सुविधा-भोगी, सत्ता-लोलुप स्वामी ने बेटे के टिकट के लिये भाजपा को ब्लैकमेल करना चाहा, मंत्री पद के साथ-साथ भाजपा छोड़ी : परमहंस द्विवेदी।

Khoji NCR
2022-01-21 13:30:17

खोजी/सुभाष कोहली कालका। स्वामी प्रसाद मौर्य ने यूपी सरकार को पिछड़ा, दलित, किसान, वंचित-शोषित, युवा विरोधी बताकर मंत्री मण्डल से इस्तीफा दिया , ऐसे ही नेताओं ने नेताओं का विश्वास डगमगा दिया है

4 वर्ष 11 माह मंत्री रहते स्वामी प्रसाद को कोई कमी नहीं दिखी, दिखी तब जब राजनीतिक मोल तोल में योगी ने उन्हें भाव नहीं दिया। जब उनके पुत्र को ऊँचाहार, रायबरेली से टिकट मिलने की संभावना धूमिल प्रतीत होने लगी तो राजनीति कितनी स्वार्थ परक होती है, यह घटना इसका जीता जागता उदाहरण है। वे मंत्री पद छोड़ चले और जहाँ भी उन्हें बेटे का भविष्य सुरक्षित दिखाई देगा उसी दल में चले जाएंगे। क्योंकि बेटी पहले ही बदायूं से भाजपा की संसद सदस्य है, बहू भी ब्लॉक प्रमुख है। घर के सभी लोग तो राजनैतिक रूप से सुरक्षित थे केवल बेटे को सेट करने के लिये यह सब नाटक करना पड़ा। परमहंस द्विवेदी ने बताया कि संगठन को जिन्होंने खून पसीने से सींचा है, न दिन को दिन न रात को रात समझें बिना चलते रहे, संगठन विस्तार के लिये तन, मन व धन अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। ऐसे लोग पार्टी के सुख में (सत्ता काल में) सुखी हों या न हों परंतु पार्टी के दुख में उसे अपना दुःख समझ अवश्य दुःखी होते हैं, तो ऐसे लोग टिकट मिले न मिले कोई फर्क नहीं पड़ता वे कभी पार्टी को धोखा नहीं दे सकते। पार्टी कार्यकर्ताओं से चलती है, कार्यकर्ता कभी कपटी नहीं होता, हाँ यह अवश्य है कि सबसे अधिक नुकसान कार्यकर्ताओं का ही होता है। अधिकांश मामलों में उसकी राजनीतिक इच्छा पूरी नहीं होती, पद प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं हो पाती, जबकि उसका जीवन पार्टी के लिए लगभग न्यौछावर हो चुका होता है। ऐसे में कई ऐसे भी मामले देखे गये हैं कि व्यक्ति (पुरुष/महिला) अपने परिवार में भी अपनी दशा दिशा खो चुका होता है। इतना होने के बाद भी कार्यकर्ता पार्टी के साथ होता है और छल कपट से दूर रहता है। परंतु स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे सुविधा भोगी लोग असली राजनैतिक महत्वाकांक्षा पाले हुये होते हैं जिन्हें न दल से मतलब होता है न दिल से। उन्हें सिर्फ अपने पीढ़ियों को धनपशु बनाने का शौक होता है उसके लिये वे समाज में कोई भी क़ीमत चुका सकते हैं या समाज से वसूल सकते हैं। इनका कोई विश्वास न तब था न अब है, इसीलिए राजनीतिक विरादरी से लोग नफरत भी करने लगे हैं। खैर, जो भी हो आप (स्वामी) जिस रास्ते आए थे उसी पगडंडी चल पड़े हैं। आगे-आगे देखिये होता है क्या?

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