निकाय चुनाव में दिग्विजय सिंह के फ्रंट फुट पर नहीं होने से इस बार भाजपा में थोड़ी पसोपेश में नजर आ रही है। भाजपा हर बार दिग्विजय सिंह के कार्यकाल बहाने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करती है। लेकि
न सिंह की अनुपस्थिति के चलते भाजपा को सीधा हमला करने का मौका नहीं मिल रहा है... मध्यप्रदेश में चाहे विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा का चुनाव, कांग्रेस पार्टी से केवल एक ही नाम हर समय चर्चा में रहता है। वह नाम है प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह का। लेकिन इस बार नगर निकाय के चुनावों से सिंह ने पूरी तरह से दूरी बना रखी है। वे न तो किसी प्रचार में नजर आ रहे न ही कोई बयान दे रहे हैं। हालांकि दिग्गी राजा की गैरमौजूदगी को किसी तरह की नाराजगी नहीं बल्कि कांग्रेस की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। इस बार के निकाय चुनाव में कांग्रेस पार्टी दमदार तरीके से मैदान में उतरी है। कमलनाथ और उनकी टीम हर मोर्चे पर भाजपा को घेर रही है। लेकिन पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह निगम चुनाव में अब तक फ्रंट फुट पर नजर नहीं आ रहे हैं। सिंह हमेशा अपने विवादित बयान से लेकर प्रचार करने के तौर तरीकों से लेकर चर्चा में रहते हैं। बयानों के कारण ही भाजपा हर बार कांग्रेस पार्टी पर हमलावार हो जाती है। इससे पार्टी को चुनावों मे खामियाजा भुगतना पड़ता है। यही वजह है कि इस बार दिग्विजय सिंह सामने आने के बजाए पर्दे के पीछे से अपने उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। मध्यप्रदेश कांग्रेस पार्टी के सूत्रों का कहना है कि नगर निगम का चुनाव विधानसभा चुनाव 2023 का सेमीफाइनल है। इसलिए कांग्रेस पार्टी पूरी मेहनत के साथ मैदान में उतरी है। कमलनाथ और उनकी टीम उम्मीदवारों जिताने के लिए प्रचार से लेकर बैठक कर रही है। जहां तक बात दिग्विजय सिंह की है, तो वे प्रचार के बजाए पार्टी की गुटबाजी रोकने के लिए बागियों के घर-घर जाकर उन्हें मनाने का काम कर रहे हैं। भोपाल की महापौर पद की प्रत्याशी विभा पटेल सिंह के खेमे की है। लेकिन वे एक बार ही उनके प्रचार में गए हैं। सिंह की जगह भोपाल में सुरेश पचौरी और पीसी शर्मा ने मैदान संभाल रखा है। भोपाल में दोनों नेता पार्षद से लेकर महापौर के प्रचार में नजर आ रहे हैं। जबकि दिग्विजय सिंह पार्टी नेताओं के बीच समन्वय बनाने में अहम रोल अदा कर रहे हैं। वे पर्दे के पीछे से सभी बड़े शहरों के नेता और कार्यकर्ताओं के साथ चुनावी रणनीति तैयार करने में जुटे हैं। घर जाकर कार्यकर्ताओं को मना रहे दिग्विजय मध्यप्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक ब्रजेश राजपूत अमर उजाला से चर्चा में कहते है कि मध्यप्रदेश के निकाय चुनावों में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने अपनी अपनी भूमिकाएं तय कर ली हैं। कमलनाथ और उनकी टीम पूरे मध्यप्रदेश में प्रचार कर रही है। जबकि दिग्विजय सिंह जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को मजबूत करने और असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को मनाने के काम में जुटे हुए हैं। 2018 के विधानसभा चुनावों में भी सिंह ने यही जिम्मेदारी संभाल रखी थी। तब भी कमलनाथ पार्टी का बड़ा चेहरा था। सिंह ने संग़ठन को मजबूत करने का जिम्मा संभाल रखा था। हाल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस कार्यालय में एक मीटिंग भी ली थी। इसमें उन्होंने कार्यकर्ताओं से साफ कहा था कि जो लोग नाराज हैं उनसे साफ कह दो कि जिसे निकाय चुनाव में टिकट मिला है उसे कमलनाथ जी ने टिकट दिया है और अगर किसी का टिकट कटा है तो उसका टिकट दिग्विजय सिंह ने काटा है। ऐसे असंतुष्ट कार्यकर्ता सीधे मुझसे आकर बात करें। जो पार्टी कार्यकर्ता नाराज हैं, मैं उनके घर जाकर मनाऊंगा। इसके बाद वे भोपाल में नाराज़ कार्यकर्ताओ के घर भी गए और उन्हें जाकर मनाया। इसके बाद उन्हें चुनाव के काम में भी लगाया। यह बात जरूर सच है कि पहले की तुलना में वह प्रचार में बहुत कम दिख रहे हैं। क्योंकि उन्हें कहीं न कहीं यह है लगता है कि अगर मैं चुनाव में जाकर प्रचार करूंगा, तो कहीं न कहीं पार्टी का नुकसान हो जाएगा। इसलिए वह ज्यादा प्रचार करने से बचते हुए दिखाई दे रहे हैं। दिग्गी के नहीं दिखने से भाजपा भी पसोपेश में निकाय चुनाव में दिग्विजय सिंह के फ्रंट फुट पर नहीं होने से इस बार भाजपा में थोड़ी पसोपेश में नजर आ रही है। भाजपा हर बार दिग्विजय सिंह के कार्यकाल बहाने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करती है। लेकिन सिंह की अनुपस्थिति के चलते भाजपा को सीधा हमला करने का मौका नहीं मिल रहा है। हालांकि भाजपा भी यह जानती है कि टिकट वितरण से लेकर प्रचार तक में दिग्विजय सिंह अहम रोल निभा रहे हैं। मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत के पीछे दिग्विजय सिंह का अहम रोल था। सिंधिया के पास स्टार प्रचारक की जिम्मेदारी थी। इसी वजह से ग्वालियर-चंबल में बड़ी जीत कांग्रेस को मिली थी। लेकिन बाकी पूरे मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह ने ही पार्टी की जड़ें मजबूत की थीं। कार्यकर्ताओं पर उनकी जमीनी पकड़ ने ही पार्टी को सत्ता दिलाई थी। सिंधिया के अलग होने के बाद भी सिंह कमलनाथ के साथ मजबूती के खड़े रहे।
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