निंदा, चुगली, ईर्ष्या आपके प्रत्येक विकास को अवरुद्ध करती हैं, परमात्मा का सुमिरन कर लोगे तो भी मालामाल हो जाओगे। : कंवर साहेब महाराज जी सत्संग का अर्थ है कि, परमात्मा का संग, सत्य का संग। : कंवर
ाहेब महाराज जी भिवानी दिनोद धाम जयवीर फोगाट, सत्संग अपनाने से दुर्मति दूर होकर सुमति आ जाती है लेकिन सत्संग मन वचन और कर्म से होना चाहिए। सत्संग तीन तरह से आपको पवित्र करता है। सत्संग आपको सेवा दान और परमात्मा की महत्ता बताता है। तन की पवित्रता सेवा से, धन की पवित्रता दान से और मन की पवित्रता परमात्मा के सुमिरन से होता है। बार बार सत्संग में जाने से हमें हर पल चिंतन का अवसर मिलता है। यह सत्संग वचन परमसन्त सतगुरु कँवर साहेब जी ने वर्ष 2021 के पहले भिवानी के रोहतक रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में आयोजित रूहानी सत्संग में फरमाए। कोरोना महामारी के चलते नियमो की पालना में सत्संग का आयोजन किया गया। संगत की हाजरी ना करवा कर सत्संग को वर्चुअल तरीके से संगत तक प्रसारित किया गया। हुजूर महाराज जी ने समस्त मानवता को नववर्ष की शुभकामनाएं देते हुए फरमाया कि नववर्ष का पहला दिन चिंतन और मनन करने का सुअवसर है। विचार विमर्श करो कि आपने बिगत वर्ष मे कितनी तरक्की की। तरक्की आर्थिक क्षेत्र की नहीं अपितु सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि जैसे व्यापारी साल के अंत में अपनी लाभ हानि सुख दुख का लेखा झोखा रखते हैं। पुराने से सबक लेते हुए आने वाले साल की योजनाएं बनाता है। बीती बातों से शिक्षा लेता है और सुधार के नव संकल्प बनाता है वैसे ही इंसान को भी यह विचार करना चाहिए कि बीते समय में हमने क्या खोया और क्या पाया। जो कमियां थी उन्हें दूर कर अपने उज्ज्वल भविष्य की नींव रखनी चाहिए। कोरोना महामारी ने बिगत वर्ष को दुखदायी बनाया लेकिन जिसने संयम धारा, नियमो की पालना की उनको दुख छू भी नहीं पाया। हुजूर कँवर साहेब ने फरमाया कि मन को मलिन वासना से मुक्त करो क्योंकि पात्र वहीं भरता है जो खाली हो। मन इन बुरी बातों से तभी खाली होगा जब हम उनमें सतगुरु के वचन भरे रखेंगे। सेवा भक्ति का अनिवार्य अंग हैं। सेवा आपको निखालिश करती है। जहां सेवा करने से आपका अहंकार भागता है वहीं आपको बड़े बुजुर्गों की दुवाएँ भी मिलती है। गुरु महाराज जी ने कहा कि एक और आवश्यक चीज है मीठा वचन। कड़वे वचन दूसरे के मन में ऐसा घाव दे जाता है जो कभी नहीं भरता। उन्होंने कहा कि जैसे मैले कपड़े को साबुन से धोते हैं वैसे ही मन का मैल सत्संग वचनों से छूटता है। गुरु महाराज जी ने फरमाया कि जिस घर में सुमति नहीं है वो नरक के समान है। जिस घर में प्यार प्रेम सदाचार है वो घर स्वतः ही स्वर्ग है। छोटी छोटी बातों पर लड़ाई झगड़ा और कलह क्लेश किस बात पर करते हो। क्या आपके साथ जाएगा। जब घर में शांति नहीं होगी तो मन शांत कैसे होगा और अशांत मन में परमात्मा का वास नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि अपनी संगत को ठीक करो क्योंकि जैसी आपकी संगत होगी वैसी ही आपकी मन की गति होती है। निंदा चुगली ईर्ष्या आपके हर तरह के विकास को अवरुद्ध करती हैं। क्योंकि जो हमारी आदत हो जाती है वो ही हमारी प्रकृति बन जाती है। जब