मुफ्तखोरी के जाल में फंसकर बर्बाद हुए वेनेजुएला और श्रीलंका, भारत के कई राज्‍य इससे लें सीख

Khoji NCR
2022-05-07 08:24:06

श्रीलंका में आर्थिक संकट की खबरों ने देश में मुफ्तखोरी के खिलाफ एक नई बहस को जन्म दिया है। श्रीलंका की सरकार ने सभी के लिए करों में कटौती और विभिन्न मुफ्त वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण जैसे कदम

ठाए थे। परिणामस्वरूप उसकी अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ से उसके पतन की स्थिति बनी। फिर पहले से ही भारी कर्ज में डूबे देश के पास डिफाल्ट होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। इस घटनाक्रम के परिप्रेक्ष्य में भारतीय राज्यों द्वारा दिए जा रहे मुफ्त वस्तुओं और सेवाओं के मुद्दे पर एक बहस की शुरुआत हुई है। समय के साथ मुफ्तखोरी भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बनती जा रही है। चाहे वह चुनावी संघर्ष में मतदाताओं को लुभाने के लिए वादे के रूप में हो या सत्ता में बने रहने के लिए मुफ्त सुविधाओं के रूप में। यही कारण है कि चुनावों के समय लोगों की ओर से ऐसी अपेक्षाएं प्रकट की जाने लगी हैं, जिन्हें मुफ्त के ऐसे वादों से ही पूरा किया जाता है। इसके अलावा जब पड़ोस के या देश के अन्य राज्यों के लोगों को मुफ्त में उपहार या सेवा प्राप्त हो रहे होते हैं तो तुलनात्मक रूप से उनकी अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। यही कारण है कि तमाम राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली, पानी की आपूर्ति, मासिक भत्ते के साथ-साथ लैपटाप, स्मार्टफोन आदि देने का वादा करते हैं। देश के सभी राज्यों को लोकलुभावन वादों से बचना चाहिए। इसका प्रभाव राजकोष पर पड़ता है। भारत के अधिकांश राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब है। उनके पास राजस्व के मामले में प्राय: अत्यंत सीमित संसाधन होते हैं। यदि राज्य कथित राजनीतिक लाभ के लिए व्यय करना जारी रखेंगे, तो उनकी वित्तीय स्थिति डगमगाने लगेगी और राजकोषीय अनुशासन भंग होने की स्थिति बनेगी। भारत एक बड़ा देश है और यहां अभी भी ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह मौजूद है, जो गरीबी में गुजर-बसर कर रहे हैं। इसलिए देश की विकास योजना में सभी लोगों को शामिल किए जाने की जरूरत है। इस दिशा में केंद्र की मोदी सरकार ने कई अच्छी पहल की है। ज्ञात हो कि वेनेजुएला में मुफ्त की सुविधाएं मुहैया कराने के कारण उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई। वहां महंगाई विकराल स्थिति में पहुंच गई है। वह आज आर्थिक तंगी की मार झेल रहा है। इसलिए सब्सिडी और मुफ्तखोरी में अंतर करना भी आवश्यक है, क्योंकि सब्सिडी उचित और विशेष रूप से लक्षित लाभ है जो मांगों से उत्पन्न होता है। यद्यपि प्रत्येक राजनीतिक दल को लक्षित जरूरतमंद लोगों को लाभ देने के लिए सब्सिडी पारितंत्र के निर्माण का अधिकार है, पर वह राज्य या केंद्र सरकार के खजाने पर दीर्घकालिक बोझ नहीं होना चाहिए। बेहतर यही होगा कि केंद्र और राज्य सरकारों को मुफ्त की घोषणाओं एवं वादों से बचना चाहिए।

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