रूस और चीन की दोस्‍ती से क्‍या चिंतित है भारत? पुतिन-चिनफ‍िंग की निकटता में अमेरिका कैसे बना बड़ा फैक्‍टर

Khoji NCR
2021-12-20 08:22:44

नई दिल्‍ली, । रूसी राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन और चीनी राष्‍ट्रपति शी चिनफ‍िंग की निकटता क्‍या भारत के लिए चिंता का व‍िषय है। हाल में दोनों नेताओं की वर्चुअल बैठक के बाद रूसी राष्‍ट्रपति क

कार्यालय क्रेमलिन ने एक बयान जारी कर कहा कि रूस-चीन संबंध अप्रत्‍याशित रूप से सकारात्‍मक हो गए हैं। इसमें आगे कहा गया है कि दोनों नेता एशिया पैसेफ‍िक में यथास्थिति को बदलने की अमेरिकी कोशिशों पर चिंता व्‍यक्‍त करते हैं। रूसी राष्‍ट्रपति कार्यालय की ओर से यह बयान ऐसे समय जारी किया गया है, जब चीन और भारत के बीच सीमा विवाद चरम पर है। हालांकि, रूसी राष्‍ट्रपति की हाल की यात्रा के बाद यह उम्‍मीद जगी थी कि रूस दोनों देशों के बीच संबंधों में सकारात्‍मक भूमिका अदा कर सकता है। भारत-रूस संबंधों का चीन पर मनोवैज्ञानिक असर होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्रेमलिन की ओर से जारी बयान से क्‍या भारत की चिंता बढ़नी चाहिए ? भारत-रूस के संबंधों में चीन कोई बड़ा फैक्‍टर है? आइए जानते हैं कि रूसी राष्‍ट्रपति भवन से जारी इस बयान के क्‍या हैं मायने। भारत और चीन से बराबर के संबंध चाहता है रूस 1- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि रूसी राष्‍ट्रपति की ओर से जारी बयान से यह संकेत जाता है कि पुतिन चीन और भारत दोनों से निकटता बनाए रखना चाहते हैं। पुतिन की भारत यात्रा के बाद जारी बयान से यह संदेश जाता है कि भारत और रूस के संबंधों का असर चीन के रिश्‍तों पर नहीं पड़ेगा। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि पुतिन की भारत यात्रा को दोनों देशों की मीडिया ने बढ़चढ़ कर दिखाया था। ऐसे में इसका असर चीन के संबंधों पर नहीं पड़े पुतिन ने चीन के राष्‍ट्रपति से वुर्चुअल वार्ता की। 2- उन्‍होंने कहा कि रूस भारत का पुराना सहयोगी रहा है। शीत युद्ध के दौरान रूस ने भारत का हर कदम पर सहयोग किया है। रक्षा उपकरण से लेकर अंतरिक्ष व प्रौद्योगिकी विकास में रूस का बड़ा योगदान रहा है। हालांकि, भारत-अमेरिका की निकटता के कारण दोनों देशों के बीच कुछ संदेह जरूर पैदा हुआ था, लेकिन पुतिन की भारत यात्रा और एस-400 मिसाइल सिस्‍टम की खरीद के बाद रूस की यह भ्रांति काफी कुछ दूर हो गई। पुतिन की भारत यात्रा के बाद दोनों देश एक दूसरे के निकट आए हैं। 3- प्रो पंत ने कहा युक्रेन और अन्‍य मसलों को लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों के बीच टकराव बढ़ा है। रूस अब पहले जैसा सुपरपावर नहीं रहा। इसलिए उसे अपने बाहरी मोर्चे पर चीन की जरूरत है। उधर, चीन भी अब सीधे तौर पर अमेरिका के निशाने पर है। अमेरिका कई मौकों पर कह चुका है कि चीन उसका दुश्‍मन नंबर वन है। खासकर ट्रंप के कार्यकाल में यह बात अक्‍सर कही जाती थी। चीन के मामले में बाइडन रणनीति अपने पूर्ववर्ती ट्रंप जैसी हीं है। इसलिए रूस और चीन की बीच संबंधों को एक नया आयाम मिल रहा है। अमेरिका और पश्चिमी देशों से निपटने के लिए रूस और चीन एक दूसरे की बड़ी जरूरत बन चुके हैं। 4- पुतिन भारत और चीन के साथ रिश्‍तों में एक संतुलन बनाने की कोशिश में जरूर होंगे। पुतिन यह बात जानते हैं कि भारत उसका एक पुराना सहयोगी है और दूसरी ओर चीन उसकी तत्‍कालीन सामरिक जरूरत है। भारत को एस-400 मिसाइल देने के बाद यह बात निश्चित रूप से अमेरिका के साथ चीन को भी खटक रही होगी। ऐसे में वह चीन के साथ अपने रिश्‍तों को भारत से इतर रखकर देखना चाहेंगे। पुतिन की भारत यात्रा के समय उठे थे सवाल पुतिन की भारत यात्रा के समय यह सवाल उठे थे कि क्‍या रूसी राष्‍ट्रपति भारत-चीन सीमा विवाद सुलझाने में एक सेतु का काम कर सकते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्‍या पुतिन की मदद से भारत-चीन सीमा विवाद सुलझ सकता है। प्रो. पंत का कहना है कि रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के दौरान निश्चित रूप से दोनों देश एक दूसरे के और निकट आए। इस मायने में यह ऐतिहासिक यात्रा थी। उन्‍होंने कहा कि उस वक्‍त दोनों देशों के बीच भारत-चीन सीमा विवाद कोई सार्वजनिक एजेंडा नहीं था। अलबत्‍ता, देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-चीन सीमा विवाद को अपने रूसी समकक्ष के साथ उठाया था। उन्‍होंने भारत-चीन सीमा विवाद पर अपनी चिंता जाहिर की थी। उन्‍होंने कहा कि पुतिन की यात्रा के दौरान निश्चित रूप से भारत को यह अपेक्षा रही होगा कि चीन सीमा विवाद को सुलझाने में रूस एक मनोवैज्ञानिक दबाव बना सकता है। भारत की कूटनीतिक जीत प्रो. पंत का कहना है कि निश्चित रूप से यह भारत की कूटनीतिक मोर्चे पर बड़ी जीत है। रक्षा सौदे और ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी उपल्बिध रही है। इसके अलावा चीन के साथ चल रहे सीमा तनाव के बीच रूसी एस-400 डिफेंस मिसाइल सिस्‍टम को हासिल करना एक बड़ी कूटनीतिक सफलता रही है। भारत यह सिद्ध करने में सफल रहा कि अतंरराष्‍ट्रीय परिदृष्‍य में बदलाव के बावजूद उसकी विदेश नीति के सैद्धांतिक मूल्‍यों एवं निष्‍ठा में कोई बदलाव नहीं आया है। रूस के साथ उसकी दोस्‍ती की गर्माहट यथावत है। हाल के दिनों में कुछ कारणों से भारत-रूस के बीच नरमी को पुतिन की इस यात्रा ने खत्‍म कर दिया है। चीन और अमेरिका के लिए भी यह बड़ा संदेश है। भारत यह संकेत देने में सफल रहा कि वह गुटबाजी या किसी धड़े का हिस्‍सा नहीं है। उसकी अपनी स्‍वतंत्र विदेश नीति है। इसमें वह किसी अन्‍य देश का दखल स्‍वीकार नहीं करता।

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