नई दिल्ली, । दो दिन बाद फ्रांस की राजधानी पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक शुरू हो रही है। इस बैठक को लेकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की की सांसे अटकी हुई है।
नको इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं एफएटीएफ पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में न डाल दे। हालांकि, इस समय पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में शामिल है। आइए जानते हैं कि पाकिस्तान इस ब्लैक लिस्ट से क्यों चिंतित है। इमरान सरकार की क्या मुश्किलें हैं। ग्रे लिस्ट में रहने के चलते पाकिस्तान का प्रत्येक वर्ष कितना आर्थिक नुकसान हो रहा है। इससे पाकिस्तान की छवि क्यों धूमिल हो रही है। 1- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि अगर एफएटीएफ पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में शामिल करता है तो उसकी अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसका सबसे ज्यादा असर पाकिस्तान को मिल रही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक मदद पर होगा। अगर पाकिस्तान ब्लैक लिस्ट में शामिल होता है तो आइएमएफ, एडीबी, वर्ल्ड बैंक या अन्य कोई अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल संस्था या संगठन उसे आर्थिक मदद नहीं करेगा। इसके साथ आयात-निर्यात पर भी कई तरह की पाबंदियों के साथ दूसरे संगठनों से आर्थिक सहयोग में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी और अन्य दूसरी संस्थाओं द्वारा पाकिस्तान को निगेटिव लिस्ट में डाल दिया जाएगा। इसका असर पाकिस्तान के निवेश पर पड़ेगा। इससे निवेश आने बंद हो जाएंगे। प्रो. पंत ने कहा कि इस समय पाकिस्तान कर्ज में डूबा है। उसकी आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। पाकिस्तान पर करीब 214 लाख करोड़ भारतीय रुपये का कर्ज है। मौजूदा समय पर ग्रे लिस्ट में रहने के चलते पाकिस्तान को हर वर्ष 74 हजार करोड़ का नुकासान हो रहा है। 2- प्रो. पंत का कहना है कि एफएटीएफ की बैठक में बहुत सख्ती से इस बात पर ध्यान दिया जाएगा कि इमरान सरकार ने आतंकी फंडिंग और बड़े आतंकियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की और इसके सबूत कहां हैं। एफएटीएफ इस बात को बहुत बारीकी से देखेगा कि पाकिस्तान सरकार ने देश में मौजूद हाफिज सईद और दूसरे बड़े आतंकियों के खिलाफ कितने मजबूत केस तैयार किए है। यह भी जांच की जाएगी कि उन्हें सजा दिलाने के लिए इमरान सरकार कितनी गंभीर है। उनके खिलाफ कितनी ठोस कार्रवाई की गई है। इस बाबत पाकिस्तान को सबूत देने होंगे। फिलहाल पाकिस्तानी एजेंसियों ने अब तक ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की है, जिससे टेरर फंडिंग को रोके जाने का सबूत मिला हो। 3- प्रो. पंत ने कहा कि एफएटीएफ के मुताबिक जब किसी देश को निगरानी सूची में रखा जाता है तो इसका तात्पर्य यह है कि उक्त देश तय सीमा के भीतर पहचानी गई कमियों को तेजी से हल करने के लिए प्रतिबद्ध है। एफएटीएफ में आतंकी फंडिंग और मनी लांड्रिंग के मामले में दो तरह से कार्रवाई करता है। एफएटीएफ कार्रवाई के तहत वह दोषी देशों को ग्रे लिस्ट में शामिल करता है। साथ ही उचित कार्रवाई नहीं करने की स्थिति में उस देश को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाता है। 4- भारत लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यूएन की ओर से बैन आतंकियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का दबाव बनाता रहा है। एफएटीएफ के सामने भी भारत कई बार पाक प्रायोजित आतंकवाद को लेकर सबूत सौंप चुका है। पाकिस्तान अब तक चीन, तुर्की और मलेशिया की वजह से एफएटीएफ में ब्लैक लिस्ट होने से बचाता आया है। ऐसे में यदि पाकिस्तान इस बार ब्लैक लिस्ट में शामिल होता है तो यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत होगी। क्या है एफएटीएफ गौरतलब है कि एफएटीएफ मनी लांड्रिंग और आतंकी फंडिंग पर नजर रखने वाली संस्था है। यह आतंकियों को पालने-पोसने के लिए पैसा मुहैया कराने वालों देशों पर नजर रखने वाली एजेंसी है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाए रखना इस एजेंसी का उद्देश्य है। यह अपने सदस्य देशों को आतंकी फंडिंग और मनी लांड्रिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होने से रोकता है। अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमलों के बाद आतंकी फंडिंग से निपटने में एफएटीएफ की भूमिका प्रमुख हो गई। वर्ष 2001 में इसने अपनी नीतियों में आतंकी फंडिंग को भी शामिल किया। आतंकी फंडिंग में आतंकियों को पैसा या फाइनेंशियल सपोर्ट पहुंचाना शामिल है। एफएटीएफ के निर्णय लेने वाले निकाय को एफएटीएफ प्लेनरी कहा जाता है। इसकी बैठक एक साल में तीन बार आयोजित की जाती है। ग्रे लिस्ट और पाकिस्तान पाकिस्तान 2008 में पहली बार ग्रे लिस्ट हुआ। 2009 में यह ग्रे लिस्ट से बाहर हुआ था। 2012 पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में शामिल हुआ। 2016 में इससे निकल पाया। वर्ष 2018 में फिर ग्रे लिस्ट में आया। वर्ष 2021 अब तक इसी लिस्ट में शामिल हुए। जी-7 देशों की पहल पर 1989 में स्थापना हुई । पेरिस में हेडक्वार्टर साल में तीन बैठक होती है। इस 39 सदस्य। भारत 2010 में इसका मेंबर है। 1990 में पहली बार सिफारिशें लागू हुई। 1996 से 2012 तक चार अपडेट हुए।
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