नेपाल के PM देउबा की भारत यात्रा से क्‍यों बेचैन हुआ चीन? कूटन‍ीतिक मोर्चे पर रंग लाई मोदी की ‘पहले पड़ोस की नीति' - एक्‍सपर्ट व्‍यू

Khoji NCR
2022-04-02 09:57:55

नई दिल्ली, भारत पहुंचे नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की भारत यात्रा काफी अहम मानी जा रही है। इस यात्रा के दौरान उन्‍होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नाय

ू से भी मुलाकात की। नेपाल और भारत के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के कूटनीतिक क्षेत्र में कई मायने निकाले जा रहे हैं। इस मुलाकात के दौरान कई अहम समझौते हुए। इन समझौतों से दोनों देशों के बीच कड़वाहट पर भी विराम लग सकता है। खास बात यह है कि इस यात्रा पर चीन की पैनी नजर है। गौरतलब है कि नेपाली प्रधानमंत्री की यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब चीन काडमांडू पर डोरे डालने में लगा है। हाल ही में भारत और नेपाल के संबंधों में कई बार असहजता की स्थिति उत्‍पन्‍न हुई। इसके लिए पूरी तरह से चीन जिम्‍मेदार था। भारत इन सभी कोशिशों को नेपाल की चीन से बढ़ती नजदीकी के रूप में देख रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराने रिश्ते पर चीनी चाल भारी पड़ रही है? देउबा की इस यात्रा के क्‍या मायने हैं? कैसे रहे हैं भारत-नेपाल के रिश्‍ते? नेपाल में कैसे बढ़ा है चीन का दबदबा? नेपाल-भारत उतार चढ़ाव वाले रिश्‍ते 1- नवंगर, 2019 को भारत ने एक मानचित्र प्रकाशित किया था, जो जम्‍मू कश्‍मीर तथा लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दर्शाता है। इसी मानचित्र में कालापानी को भी भारतीय क्षेत्र के रूप में दर्शाया गया था। इस मानचित्र ने भारत-नेपाल के बीच एक पुराने विवादों को हरा कर दिया था। इसके साथ भारतीय फ‍िल्‍मों में नेपाली महिलाओं को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्‍पणी से भी नेपाल ने नाराजगी व्‍यक्‍त की थी। 2- वर्ष 2017 में नेपाल चीन के वन बेल्‍ट, वन रोड परियोजना में शामिल हुआ। हालांकि, भारत नेपाल पर इस परियोजना में शामिल नहीं होने का दबाव डाल रहा था। भारत का यह दबाव नेपाल को रास नहीं आया। भारत-नेपाल के रिश्‍तों में खटास तब आई, जब वर्ष 2015 में नेपाली संविधान अस्तित्व में आया। भारत द्वारा नेपाली संविधान का उस रूप में स्वागत नहीं किया गया जिस रूप में नेपाल को आशा थी। 3- नवंबर, 2015 जेनेवा में भारतीय प्रतिनिधित्व द्वारा नेपाल में राजनीतिक फेरबदल को प्रभावित करने के लिए मानवाधिकार परिषद के मंच का कठोरतापूर्वक उपयोग किया गया, जबकि इससे पहले नेपाल के आंतरिक मामलों को लेकर भारत द्वारा कभी भी खुलकर कोई टिप्पणी नहीं गई थी। भारत का रुख मधेसियों को नेपाल में नागरिकता का अधिकार दिलाना था। इनमें लाखों मधेसियों ने साल 2015 में नागरिकता को लेकर व्यापक आंदोलन चलाया था। नेपाल सरकार का ऐसा आरोप है कि मधेसियों के समर्थन में भारत सरकार ने उस समय नेपाल की आर्थिक घेराबंदी की थी। नेपाल पर चीन का बढ़ता प्रभाव चीन का प्रभाव दक्षिण एशियाई मुल्‍कों में बढ़ रहा है। पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश, नेपाल और श्रीलंका हर जगह ड्रैगन की मौजूदगी बढ़ रही है। दक्षिण एशिया के ये सभी देश चीन की बेल्‍ट एंड रोड परियोजना में शामिल हैं, लेकिन भारत अपने सामरिक हितों के कारण इसका विरोध करता रहा है। हाल के दिनों में नेपाल में चीन के बढ़ते दखल के कारण काडमांडू और नई दिल्‍ली के बीच संबंधों में पहले जैसी गर्मजोशी देखने को नहीं मिली। चीन ने इसका पूरा लाभ उठाते हुए नेपाल में अपनी स्थिति को मजबूत किया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नेपाल के कई स्‍कूलों में चीनी भाषा मंदारिन को पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया। नेपाल में इस भाषा को पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतन का खर्चा भी चीन की सरकार उठाने के लिए तैयार हो गई। इसके अलावा चीन ने नेपाल में भारी निवेश किया है। भारत की पड़ोस की नीति से समीप आए देश नेपाल की अहमियत इस वजह से भी ज्यादा है कि पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद ‘पहले पड़ोस की नीति’ के मद्देनजर नेपाल उनके शुरुआती विदेशी दौरों में से एक था, जबकि इससे पहले आखिरी बार वर्ष 1997 में नेपाल और भारत की द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। मोदी सरकार ने नेपाल के साथ कई अहम समझौते किए हैं। दोनों देशों के बीच कृषि, रेलवे और अंतर्देशीय जलमार्ग विकास सहित कई द्विपक्षीय समझौतों पर सहमति बनी है। इनमें बिहार के रक्सौल और काठमांडू के बीच सामरिक रेलवे लिंक का निर्माण प्रमुख है। इसका मकसद लोगों के बीच संपर्क तथा बड़े पैमाने पर माल के आवागमन को सुविधाजनक बनाया जाना था। इसके अलावा मोतिहारी से नेपाल के अमेलखगंज तक दोनों देशों के बीच आयल पाइपलाइन बिछाने पर भी हाल ही में सहमति बनी है। नेपाल का दक्षिण क्षेत्र भारत की उत्तरी सीमा से सटा है। भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता माना जाता है। बिहार और पूर्वी-उत्तर प्रदेश के साथ नेपाल के मधेसी समुदाय का सांस्कृतिक एवं नृजातीय संबंध रहा है। क्‍या होगी आगे की राह प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि नेपाल सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह दो देशों के मध्य घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंधों की भावना को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक संधि, दस्तावेजों, तथ्यों और नक्शों के आधार पर सीमा के मुद्दों का कूटनीतिक हल प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत को नेपाल के प्रति अपनी नीति दूरदर्शी बनानी होगी, जिस तरह से नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। उससे भारत को अपने पड़ोस में आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन करने से पहले रणनीतिक लाभहानि पर विचार करना होगा। भारत और चीन के साथ नेपाल एक आजाद सौदागर की तरह व्यवहार कर रहा है और चीनी निवेश के सामने भारत की चमक फीकी पड़ रही है। लिहाजा भारत को कूटनीतिक सुझबूझ का परिचय देना होगा।

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