामगारों की पहचान की जो कार्य में पारंगत होने के बाद भी घरों में बैठे हुए हैं। बेरोजगार कामगारों को साथ लेकर की व्यापार की शुरुआत बेरोजगार कामगारों को साथ लेकर व्यापार की शुरुआत की। इसके साथ ही एक जिला एक उत्पाद के लिए भी कार्य किया। आत्मनिर्भर विमेंस एसोसिएशन संस्था के जरिये महिलाओं के लिए कार्य कर रही हैं। करीब 60 से अधिक महिलाएं संस्था से जुड़ी हुई हैं। उन्हें सशक्त बनाया जा रहा है। इसके साथ ही कीर्ति मथुरा की पहली एक्सपोर्टर हैं, जिनको आइईसी कोड मिला है। विदेश में कर रही व्यापार विदेश में स्थित इस्कान मंदिरों ने कीर्ति की कंपनी में बने बैकड्राप पर्दों की काफी मांग है। उन्होंने बताया कि लंदन, न्यू जर्सी, कोलंबस, अमरीका आदि देशों में उनके उत्पाद जा रहे हैं। पर्दे का वजन 20 किलो से अधिक होता है। हर महीने करीब 10 पर्दे तैयार किए जा रहे हैं। जुहू मुंबई, द्वारिका के साथ अन्य इस्कान मंदिर में पर्दों को भेजा गया है।
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