नई दिल्ली, । कोरोना की वजह से चुनाव रैलियों पर लगी रोक में कुछ अतिरिक्त शर्तो के साथ 22 जनवरी के बाद ढील दी जा सकती है। लिहाजा भाजपा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्
क्ष जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत वरिष्ठ नेताओं की सभाओं व रैलियों का कार्यक्रम तय होने लगा है। लेकिन शाह के मामले में कार्यक्रम थोड़ा अलग होगा। वह केवल जनता को ही संबोधित नहीं करेंगे बल्कि संगठन के तार भी कसेंगे। टिकट नहीं मिलने से नाराज लोगों व उनके समर्थकों को पार्टी के लिए सक्रिय रूप से खड़ा करेंगे और कार्यकर्ताओं में जोश भी भरेंगे। उनका कार्यक्रम कुछ इस तरह बनेगा कि संगठनात्मक रूप से हर जिले को छू सकें।जमीनी स्तर पर तैयारी के लिहाज से ही नवंबर में शाह समेत राजनाथ और नड्डा ने बूथ अध्यक्षों को संबोधित किया था। दरअसल, यह कवायद केवल जीत का मंत्र देने के लिए नहीं थी बल्कि उनके मनोबल को बढ़ाने के लिए थी। मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में संगठन की खामी और बड़े स्तर पर शिथिलता की शिकायत के बाद यह फैसला लिया गया था। अब चुनाव सामने हैं। 20 दिन बाद पहले चरण का मतदान होना है और वह भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां लड़ाई आसान नहीं मानी जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद 2017 के विधानसभा और फिर 2019 में लोकसभा चुनावों में शाह की लगातार मौजूदगी ने उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया। तीनों चुनावों में विपक्षी गठबंधन के बावजूद भाजपा की बड़ी जीत का कारण भी यही था और इसी कारण प्रधानमंत्री मोदी का संदेश घर-घर पहुंचाया जा सका था।टिकट वितरण का काम शुरू हो चुका है और लगभग 20-25 प्रतिशत टिकट कटने भी हैं। पिछले दिनों में कई नेता पार्टी छोड़कर सपा के साथ गए हैं। उनके व्यक्तिगत प्रभाव क्षेत्र को तोड़ने के लिए जाहिर तौर पर विशेष रणनीति की जरूरत होगी। दिल्ली में टिकट वितरण और साथी दलों के साथ सामंजस्य फार्मूले के केंद्र में शाह ही थे। अब इन सभी मुद्दों को जल्द से जल्द दुरुस्त करने के लिए शाह उत्तर प्रदेश में डेरा जमाएंगे। रैलियों की छूट सीमित भी रही तो बंद कमरे में अधिकतम 300 लोगों की बैठक करने का अधिकार है और शाह इसी दायरे में सभी जिलों के कार्यकर्ताओं से संवाद कर सकते हैं।
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