माँ बाप को दुःख देकर, कितने ही तीर्थ व्रत, गुरु धारण करो, मंदिर मस्जिदों में माथा रगड़ो कोई फायदा नहीं। : हुज़ूर कँवर साहेब महाराज जी

Khoji NCR
2020-12-20 11:26:21

माँ बाप की सेवा ही सर्वोपरि है : हुज़ूर कँवर साहेब प्रभु भक्ति करना मत भूलो : हुज़ूर कँवर साहेब जयवीर फोगाट, जैसे बुरा स्वपन नींद खुलते ही समाप्त हो जाता है वैसे ही दुख की घड़ी भी कुछ पल बाद बीत जाए

ी। जो गुजर गया वो गुजर गया लेकिन गुजरने वाले वक़्त अपने पदचिन्हों में कई शिक्षाएं छोड़ कर जाता है। कोरोना का यह काल भी हमें यही शिक्षा देता है। परमात्मा के कारज में मीन मेख मत निकालो। बीती को बिसार दो और आगे की सुध लो। बस बीते हुए से सीख लो। प्रभु के भक्त वक़्त की कद्र करना जानते हैं। विचार करो कि जिस कारण ये मानव चोला मिला था क्या उसको हमने पूरा किया। यह सत्संग वाणी परमसंत हुज़ूर कँवर साहेब जी महाराज ने गांव दिनोद में रोहतक शाखा के नाम का सत्संग फरमाते हुए कही। गुरु महाराज जी ने कहा कि कुछ भी स्थाई नहीं है। भक्ति विशुद्ध मन से ही हो सकती है। बुराई को त्यागने वाला और भी बहुत कुछ कर सकता है। मत भूलो कि करने का एकमात्र अवसर यही है। नववर्ष पर संकल्प धारो कि हम अपना ज्यादातर समय प्रभु की भक्ति में बिताए। मन में बुरे विचारों को ना टिकने दो। हमारा कल्याण भी इसी बात में है कि हमारे कारण किसी का दिल ना दुखे। माँ बाप की सेवा सर्वोपरि है। माँ बाप को दुख दे कर कितने ही तीर्थ व्रत कर लो, कितने ही गुरु धारण करो, कितने ही मंदिर मस्जिदों में माथा रगड़ो कोई फायदा नहीं। उन्होंने कहा कि जैसा राजा होता है वैसी ही प्रजा भी होती है। हम काल के हाथों लूट रहे हैं, गाफिल हुए बैठे हैं, कर्मो में उलझे हुए हैं। राजा और महात्मा का प्रसंग सुनाते हुए गुरु महाराज जी ने कहा कि जो अपनी मौत को याद रखता है वो सदा जीवित रहता है। एक बार एक राजा को किसी महात्मा ने अमर जड़ी पिलाई और दो पान खुद भी पीए। राजा की काम इच्छा बढ़ गई। दिन रात काम वासना में लिप्त रहा। वापिस महात्मा के पास आया। पूछा कि मैंने एक प्याला पिया और आपने दो पिये फिर भी आप हमेशा शांत रहते हो जबकि मैं तो काम वासना से परेशान हो गया। महात्मा ने कहा कि एक तो मैं अपनी मौत को कभी नहीं भूलता और दूसरा मुझे आपकी सात दिन बाद होने वाली मौत का भी अफसोस है। राजा चिंता में पड़ गया कि सात दिन के बाद मौत, राजा सुध खो बैठा, बेसुध अवस्था में वापिस महल आया। सब कुछ से मोह भंग हो गया। काम वासना ना जाने कहाँ गई। बस राजा का ध्यान सिर्फ सात दिन गिनने में लगा रहा। सात दिन के बाद जब मौत नहीं आई तो राजा महात्मा के पास गया और खुश होकर कहा कि मैं तो जिंदा हूँ। महात्मा ने कहा कि अब समझ मे आया कि जड़ी के एक प्याले से ही तुम इतने गाफिल हो गए और मैं दो प्यालों से भी नहीं बहका। मुझे हर पल अपनी मौत का एहसास है इसलिए मैं हर पल अनमोल समझ कर परमात्मा की भक्ति में लगा रहता हूँ जबकि तुम गाफिल