**महिलाओं की वैवाहिक आयु में बढ़ोतरी : उनके विकास

Khoji NCR
2022-01-05 10:48:11

एवं समृद्धि की राह--** धनेश कुमार विद्यार्थी। विश्व के आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिंक सूची 2019-2020' के अनुसार भारत इस सूची में 112 वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट में विशेषकर यह जिक्र किया गया है कि भारत म

ें औरतों के लिए अवसर बहुत सीमित हैं।' भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में इस अंतर को भरने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं। इन प्रयत्नों में औरतों के विवाह करने की कम से कम उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष किया जाना है। इस कोशिश को हाल ही में मंत्रिमण्डल द्वारा अनुमोदित किया गया, जो स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा तय की गई रिपोर्ट से मेल खाती है, जिसमें यह सुझाव दिया गया कि औरतों के विवाह करने की कानूनी उम्र को बढ़ाने से स्नातक कक्षा में पंजीकृत होने वाली लड़कियों की संख्या 5 से 7 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। लैंगिंक-अंतर के मुद्दे के अलावा कई अन्य कारक औरतों की विवाह योग्य उमर बढ़ाने में सहायक हुए हैं। इनमें, साक्षरता की कम दर, बाल-विवाह एवं किशोरावस्था में गर्भ धारण करने जैसी प्रथाओं का व्याप्त होना, नौकरी के अवसरों तक पहुंच न पाना और भारतीय औरतों में पोषण की बदतर हालत होना आदि शामिल हैं। जल्दी विवाह के कारण कम आयु की माताओं व उनके बच्चों में कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो जाती हैं। हाल के एक अध्ययन में पाया गया है कि अधिकतर अल्पायु की माताओं में गर्भाधान संबंधी स्वास्थ्य चुनौतियां, मानसिक स्वास्थ्य में अपंगता आना, कुपोषण, खून की कमी, टीकाकरण से रोकथाम होने वाली संक्रामक-बीमारियां, उच्च रक्तचाप, गर्भावस्था के दौरे पड़ना (ecalmpsia & preeclampsia), प्रसवोत्तर रक्तस्राव (Postpartum haemorrhage) जैसी समस्याएं तथा यौन-संबंधी संक्रमण से उत्पन्न होने वाली बीमारियों के खतरें बढ़ जाते हैं। इसी प्रकार, अल्पायु की माताओं में समय से पहले पैदा होने वाले बच्चे के खतरे से उसका विकास अवरुद्ध होने, गर्भधारण करने के लिए कम समय की समस्या से पैदाईश के समय बच्चों में श्वांसरोधक दशा उत्पन्न होने तथा गर्भ में होने वाली अन्य समस्याओं से जूझने के खतरें बढ़ जाते हैं। ये स्वास्थ्य-संबंधी खतरें, किशोरावस्था में बनने वाली माताओं के बच्चों में मृत्यु-दर को भी बढ़ा देते हैं। इसलिए, उम्र से पहले विवाह करना न सिर्फ माताओं के लिए खतरनाक होता है बल्कि ऐसे विवाहों से उत्पन्न हुए बच्चों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य' अध्ययन द्वारा जुटाए एक आंकड़े के अनुसार 'बाल-विवाह निषेध कानून, 2006' (PCMA) को लागू करने से पहले लड़कियों का बाल्यावस्था में विवाह करने का 'राष्ट्रीय-अनुपात' 58 प्रतिशत था। बहरहाल, इस (PCMA) कानून के लागू होने के बाद यूनिसेफ द्वारा 2020 में एक सर्वेक्षण कराया गया जिसमें यह खुलासा हुआ कि लगभग 29 प्रतिशत औरतें 18 वर्ष की उम्र से पहले ही विवाहित हो जाती हैं। इसके पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं जिनमें व्यक्तिगत-कानून (Personal Laws) में दी गई छूट, सामाजिक-मान्यताएं तथा सांस्कृतिक-मिथ्याएं शामिल हैं। कई समुदायों में इन 'व्यक्तिगत-कानूनों' के कारण बाल-विवाह को अनुमति दी जाती है और 'बाल-विवाह निषेध कानून, 2006' लागू नहीं हो पाता। पितृसत्तात्मक-सोच के कारण लड़कियों को अक्सर परिवारों के ऊपर बोझ और अतिरिक्त जिम्मेदारी के तौर पर देखा जाता है जिसका एकमात्र निवारण उनका विवाह करना माना जाता है। इसलिए, बाल-विवाह और कम उम्र में मातृत्व प्राप्त करने को पूर्णतः निषेध करने के उद्देश्य से, हमें लड़कियों के प्रति अपने रवैये को बदलना होगा और प्रस्तावित-कानूनों को सख्ती से लागू करवाना होगा। बच्चों की सुरक्षा को लेकर बनाए गए 'राष्ट्रीय-आयोग' ने सन् 2017 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसके अनुसार जो आंकड़े सामने आए उनसे आंखें खुल जाती हैं। भारत में 15 से 18 वर्ष की आयु की 39.4 प्रतिशत लड़कियां स्कूलों व कॉलेजों में अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ देती हैं। शिक्षा अधूरी छोड़ने वाली ऐसी 64.8 प्रतिशत लड़कियां या तो घरेलू कार्य करने के लिए मजबूर की जाती हैं या उन्हें भीख मांगने या उनका जबरन विवाह कर दिया जाता है। वैश्विक-तौर पर, सन् 2018 में, पूरी दुनिया की 82.65 प्रतिशत साक्षरता दर की तुलना में भारत में औरतों की साक्षरता दर 66 प्रतिशत थी। औरतों में इस कम होती साक्षरता के अलावा भारत में माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर शिक्षा अधूरी छोड़ने वाली लड़कियां की दर भी अधिक पाई गई। उदाहरण के लिए, 'शिक्षा के वार्षिक स्तर' (ग्रामीण) 2017 के अनुसार लगभग 32 प्रतिशत लड़कियां माध्यमिक शिक्षा के लिए पंजीकृत नहीं हो पाई जिसकी दर लड़कों में 28 प्रतिशत थी। इन चौंकाने वाले आंकड़ों की मुख्य वजह जल्दी होने वाले विवाह कहे जा सकते हैं जो या तो जबरन किए जाते हैं या फिर इसका कारण कम आयु की लड़कियों में शीघ्र विवाह से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को समझने में अक्षम होना है। 'नेशनल सैम्पल सर्वे ऑगनाईजेशन' (NSSO) द्वारा हाल ही में प्रकाशित आंकड़े के अनुसार जो उसकी सामयिकी (Periodic) में सन् 2017-18 के 'लेबर फोर्स सर्वे' में भी प्रकाशित हुए थे, में भारत में महिलाओं की श्रमशक्ति का योगदान 23.3 प्रतिशत है। इसकी तुलना में सिर्फ 13 अन्य देशों में 'महिला-श्रमशक्ति' का योगदान भारत से कम है। महिला साक्षरता दर, माध्यमिक शिक्षा में पंजीकरण व श्रमशक्ति में महिलाओं के गिरते आंकड़ों के पीछे यह कारण माना जा सकता है कि अधिकतर लड़कियों का विवाह अल्पायु में ही कर दिया जाता है और हमारी परंपराओं के अनुसार, जहां पुरुर्षों से कमाई करने की आशा की जाती है, वहीं औरतों से घरेलू कार्यों में व्यस्त रहने की उम्मीद की जाती है जहां वे घर का कामकाज करने और बच्चों की देखभाल करने की जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकें। ऐसा औरतों में 'जागरूकता' और 'सशक्तिकरण' की कमी के कारण होता है। उन्हें शिक्षा के माध्यम से शक्तिशाली बनाया जा सकता है और शिक्षा तभी प्राप्त की जा सकती है जब लड़कियों का विवाह देरी से किया जाए। क्योंकि, अक्सर यह देखा गया है कि संकीर्ण विचारों वाले समाज में औरतों का विवाह होने या उनके मां बनने के बाद उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए उत्साहित नहीं किया जाता। Anthony Giddens नामक समाजशास्त्री ने अपनी 'Globalisation Theory' में कहा है कि वैश्वीकृत-संसार में औरतों की, कार्य करने के स्थान पर उपस्थिति-मात्र ही विभिन्न समाज को उनके देरी से होने वाले विवाहों को स्वीकार करने पर मजबूर कर देगा। Zinnov नामक एक वैश्विक प्रबंधन कम्पनी द्वारा किए गए अध्ययन भारत में निजी कंपनी के क्षेत्रों में औरतों का प्रतिशत सिर्फ 30 प्रतिशत है जिसमें गैर-तकनीकी श्रेणी में 31 प्रतिशत, तकनीकी श्रेणी में 26 प्रतिशत इनके बोर्डो में इनका प्रतिनिधित्व मात्र 13 प्रतिशत होता है। ऐसे क्षेत्रों में सिर्फ 11 प्रतिशत औरतें ही उच्च स्तर पर नेतृत्व कर पाती हैं। इसी प्रकार, अध्ययन के क्षेत्र में भी औरतों का प्रतिनिधित्व कमतर है। 'ऑल-इण्डिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन' द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में औरतों की उपस्थिति सिर्फ 42 प्रतिशत है। इन के अनुसार सभी समस्याओं का हल अगर पूरी तरह से नहीं, तो कुछ हद तक तो महिलाओं के विवाह की उम्र को 21 साल किए जाने से हल किया जा सकता है। सरकार द्वारा किए गए प्रयासों को उस वक़्त तक सफलता नहीं मिल सकती जब तक हम एक 'समाज' के तौर पर उसके इन कदमों को लागू करने में सहायता न करें। इसके अतिरिक्त, सरकार के इन अच्छे कदमों को सफल बनाने के लिए औरतों के प्रति हमें अपना रवैया बदलना होगा और लैंगिंक-भूमिका के प्रति हमें अपने सांस्कृतिक-कथानक को बदलना होगा। इस उद्देश्य को हम आधारभूत-ढांचे को मजबूती प्रदान करके एवं पाठ्यक्रम में बदलाव लाकर भी प्राप्त कर सकते हैं जिससे औरतों को शिक्षा प्राप्त करने व व्यवसाय के क्षेत्र में कदम रखने के लिए प्रेरित किया जा सके। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, तब तक यह समाज अपनी आधी जनसंख्या के साथ न्याय नहीं कर पाएगा।

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