जानें- कैसे रोके जा सकते हैं ड्रोन हमले, कितने देशों के पास है इसकी तकनीक और कहांं हो रही इसकी टेस्टिंग

Khoji NCR
2021-07-02 07:28:05

नई दिल्‍ली । जम्‍मू के एयरफोर्स स्‍टेशन पर ड्रोन से हुए हमले के बाद इस तरह के हमलों को लेकर चिंता काफी बढ़ गई है। भारत में पहली बार इस तरह का हमला किया गया था। जानकारों की राय में ये काफी छोटे हो

े हैं इसलिए भी इनको पकड़ना काफी मुश्किल होता है। इसके अलावा ये काफी नीचे उड़ सकते हैं इसलिए भी इनको राडार पकड़ पाने में नाकाम हो जाते हैं। रणनीतिक ठिकानों के लिए इस तरह के ड्रोन चिंता बढ़ाने वाले साबित हो रहे हैं। गौरतलब है कि पाकिस्‍तान की तरफ से कई बार ड्रोन का इस्‍तेमाल भारतीय सीमा में आतंकियों को हथियार भेजने के लिए भी किया गया है। हालांकि इन ड्रोन को सुरक्षा बलों ने मार गिराया था। लेकिन इस तरह का खतरा अब बड़ा हो गया है। जम्‍मू एयरफोर्स स्‍टेशन पर हुए हमले ने इसकी चिंता को बढ़ा दिया है। जानकारों की राय में इनका निशाना स्‍टेशन पर मौजूद हेलीकॉप्‍टर और फाइटर जेट हो सकते हैं। पाकिस्‍तान सीमा के नजदीक एयरफोर्स स्‍टेशनों को अब और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। दैनिक जागरण में छपे एक लेख में सेना के लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) दुष्‍यंत सिंह ने लिखा है कि इस तरह के हमलों को नाकाम करने के लिए सर्विलांस, इंटेलीजेंस, इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस की जरूरत होती है। इसके अलावा लो लेवल राडार और हाइटेक नाइट विजन डिवाइस भी इस तरह के हमलों को रोकने में सक्षम हैं। उनके अनुसार इस तरह के ड्रोन हमलों को रोकने की तकनीक में अमेरिका, रूस, इजरायल, चीन और तुर्की माहिर हैं। बता दें कि अफगानिस्तान में अमेरिका ने कई बार आतंकियों पर हमले के लिए ड्रोन का इस्‍तेमाल किया है। इसके अलावा अमेरिका ने सीरिया में भी इनका सफलतापूर्वक इस्‍तेमाल किया है। कुछ समय पहले अजरबैजान एवं आर्मेनिया की लड़ाई में तुर्की ने भी ड्रोन से हमला किया था। उनके मुताबिक ब्रिटेन ने पिछले साल सितंबर में एक नया रडार ए 800 3डी नाम से लांच किया है। इसको ब्राइटस्टार सर्विलांस सिस्टम ने तैयार किया है। अमेरिका के पास इसकी तकनीक पहले से है लेकिन इसके बाद भी वो एक ऐसी तकनीक पर काम कर रहा है जिसके जरिए इनको आसानी से हवा में ही खत्‍म किया जा सकता है। इस तकनीक का नाम हाई एनर्जी लेजर सिस्टम है। अमेरिका और इजरायल ने मिलकर स्काईलार्ड नाम से एक तकनीक विकसित की है। इससे ड्रोन को जाल में फांसा जा सकता है। रॉयटर्स की खबर के मुताबिक छोटा, हमले में कारगर और पकड़ से बाहर और कीमत में किफायती होने की वजह से ड्रोन अब आतंकियों की पहली पसंद बनते जा रहे हैं। इसको देखते हुए विश्‍व के कुछ अन्‍य देश भी ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं जिनसे इस तरह के हमलों से बचा जा सकता है। दक्षिण कोरिया ऐसी ही एक तकनीक का परिक्षण कर रहा है। दक्षिण कोरिया ने स्‍वदेशी तकनीक से बने राडार लिंक्‍ड सिस्‍टम का छह महीने का ट्रायल शुरू कर दिया है। ये राडार बेहद छोटे यूएवी या अनमेंड एरियल व्‍हीकल या ड्रोन की मौजूदगी को पकड़ सकता है। 22 जून को डिफेंस एक्‍वजिशन प्रोग्राम एडमिनिस्‍ट्रेशन (डापा) की तरफ से इसकी घोषणा की गई थी। दक्षिण कोरिया में विकसित इस तकनीक के जरिए 8 किमी के दायरे में हवा में उड़ती किसी भी चीज को पकड़ा जा सकता है। दक्षिण कोरिया ने इसकी टेस्टिंग एयरफोर्स, नेवल और मिलिट्री के लिए एक साथ शुरू की है। दक्षिण कोरिया की समाचार एजेंसी यॉनहॉप के मुताबिक डेगू ग्‍योंगबुक इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्‍नोलॉजी ने एक एक्टिव इलेक्‍ट्रानिकली स्‍केंड ऐरे डेवलेप किया है। ये एक जेमर सिस्‍टम है जो ड्रोन को को मिलने वाले सभी सिग्‍नल्‍स को जाम कर देता है और फिर इसको आसानी से खत्‍म किया जा सकता है। ये तकनीक किसी भी चीज के इलेक्‍ट्रानिक डिवाइस को सबसे पहले ठप करती है। एजेंसी के मुताबिक इस तकनीक को 4.3 मिलियन डॉलर में तैयार किया गया है। इसमें जैमर, इंफ्रारेड बीम और राडार बीम है जो ड्रोन को रोकने के लिए अलग-अलग दूरी पर काम कर सकती है।

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