थे राजा। जैसे ही तुम्हें अपनी मौत का एहसास हुआ तुम भी अपना सब कुछ भूल कर परमात्मा में ध्यान लगाने लगे। गुरु महाराज जी ने कहा कि हमें भी यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि ये जीवन अनमोल है। ना जाने कब सांस का आना जाना बंद हो जाये पर उससे पहले परमात्मा की भक्ति कर लो। उन्होंने कहा कि दो बातें याद रखो। एक साहेब की बन्दगी और दूसरा भूखे को रोटी देना। गुरु महाराज जी ने कहा कि बिना शस्त्र के कोन सुरमा लड़ता है। भक्ति आपका शस्त्र है इसे धारण करो तभी जीवन की जंग में आप सुरमा की भांति टिक पाओगे। परमसंत हुजूर कँवर साहेब जी ने कहा कि परमात्मा को पाने का सरलतम तरीका अपने आप को पाक साफ और पवित्र करना है। अपने ख्यालात और सोच को सकारात्मक रखो। सम भाव वाले रहो। सुख में भी परमात्मा को ना भूलो। भक्ति पौधे को रौपने की भांति है। बीज बोते है फिर धीरे धीरे पौधा बड़ा होता है, पत्ते लगते है टहनियां बढ़ती हैं फिर फल लगता है। उसी प्रकार भक्ति रूपी पौधा भी समय आने पर फल देता है। उन्होंने कहा कि बाकी बक बक तो बकवास है, क्योंकि जिसने हरि को पा लिया वो तो अनबोला हो जाता है। जब मन परमात्मा की भक्ति में मग्न जो जाता है तो बाकी का जगत अपने आप छूट जाता है। हैरानी है कि हम विषयों विकारों में डूबे रहते हैं। मन मर्जी का खाना, मन मर्जी का सोना और प्रभु भक्ति की डींग हांकते हैं। मन के गुलाम हो और ढोंग करते हो संयम का, आत्म साक्षतात्कार का। हुजूर ने कहा कि गृहस्थ से बड़ा कोई भक्त नहीं है। जीवन मे आपको दोनों तरह के लोग मिल जाएंगे। एक पाखंडी जो कंकड़ बजा कर ये भरम पैदा करते है कि उनके पास सिक्को की टकसाल है और दूसरे ऐसे जिनके पास भक्ति नुमा सिक्को की भरमार है लेकिन रहते बिल्कुल सादे ढंग से हैं। उन्होंने कहा कि जब तक आपका व्यक्तिगत जीवन अच्छा नहीं है, तब तक गृहस्थ अच्छा नहीं हो सकता। जिसका गृहस्थ अच्छा नहीं है वो भक्ति नहीं कर सकता। आज बच्चों के संस्कार ही बिगड़ रहे हैं क्योंकि मां बाप के पास समय नहीं है, बालक मां बाप से बहुत सीखता है, जैसा मां बाप का आचरण होगा वैसा ही बालक का होगा। बालक के लिए धन सम्पदा नहीं बल्कि संस्कार की विरासत छोडो। गुरु के बताए आदर्शों पर चल कर पवित्र जीवन जीने वाला, अच्छी संगत करने वाला, सच्चाई के साथ जीवन जीने वाला ही कॉल के जाल से बच पायेगा। हुजूर ने कहा कि आज कपट इतना बढ़ गया कि किस पर विश्वास करें किस पर नहीं। हर पल सचेत रहने का है। सचेत रह पाओगे गुरु की संगति से। कितना ही जरूरी काम हो लेकिन प्रभु की भक्ति करना मत भूलो। जीवन का हर पल आपको अच्छी शिक्षा देता है लेकिन उसे समझने की आवश्यकता है। नाम गुरु का लेते हो लेकिन पाखंडों का जीवन जीते हो तो आप दोहरे अपराधी हो। गुरु धारण किया है तो उनकी शिक्षाओं को अपनाओ। भक्ति ढिंढोरा पीटने की आवश्यकता नहीं है ये तो जीवन को सफल बनाने की क्रिया है।

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