बंगाल की राजनीति में जंगलमहल से ही गुजरेगी सत्ता की राह

Khoji NCR
2020-12-21 08:56:45

। Bengal Assembly Elections 2021 बंगाल की राजनीति में जंगलमहल का खास महत्व है। माना जाता है कि बंगाल की सत्ता जंगलमहल से गुजरती है। इस इलाके में बांकुड़ा, पुरुलिया, पश्चिम मिदनापुर, झारग्राम और बीरभूम जिले आते ह

ं। पिछले लोकसभा चुनाव में जंगलमहल में भाजपा को काफी सफलता मिली। थोड़ी-बहुत कसर थी, उसे सुवेंदु अधिकारी ने भाजपा में शामिल होकर पूरा कर दिया। जंगलमहल के रास्ते तृणमूल को कामयाबी मिली। सही मायनों में इसके शिल्पकार थे पूर्व टीएमसी नेता मुकुल राय। भाजपा में शामिल होने के बाद उनके राजनीतिक कौशल का लाभ भाजपा को मिला। इसकी बानगी है जंगलमहल में लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली सीटें। सुवेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने के बाद दक्षिण बंगाल के इस इलाके में तृणमूल की थोड़ी-बहुत उम्मीदें भी समाप्त हो जाएंगी, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। सुवेंदु अधिकारी परिवार का न सिर्फ पूर्वी मिदनापुर के कांथी व तुमलुक लोकसभा क्षेत्रों में असर है, बल्कि पश्चिम मिदनापुर, हल्दिया व दुर्गापुर समेत 60 से अधिक सीटों पर प्रभाव है। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस का सफाया कर दिया था। दक्षिण बंगाल में भी पार्टी को अच्छी बढ़त मिली। लेकिन पूर्वी व पश्चिम मिदनापुर में सुवेंदु अधिकारी के दुर्ग में भाजपा सेंधमारी नहीं कर सकी। मगर अब सुवेंदु भाजपा में शामिल हो चुके हैं तो दक्षिण बंगाल का यह समग्र इलाका भी भाजपा के कब्जे में आता दिख रहा है। गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में सुवेंदु समेत अन्य दलों के कई नेता भाजपा में शामिल हुए। लेकिन अगले कुछ दिनों में सुवेंदु के भाई और सांसद दिव्येंदु अधिकारी भी भाजपा संग हो जाएं तो हैरानी की बात नहीं है। बंगाल भाजपा के प्रवक्ता दीप्तिमान सेनगुप्ता बताते हैं कि तृणमूल कांग्रेस में भगदड़ मची है। हर राजनीतिक दल को आंतरिक समीक्षा करनी चाहिए, लेकिन पता नहीं क्यों तृणमूल इसकी अहमियत नहीं समझती। बैरकपुर से भाजपा सांसद अर्जुन सिंह हों या कूचबिहार के सांसद निशीथ प्रामाणिक ये दोनों नेता कभी तृणमूल में थे। पार्टी को आगे बढ़ाने में इनका काफी योगदान रहा, लेकिन संघर्ष की बुनियाद पर बनी तृणमूल में जमीनी नेताओं की कद्र नहीं रह गई। टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी की पहचान इतनी है कि वे ममता बनर्जी के भतीजे हैं। जमीनी संघर्ष से उनका कोई वास्ता नहीं रहा है। लेकिन आज पार्टी से जुड़े ज्यादातर फैसले वही लेते हैं। यह जानते हुए भी ममता बनर्जी खामोश हैं और यही बात तृणमूल से जुड़े पुराने नेताओं को अखर रही है। ममता बनर्जी जब पहली बार सत्ता में आई थीं, तो उन्होंने बंगाल में बंद पड़े पुराने कारखानों को चालू करने और लाखों नौकरियां देने का वादा किया था। लेकिन कुछ भी नहीं हो सका है। देखा जाए तो धीरे धीरे बंगाल में आम लोगों में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ रही है। उसके मद्देनजर राज्य में चंद माह बाद होने वाले चुनाव के बारे में यह कहा जा सकता है कि साल 2011 के चुनाव में जिस प्रकार तृणमूल कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला था, वैसी ही जीत अगले साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिलती दिख रही है

Comments


Upcoming News