नई दिल्ली, । दुनियाभर में वायु प्रदूषण की समस्या अब एक विकराल रूप ले चुका है। विश्व की करीब 91 फीसद आबादी जहरीली हवा में सांस लेने के लिए विवश है। यह उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है
। भारत में भी वायु प्रदूषण की समस्या जटिल बनी हुई है। वायु प्रदूषण को लेकर खतरे की घंटी बज चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण को स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे प्रमुख पर्यावरण संबंधी खतरा बताया है। इस पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनइपी की चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। क्या आप जानते हैं दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित देशों और उनके शहरों के नाम ? दुनिया में सर्वाधिक प्रदूषित कौन सा शहर है ? इसके अलावा यह भी जानेंगे कि भारत ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अब तक क्या-क्या प्रयास किए ? क्या यह प्रयास प्रदूषण को रोकने के लिए काफी है ? वायु प्रदूषण के कारण दुनिया के इन शहरों पर बड़ा संकट वैश्विक स्तर पर पांच सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में भारत की राजधानी नई दिल्ली, मैक्सिको की राजधानी मैक्सिको सिटी, ब्राजील के शहर साओ पाउलो, चीन के शहर शंघाई और जापान की राजधानी टोक्यो में लगभग 1,60,000 लोगों की मृत्यु के लिए पीएम 2.5 को जिम्मेदार बताया गया है। इस अध्ययन के मुताबिक 14 शहरों में पीएम 25 वायु प्रदूषण की अनुमानित आर्थिक क्षति पांच बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक थी। इस अध्ययन के मुताबिक शहरों में से वायु प्रदूषण के कारण सबसे अधिक अनुमानित वित्तीय क्षति टोक्यो में दर्ज की गई। टोक्यो में वर्ष 2020 में पीएम 2.5 वायु प्रदूषण के कारण करीब 40 हजार असामयिक मौतें और 43 बिलियन अमेरिकी डालर का आर्थिक नुकसान हुआ था। लास एंजेल्स में पीएम 2.5 वायु प्रदूषण की उच्चतम प्रति व्यक्ति वित्तीय क्षति करीब 2700 अमेरिकी डालर दर्ज की गई। वायु प्रदूषण से भारत की नाजुक स्थिति ग्रीनपीस के अध्ययन में 28 वैश्विक शहरों में से दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे अधिक आर्थिक प्रभाव पड़ा। कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए सख्त लाकडाउन के बावजूद वर्ष 2020 की पिछली छमाही में अनुमानित 24,000 लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई। वर्ष 2020 में दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से करीब छह गुना अधिक था। इस दौरान वायु प्रदूषण से संबंधित आर्थिक क्षति अनुमानित 8.1 बिलियन अमेरिकी डालर थी, जो कि दिल्ली के वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद का 13 फीसद था। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में वर्ष 2020 में अनुमानित 25,000 असामयिक मौतों के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया गया। इसके लिए पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइआक्साइड के कारण वायु प्रदूषण को उत्तरदायी बताया गया था। इसके अलावा प्रदूषित हवा के कारण बंगलुरू में 12,000, चेन्नई में 11,000 और हैदराबाद में 11,000 असामयिक मौतों का अनुमान था। वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की भारत की पहल 1- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग: केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और इसके आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन किया है। यह वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकारों का समन्वित प्रयास है और इस क्षेत्र के लिये वायु गुणवत्ता के मापदंडों का निर्धारण करेगा। 2- भारत स्टेज मानक/मानदंड : ये वायु प्रदूषण पर निगरानी रखने के लिए सरकार द्वारा जारी उत्सर्जन नियंत्रण मानक हैं। 3- वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए डैशबोर्ड : यह एक राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम आधारित डैशबोर्ड है, जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क के डेटा के आधार पर बनाया गया है। गौरतलब है कि एनएएक्यूएस को वर्ष 1984-85 में शुरू किया गया था और यह 29 राज्यों एवं छह केंद्र शासित प्रदेशों के 344 शहरों/ कस्बों को कवर करता है। 4- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम : यह देश के 102 शहरों के लिए एक व्यापक अखिल भारतीय वायु प्रदूषण उन्मूलन योजना है, इसे वर्ष 2019 में शुरू किया गया था। 5- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक : यह उन स्वास्थ्य प्रभावों पर केंद्रित है जिन्हें कोई भी व्यक्ति प्रदूषित वायु में सांस लेने के कुछ घंटों या दिनों के भीतर अनुभव कर सकता है। 6- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना : इसका मकसद गरीब परिवारों को खाना पकाने के लिये स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराना और उनके जीवन स्तर में गुणात्मक वृद्धि करना है। व्यवहारिक समाधान की जरूरत 1- पर्यावरणविद विजय बधेल का कहना है कि भारत सहित कुल 30 देशों की सरकारें वायु गुणवत्ता का रियल टाइम डाटा एकत्र तो करती हैं, लेकिन इसके बावजूद वो पूरी जानकारी पारदर्शिता के साथ उपलब्ध नहीं कराती हैं। यहां तक कि जिन देशों में यह डाटा उपलब्ध है वहां इसके फार्मेट में इतनी विभिन्नता है। इससे इसका ठीक से विश्लेषण नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि इन देशों में डेटा होने के बावजूद भी उसका ठीक से उपयोग नहीं हो पता और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए किए जा रहे उपाय सफल नहीं होते। भारत भी उन्हीं देशों में से एक है। 2- उन्होने कहा कि दुनिया भर में मानकों को हासिल करने की जो जिम्मेवारी जिन संस्थाओं को दी गई है वो काफी जर्जर स्थिति में है। केवल 33 फीसद देशों ने कानूनी रूप से अनिवार्य मानकों को पूरा करने के दायित्वों को लागू किया है। वायु गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए यह जानना जरूरी है कि क्या इन मानकों को हासिल भी किया जा रहा है या सिर्फ बना कर छोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि केवल 37 फीसद देशों ने कानूनी रूप से इसकी जरूरत को समझा है।
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