नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकारी नौकरियों और नामांकनों में आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग (EWS) के लोगों के लिए 10 फीसद आरक्षण को मंजूरी दे दी। इसका किस्सा 2019 से शुरू हुआ था और अब जाकर अंतत: सु
्रीम कोर्ट ने अपना अंतिम फैसला सुनाया है। जानें किस तरह से बढ़ी आरक्षण की ये गाथा... जनवरी 2019 में हुआ था संशोधन विधेयक में 103वें संशोधन को 8 जनवरी 2019 को लोकसभा में मंजूरी मिली थी और एक दिन बाद 9 जनवरी को राज्यसभा ने इसे मंजूरी दे दी। इसके बाद ही 2019 के फरवरी में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। 8 जनवरी 2019- विधेयक में 103वें संवैधानिक संशोधन को लोकसभा में मंजूरी दे दी गई थी। 9 जनवरी - राज्यसभा ने भी संशोधन को दिखाई हरी झंडी 12 जनवरी- कानून व न्याय मंत्रालय ने नोटिस जारी कर बताया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से भी सहमति दे दी गई है। फरवरी- सुप्रीम कोर्ट में नए कानून को दी गई चुनौती 6 फरवरी- संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर दिया। 8 फरवरी- सुप्रीम कोर्ट ने EWS के 10 फीसद कोटा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया 8 सितंबर 2022- चीफ जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपीलों पर सुनवाई के लिए नई बेंच का गठन किया। 13 सितंबर - सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई शुरू कर दी 27 सितंबर- सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर अपना आदेश सुरक्षित रखा 7 नवंबर- सुप्रीम कोर्ट ने 3:2 की बहुमत के साथ 103वें संशोधन के तहत EWS को नामांकन व सरकारी नौकरी में 10 फीसद आरक्षण को मंजूरी दे दी। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने सोमवार को EWS आरक्षण को वैध बताया। केंद्र के फैसले को संविधान का उल्लंघन बताया गया था जिसे कोर्ट ने आज पूरी तरह नकार दिया। चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाया
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