आज ही,19 नवम्बर,18857 को रूपड़क का युद्ध हुआ था। यह एक ऐसा युद्ध था जिसे याद कर आज भी एक सच्चा मेवाती ,देशभक्ति के जज्बे से औत-प्रोत हो,सिहिर उठता है।

Khoji NCR
2022-11-19 10:49:33

खोजी एनसीआर साहून खांन गोरवाल वास्तव में 20 से 23 सितम्बर तक दिल्ली पर पूर्ण नियन्त्रण हो जाने के पश्चात् अंग्रेजों के हौंसले बुलंद थे।मगर दिल्ली की दक्षिणी सीमा से सटा मेवात अब भी उनकी पहुँ

से बाहर था। दिल्ली पर पूर्ण नियन्त्रण हो जाने के पश्चात् भी वे मेवात पर हमला करने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। आखिर अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में अंग्रेज सेनाधिकारियों ने मेवातियों को सबक सिखाने का फैसला किया और यह काम ब्रिगेडियर जनरल शावर्स को सौंपा गया।शावर्स ने सोहना को अपना सैनिक मुख्यालय बनाया और कैप्टन डरमण्ड को इसका इन्चार्ज बना स्वयं दिल्ली लौट गया। नवम्बर के तीसरे सप्ताह में सोहना सैक्टर के इन्चार्ज कै॰ डरमण्ड को उसके जासूसों ने सूचना भेजी कि कई हजार मेव,कुछ घुड़सवारों के साथ कोट व रूपड़ाका में इकट्ठे होकर,हमारे वफादार राजपूत गाँव पर कई दिनों से हमले कर रहे हैं।इसके अलावा इनका इरादा पलवल के सरकारी खजाने को लूटने का भी है। सूचना मिलते ही कै॰ डरमण्ड ने एक छोटे फौजी दस्ते ,जिसमें 59 घुड़सवार 'हड्सन हाॅर्सेज'के,59 घुड़सवार टोहाना। हाॅर्सेज के और 120 सिपाही कुमांयूँ रैजीमेन्ट के थे,को तुरंत रूपड़ाका की ओर रवाना कर दिया। ।रास्ते में प्रथम पँजाब इन्फैट्री एक कम्पनी ने बल्लबगढढ़ से आकर इस फौजी दस्ते की ताक़त को और बढ़ा दिया। इस दस्ते ने सोहना-रूपड़ाका रास्ते पर पड़ने वाले सभी गाँवों को तबाह व बर्बाद कर दिया और इनकी फसलों को आग लगा दी।इन बदनसीब गाँवों में पचानका,गौपुर,चिल्ली,उटावड़,मोगला,मीठाका,खिल्लूका,गुराकसर और झान्डा शामिल थे।जब यह दस्ता 19 नवम्बर को रूपड़ाका पहुँचा तो तो लगभग 3500 मेवाती क्रान्तिकारी गाँव के सामने आ गये और पूरे साहस के साथ अंग्रेजी। सैना से मुकाबला करने के लिए उसके सामने आ गये। एक भयंकर युदध लड़ा गया,जिकी रिपोर्ट करते हुए कैप्टन डरमण्ड ने गुड़गाँव के कमिश्नर मि॰ डब्ल्यू॰ फोर्ड को लिखा,'अपने दस्तों की मदद से मेवाती गाँव पचानका,गौपुर,चिल्ली,मोगला,रूपड़ाका,कोट,उटावड़,मीठाका,खिल्लूका,गुराकसर और झान्डा को आग जला दिया गया है।सिर्फ रूपड़ाका में दिक्कत पेश आई। यहाँ हमारे ऊपर बम्बारी की गई। मेरे सिपाही साहस के साथ डटे रहे,यहाँ तक कि वे 1000 गज के फासले पर हमारे सामने आ गये।फिर हमने तेजी से बंम्बारी की।मेरे आदमियों ने संगीनों से हमला किया। मेव परेशानी की हालत में भाग खड़े हुए। हमारे पैदल सिपाहियों ने इनका पीछा किया।इस तरह 50 आदमी गाँव के अंदर और लगभग 350 आदमी गाँव के बाहर मारे गये। घुड़सवारों ने भी इनका पीछा कर कत्ल-ए-आम किया। मे रे अंदाजे से 400 मेव मारे गये। हमारे मौंतें जिनकी सूचना भेजी जा रही है,मुझे खुशी है बहुत कम है। हम सभी मेवाती क्रांतिकारी शहोदों को दिल की गहराईयों से खिराज-ए-अकीदत पेश करते हैं। अल्लाह पाक 1857 के सभी शहीदों की मगफिरत फरमाय।

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