मुंबई, मानसून की बारिश में हर साल मुंबई की सड़कें तालाब में तब्दील हो जाती हैं। मायानगरी मुंबई की सड़कों पर जलभराव एक बड़ी समस्या है। मानसून के दौरान जगह-जगह होने वाले जलभराव से मुंबई के लोगों
को भारी समस्या का सामना करना पड़ता है। मुंबई की सड़कों पर जलभराव से प्रत्येक वर्ष कई लोगों की मौत तक हो जाती है। लिहाजा बाम्बे नगर निगम (BMC) ने जलभराव से निपटने के लिए एक नई तकनीक अपनाने का फैसला लिया है। इस नई तकनीक पर बीएमसी 5800 करोड़ रुपये खर्च करेगी। नई तकनीक से बनेगी 400 किमी सड़क मुंबई की सड़कों पर जलभराव से निपटने के लिए जिस नई तकनीक को अपनाने का फैसला लिया गया है, उसमें विशेष तरह की सड़कें बनाने की योजना शामिल है। ये सड़कें ऐसी होंगी जो बारिश के दौरान पानी सोख लेंगी। बॉम्बे नगर निगम का मानना है कि इस तकनीक से सड़क किनारे की नालियों से बारिश के पानी का दबाव भी कम होगा। इसके लिए मुंबई में कई सड़कों का कायाकल्प होगा। सोख्ता तकनीक से विकसित होने वाली इन सड़कों की कुल लंबाई 400 किलोमीटर होगी। सीमेंट सड़क बनाने पर खर्च होंगे 5800 करोड़ रुपये सोख्त तकनीक से बनने वाली 400 किमी लंबी सड़क के लिए बीएमसी ने 5800 करोड़ रुपये की निविदा (टेंडर) जारी की है। ये सड़कें फिलहाल तारकोल की हैं, जिन्हें सोख्ता तकनीक के तहत सीमेंटेड कराया जाएगा। इस तकनीक के तहत सीमेंट से बनने वाली सड़कों के किनारे पानी सोखने के लिए जगह-जगह विशेष और गहरे सोख्ता पिट (गड्ढे) बनाए जाएंगे। भारी बारिश के दौरान जलभराव वाला पानी इन गड्ढों में एकत्र होकर जमीन के नीचे पहुंच जाएगा। अभी इन सड़कों पर जो जलभराव होता है, उसका पूरा पानी नालियों के जरिए बहता है। भारी बारिश के दौरान नालियां लबालब हो जाती हैं, ऐसे में सड़क पर घंटों पानी भरा रहता है। नालियों में कम होगा वर्षा जल का दबाव बीएमसी के एक अधिकारी ने मिड-डे (दैनिक जागरण समूह) संवाददाता समीर सुर्वे को बताया, 'यह पहली बार है जब बीएमसी ने सड़कों पर सोख्ता गड्ढे बनाने का फैसला लिया है। इसके बाद सड़क पर गिरने वाला पूरा वर्षा जल नालियों में नहीं बहेगा। बल्कि काफी मात्रा में बारिश का ये पानी सड़क पर बने इन सोख्ता गड्ढों में एकत्र होगा। इससे सड़क किनारे बनी नालियों पर दबाव कम होगा। ये तकनीक न केवल जलभराव की समस्या से छुटकारा दिलाएगी, बल्कि इससे भूमिगत जल स्तर में भी सुधार होगा।' भूमिगत जलस्तर में भी होगा सुधार बीएमसी में रोड डिपार्टमेंट (BMC Road Department) के डिप्टी चीफ इंजीनियर चंद्रकांत मेटेकर (Chandrakant Metekar) ने बताया कि सड़क किनारे बनने वाले सोख्ता गड्ढे की जगह, स्थानीय भौगोलिक स्थिति (Local Geographical Condition) और बारिश के दौरान वहां होने वाले जलभराव की स्थिति के आधार पर निर्धारित की जाएगी। वैसे तो दो सोख्ता गड्ढों के बीच की दूरी तय नहीं होगी, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि 300 से 350 मीटर की दूरी पर ये सोख्ता गड्ढे बनेंगे। कंसल्टेंट कंपनी विस्तृत सर्वे के बाद इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करेगी।
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