सोहना,(उमेश गुप्ता): यहां पर शहरी क्षेत्र में सरकारी शिक्षा विद्यालयों में कक्षा 9वीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों को स्कूलों में पढ़ाई के लिए आने से पहले छात्र-छात्राओं को कोरोना लक्षण मुक्त ह
ल्थ सर्टिफिकेट साथ लाने की शर्त ने अभिभावकों और विद्यार्थियों को परेशानी में डाल दिया है। दिक्कत अब ये बन गई है कि स्थानीय नागरिक अस्पताल में जो विद्यार्थी अपना स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने के लिए आ रहे है, उन पर स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने के लिए चिकित्सा अधिकारियों की मनमर्जी भारी पड़ रही है। बच्चे ओपीडी कार्ड बनवाकर जब ओपीडी में बैठे चिकित्सा अधिकारी के पास जाते है तो वह उन्हे केजुएलटी में जाकर स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने को कहता है और जब बच्चे स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने के लिए केजुएलटी में जाते है तो वहां मौजूद डाक्टर उन्हे ओपीडी में जाने की कहकर टरका जाता है। कई भुक्तभोगियों ने नाम व पहचान ना बताने की शर्त पर बताया कि स्थानीय नागरिक अस्पताल में डाक्टरों के बीच अंदरूनी रूप से चल रही खीचातानी उन पर भारी पड़ रही है। नागरिक अस्पताल में कार्यरत डाक्टर अपनी मनमर्जी बरत रहे है लेकिन कोई देखने-सुनने वाला नही है। कई अभिभावकों ने बताया कि वह अपने बच्चों को लेकर कई घंटों से अस्पताल में उनका स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने के लिए कभी केजुएलटी तो कभी ओपीडी में चक्कर काट रहे है। मौजूद डाक्टर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने और स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने की बजाय कोई ना कोई बहानेबाजी कर दूसरे डाक्टर के पास भेज रहा है तो वह डाक्टर वापिस पहले वाले डाक्टर पर ही जाने की कहकर अपना पीछा छुड़ा रहा है। जिससे अभिभावक और स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने के इच्छुक छात्र-छात्राओं का ना केवल समय ज्यादा बर्बाद हो रहा है बल्कि वह मानसिक तनाव झेलने को भी मजबूर है। साथ ही छात्र-छात्राओं की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है क्योकि स्कूल प्रबंधन बिना स्वास्थ्य प्रमाणपत्र के उन्हे स्कूलों में प्रवेश नही दे रहे है। जिससे छात्र-छात्राएं परेशान है कि क्या करे, कहां जाए? कोई देखने-सुनने वाला नजर नही आ रहा है। छात्र-छात्राओं और अभिभावकों का यह भी कहना है कि यहां पर स्थानीय नागरिक अस्पताल में जो भी डाक्टर कार्यरत है, वह डाक्टर डयूटी वक्त में भी ना तो सफेद कोट पहन रहे है और ना ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा डाक्टरों के लिए लागू यूनिफार्म पहन कर डयूटी कर रहे है। जिससे कई बार रोगी भी परेशान हो जाते है क्योकि यूनिफोर्म में डाक्टर ना होने से रोगी को यही पता नही चल पाता कि डाक्टर कहां है? ऐसे में डाक्टर भी अपनी मनमर्जी बरतते हुए रोगी को बहानेबाजी से टकराने में नही चूकते। देखा जाए तो यहां पर सीनियर सैकेंडरी गल्र्ज विद्यालय में 2 हजार से ज्यादा और सीनियर सैकेंडरी बाल विद्यालय में भी 1500 से ज्यादा छात्र-छात्राएं दाखिला लिए हुए है। इतनी बड़ी तादाद में छात्र-छात्राएं नागरिक अस्पताल में कैसे पहुंचे, यह अभिभावकों और विद्यार्थियों के लिए परेशानी बना हुआ है क्योकि कोरोनाकाल में विद्यार्थियों का अस्पतालों में जाना खतरे से खाली नही है और अपनी जान को जोखिम में डालकर जो छात्र-छात्राएं नागरिक अस्पताल में अपना स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने के लिए पहुंच रहे है, वह भी इधर से उधर धक्के खाते हुए परेशान हो रहे है। शिक्षा विभाग ने तेरह दिसंबर को एक और फरमान जारी किया है कि निजी अस्पतालों के हैल्थ सर्टिफिकेट मान्य नही होंगे। ऐेसें में अभिभावक शिक्षा विभाग व सरकार के फैसलों को तुगलकी फरमान बता रहे है और कह रहे है कि वह अपने बच्चों को स्कूल भेजकर उनकी जान के लिए कोई जोखिम नही लेना चाहते। कोरोना संक्रमण के डर से वह बच्चों को नागरिक अस्पताल भी नही भेज पा रहे है। हालात ये है कि चाहे सरकार की तरफ से स्कूल खोल दिए गए है लेकिन इन स्कूलों में उंगलियों पर गिनने लायक ही बच्चे पहुंच पा रहे है। एडवोकेट विनायक गुप्ता, युवा समाजसेवी कर्मपाल बोकन, मोहित जांगडा, कृष्णपाल यादव, पूर्व सरपंच संजय सिंह, पूर्व नगरपार्षद हरीश नंदा, समाजसेवी दयाराम सैनी, नगरपार्षद कुसुम गोयल व वेदकला शर्मा का कहना है कि नागरिक अस्पताल प्रबंधन को चाहिए कि वह छात्र-छात्राओं के स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनाने के लिए सीनियर सैकेंडरी बाल व गल्र्ज दोनों सरकारी स्कूलों में ही एक-एक डाक्टर की मौजूदगी जरूरी बनाए और जो भी छात्र-छात्राएं स्कूलों में आए, उनका उसी वक्त स्कूलों में जांच कर स्वास्थ्य प्रमाणपत्र हाथोंहाथ बनाकर दिया जाए ताकि जरूरतमंद छात्र-छात्राओं को स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाने के नाम पर वक्त ज्यादा बर्बाद ना करना पड़े। मानसिक परेशानी ना झेलनी पड़े और समय रहते स्कूल प्रांगण में ही जांच उपरांत उनका हाथोंहाथ स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनने पर उनका पढ़ाई कार्य भी प्रभावित ना हो पाए।
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