आखिर जहरीली गैसों का निर्धारण कैसे होता है ? सरल शब्‍दों में जानिए क्‍या है AQI, जानें एक्‍सपर्ट व्‍यू

Khoji NCR
2021-11-21 09:08:48

नई दिल्‍ली, सर्दी का मौसम शुरू होते ही एक बार फ‍िर दिल्‍ली के आसपास के शहरों में वायु प्रदूषण की चिंता लोगों को सताने लगी है। एक बार फ‍िर हवा की गुवणत्‍ता का जिक्र हो रहा है। इस प्रदूषण की समस्

या के माप के लिए भारत में राष्‍ट्रीय वायु गुणवत्‍ता सूचकांक 17 सितंबर, 2014 को स्‍वच्‍छ भारत अभियान के तहत नई दिल्‍ली में शुरू किया गया था। ऐसे में यह जिज्ञासा होती है कि कैसे पता चलता है कि आपके आसपास की हवा अच्छी है ? किस तरह मापी जाती है आपके शहर की एयर क्‍वालिटी ? आखिर वायु की गुणवत्‍ता के मानक क्‍या है ? कैसे यह यंत्र काम करता है ? दुनिया में वायु गुणवत्‍ता के मानक एक जैसे हैं ? आइए जानते हैं पर्यावरणविद विजय पाल बघेल की राय। आखिर वायु की गुणवत्‍ता को कैसे नापते हैं ? पर्यावरणविद् विजय पाल वघेल का कहना है कि दरअसल, वायुमंडल में सभी गैसों की मात्रा प्राकृतिक रूप से सुनिश्चित होती है, जब इस वायु में इन गैसों का संतुलन गड़बड़ होता है तो इसका असर हवा की गुणवत्‍ता पर पड़ता है। वायु की गुणवत्‍ता मापने के लिए एयर क्‍वालिटी इंडेक्‍स का इस्‍तेमाल किया जाता है। यह एक यंत्र है। इसके आधार पर पता चलता है कि उस स्‍थान की हवा कितनी साफ है। यह एक सचेतक का काम करती है यानी आपको अलर्ट करती है। इसको ऐसे समझिए कि जैसे थर्मामीटर आपके शरीर के तापमान को बताता है। उस आधार पर चिकित्‍सक यह तय करता है कि आपको बुखार है कि नहीं। आप सामान्‍य है या आपको बुखार है या आपको तेज बुखार है। ठीक उसी तरह से यह इंडेक्‍स काम करता है। इंडेक्‍स भी हवा में प्रदूषित गैसों की मात्रा को बताता है। यह आपके लिए कितनी उचित या खतरनाक है। आखिर क्‍या है पीएम-10 और पीएम 2.5 ? 1- दरअसल, यह धूल के कणों के नापने की इकाई है। इसे माइको पार्टिकल यानी पीएम-10 कहा जाता है। यह एक ग्राम मोटे धूल के कण के दस लाख हिस्‍से के बराबर होती है। हवा में यह एक सामान्‍य स्थिति का सूचक है। हालांकि,‍ विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए अब पीएम-10 की जगह पीएम-5 को निर्धारित करने पर विचार कर रहा है। इसकी वजह यह है कि अब पीएम-10 की वजह से सांस संबंधी समस्‍या समस्‍या पैदा हो रही है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने इसकी और सूक्ष्‍म इकाई पीएम 2.5 को निर्धारित किय है। पीएम 2.5 एक अंतरराष्‍ट्रीय मानक है। 2- प्रदूषक तत्‍वों के लिहाज यह यह इंडेक्‍स का ग्राफ बढ़ता जाता है। इसे पांच भागों में व‍िभक्‍त किया जा सकता है। जैसे 50 सूचकांक एक बेहतर वातावरण को प्रदर्शित करता है। इसी तरह से 51 से 100 सूचकांक संतोषजनक स्थिति को दर्शाता है। सूचकांक 101-200 वायु मंडल में थोड़ा प्रदूषण दिखाता है। 201-300 वायु मंडल की खराब गुणवत्‍ता को प्रदर्शित करता है। इसी तरह 301-400 यह बेहद खराब स्थिति होती है। 401- 500 सूचकांक वायुमंडल में एक अति गंभीर स्थिति को दर्शाता है। जंगलों का वायु गुणवत्‍ता सूचकांक अमुमन 50 से नीच रहता है। लाकडाउन के समय पर्यावरण मानवीय हस्‍तक्षेप कम होने की वजह से शहरों में वायु गुणवत्‍ता का सूचकांक 50 से नीचे नापा गया। 3- इस वायु गुणवत्‍ता सूचकांक के अलग-अलग खतरे हैं। जैसे 51 से 100 वायु गुणवत्‍ता सूचकांक से संवेदनशील लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। सूचकांक 101-200 वायु गुणवत्‍ता सूचकांक फेफड़े की बीमारी जैसे अस्थमा और हृदय रोग, बच्चों और बड़े वयस्कों के साथ लोगों को असुविधा के कारण सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। 201-300 वायु मंडल की खराब गुणवत्‍ता को प्रदर्शित करता है। इससे इसी तरह 301-400 सूचकांक में लंबे समय तक रहने पर लोगों को सांस की बीमारी हो सकती है। फेफड़े और दिल की बीमारियों वाले लोगों पर इसका प्रभाव अधिक खतरनाक हो सकता है। 401- 500 सूचकांक वायुमंडल में एक अति गंभीर स्थिति को दर्शाता है। यह आपातकाल जैसी स्थिति है। इसका सेहत पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह स्वस्थ लोगों के श्‍वसन प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। इसका फेफड़े एवं हृदय रोग वाले लोगों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। आखिर यह कैसे मापा जाता है ? दरअसल, इसके लिए अलग-अलग डिवाइस होती है। इसके जरिए एक्यूआई का पता लगाया जा सकता है। सरकार भी कई जगहों पर यह मीटर लगाकर रखा है और इससे पता किया जाता है कि उस हवा की क्या स्थिति है। इसमें हर तत्व का सही पता उसके घंटों के आधार पर लगता है, जैसे कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा के लिए छह घंटे रखना होता है, ऐसे ही दूसरे तत्वों के लिए अलग व्यवस्था है। ऐसे में इसे पूरे 24 घंटे एक स्थान पर रखकर उसका पता लगाया जाता है। दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या को भयंकर बनाने में मुख्य भूमिका वायु में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों की होती है। जब इन कणों का स्तर वायु में बढ़ जाता है तो सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन आदि होने लगती हैं और हालात इतने खराब हैं कि हर दिल्लीवाला रोजाना 21 सिगरेट के बराबर धुआं निगल रहा है।

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