आपको किसी और बात से कोई लाभ ही नहीं है तो उसमें क्यों वक़्त गंवाना। अपनी रहनी को अच्छा करो। रहनी ठीक होगी आपके खान पान से, आपके संग से और आपके बिचारो से। रहनी सुधरेगी महापुरुषों के संग से क्योंकि महासपुरुषो में चंदन जैसा गुण होता है। जैसे चंदन अपने सम्पर्क में आने वाली हर वस्तु में खुशबू भर देता है वैसे ही सन्त महापुरुष अपने संग में आये हर व्यक्ति में अपने सद्गुण भर देते हैं। परमसन्त कँवर साहेब जी ने कहा कि कितना अच्छा अवसर है। साल का अंतिम दिन भी गुरु की शरणाई में परमात्मा के सत्संग में बिताया और साल का पहला दिन भी परमात्मा के गुणगान में बीत रहा है तो ऐसे मंगल समय में यह संकल्प धारो कि मन वचन और कर्म से पवित्र बनोगे। नेक कर्म व परमात्मा के नाम का सुमिरन करोगे। हक हलाल की कमाई खाओगे। बड़े बुजुर्गों मात पिता की सेवा करोगे। छोटो को प्यार प्रेम का सबक सिखाओगे। नया साल का हर पल सतगुरु की संगत में बिताओगे। परहित व परोपकार में जीवन बिताओगे। इस धर्मशाला रूपी जगत में हम दो दिन के मेहमान है तो हमें कोई हक नहीं कि हम इस धर्मशाला को गन्दा करके आने वाले मुसाफिरों के लिए परेशानी पैदा करें। गुरु महाराज जी ने कहा कि बून्द बून्द से घड़ा भरता है इसलिए पूरा दिन में से दो घड़ी भी हम परमात्मा का सुमिरन कर लोगे तो भी मालामाल हो जाओगे। उन्होंने कहा कि इंसान अपने दायरे से नहीं निकलता। इंसान का दायरा उसके अपने हित, स्वार्थ तक ही रहता है जबकि सन्तों का दायरा अति व्यापक है। सन्त हर किसी का भला ही चाहते है। सन्तों का अपना स्वार्थ नहीं होता। वे तो परमार्थ और परोपकार के कारण ही देह धारण करते हैं। इंसान की उन्नति की पहली सीढ़ी नाम के सुमिरन की है। उन्होंने कहा कि नाम हर चीज को पवित्र करने वाला है। हर चीज की अपनी तासीर होती है इसीलिए हम जिस चीज का ख्याल मात्र करते है उसी के गुण हमारे अंतर में उतरने लगते है तो क्यों ना हम ऐसी वस्तु का ही हर पल ख्याल करें जिसका ख्याल हमें हर तरह से फायदा पहुंचाए। ऐसी वस्तु है परमात्मा के नाम का सुमिरन। नववर्ष की शुभकामनाएं देते हुए हुजूर महाराज जी ने कहा कि तीन ही काम आते हैं। हाजिर का हकीम, हाजिर का हाकिम और हाजिर का गुरु। हाजिर से हुज्जत करके और पिछलों की टेक धार कर तो आप और ज्यादा ही उलझोगे। अगर हम आज धन्वंतरि और लुकमान वैध को याद करके अपना इलाज करवा लेंगे क्या। अगर हम बीते हुए राजाओं के आगे टेर लगा कर न्याय पा लेंगे क्या। नहीं पा सकते तो मुक्ति का रास्ता भी आपको वक़्त गुरु ही बताएगा। गुरु देवन का देव है है इसे साध लो सब सध जाएंगे। हुजूर ने कहा कि स्वप्न कभी पूरे नहीं होते। पूरे तो वे ख्याल होंगे जिनको आप पूरा करने के लिए पुरुषार्थ करोगे। इस चौरासी के जंजाल से तभी निकल पाओगे जब किसी पूर्ण सन्त सतगुरु की चरण में जाकर पुरुषार्थ करोगे। किस चार्ज के पीछे भाग रहे हो। किस सुख के पीछे भाग रहे हो। इस जगत में कोई सुखी नहीं है। हर किसी को कोई न कोई दुख लगा ही रहता है। सुखी वो है जिसने अपनी सोई शक्ति को जगाकर परमात्मा को पा लिया है। सुखी वही है जिसने अपने अंतर की चेतन शक्ति जगा कर सन्त सतगुरु के वचन को आत्मसात पा लिया है।
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