नई दिल्ली, इन दिनों चीन की हाइपरसोनिक मिसाइल की चर्चा जोरों पर है। चीन ने परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम अत्याधुनिक हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया है तो अमेरिका खुफिया तंत्र सकते मे
आ गया है। हालांकि, चीन ने इसका आधिकारिक तौर पर खंडन किया है। उसका दावा है कि यह परीक्षण एक मिसाइल नहीं बल्कि अंतरिक्ष यान था। बावजूद इसके चीन के इस परीक्षण को लेकर दुनियाभर में एक बहस चल रही है। आखिर चीन के इस परीक्षण से अमेरिका क्यों डरा हुआ है। क्या है इसकी खासियत। इस परीक्षण को अमेरिका किस नजरिए से देखता है। सवाल यह है कि चीन का हाइपरसोनिक परीक्षण क्या हथियारों की नई रेस की शुरुआत है ? 1- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि अमेरिका इसे भविष्य की एक बड़ी चुनौती के रूप में देखता है। दरअसल, हाइपरसोनिक मिसाइल की मारक क्षमता और उसकी खासियत से अमेरिका भयभीत है। यह मिसाइल आवाज की गति से पांच गुना तेज अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती है। हाइपरसोनिक मिसाइल अत्याधुनिक मिसाइल तकनीक है। यह मिसाइल इतनी तेजी से लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं कि एंटी मिसाइल सिस्टम इनका टोह लगाने में अक्षम होती हैं। एंटी मिसाइल सिस्टम इन्हें ट्रैक करके नष्ट नहीं कर पाते। 2- उन्होंने कहा कि बैलिस्टिक मिसाइल भी हाइपरसोनिक गति से चलती है, लेकिन जब उसे एक जगह से छोड़ा जाता है तो उसका पता आसानी से चल जाता है कि वह कहां गिरेगी। इन मिसाइलों को ट्रैक करना भी आसान होता है। इसके साथ ही छोड़े जाने के बाद इन मिसाइलों की दिशा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। हाइपरसोनिक मिसाइल का दिशा परिवर्तन संभव है। 3- यह मिसाइल वायुमंडल में हाइपरसोनिक स्पीड से ग्लाइड करती हैं और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं। हाइपरसोनिक मिसाइल की खासियत यह है कि यह बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह आर्क और प्राजेक्टाइल नहीं बनाती हैं, इस वजह से इनके लक्ष्य का पता लगाना मुश्किल होता है। इसके चलते ये मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली की पकड़ में नहीं आती। 4- हाइपरसोनिक मिसाइल को मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली की मदद से रोक पाना लगभग नामुमकिन है। इतना ही नहीं यह मिसाइल राडार की पकड़ में भी नहीं आती। इससे इन मिसाइलों के लक्ष्य को लेकर एक भ्रम की स्थिति पैदा होती है। गेम चेंजर है हाइपरसोनिक मिसाइल चीन ने पिछले दिनों परमाणु मिसाइल से लैस एक हाइपरसोनिक मिलाइल का परीक्षण किया है। कई लोग इसे चीन की एक बड़ी उपलब्धि और हथियारों के क्षेत्र का गेम-चेंजर मान रहे हैं। इससे अमेरिका की चिंता बढ़ गई है। चीनी सेना ने पिछले कुछ समय में दो बार ऐसे राकेट लांच किए हैं, जिन्होंने पूरी धरती का चक्कर काटने के बाद अपने लक्ष्य को निशाना बनाया। हालांकि, चीन ने अमेरिकी चिंता को गलत ठहराया है। उसने कहा कि ये पुराने अंतरिक्ष यान को फिर से इस्तेमाल करने से जुड़ा टेस्ट था। बता दें कि अमेरिका, रूस और चीन एक लंबे समय से हाइपरसोनिक हथियार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें एक ग्लाइड व्हीकल को बनाया जाना भी शामिल है। इसे अंतरिक्ष में एक राकेट के साथ छोड़ा जाता है। इसके बाद वो पृथ्वी का चक्कर लगाते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है। क्या है अमेरिका की चिंता अमेरिका और चीन के बढ़ते तनाव के बीच ड्रैगन का यह परीक्षण वाशिंग्टन के लिए चिंता का विषय है। अमेरिका को इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि चीन इस तकनीक को विकसित कर लेगा। चीन ने पिछले दो दशकों में अपने मिसाइल सिस्टम से लेकर सैन्य साजो-समान विकसित करने पर जोर दिया है। ऐसे में यह अमेरिका के लिए हैरान करने वाली बात है। इस तकनीक के बाद चीन और अमेरिका के बीच बराबरी का रिश्ता बन गया है। परमाणु हथियारों से लैस हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल अमेरिकी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को चकमा देने में चीन की मदद कर सकता है। कुछ विशेषज्ञ इसे भविष्य के लिए एक चेतावनी के रूप में देख रहे हैं। एक बार फिर दुनिया के लिए खतरे की घंटी अब से 60 वर्ष पूर्व विश्व इतिहास में ऐसा समय आया था, जब अमेरिका के प्रभुत्व को रूस ने चुनौती दी थी। इसे क्यूबा संकट के नाम से जाना जाता है। यही वह वक्त था जब पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए थे। आखिरकार दोनों देशों की ओर से रिश्तों में तनाव कम करने की कोशिश की गई। दोनों देशों के बीच तमाम संधियां की गईं, जिससे परमाणु युद्ध के खतरे को टाला जा सके। इन संधियों के चलते परमाणु युद्ध के संकट को रोका जा सका था। खास बात यह है कि क्यूबा मिसाइल संकट के बाद दुनिया को यह समझ में आ गया कि परमाणु हथियार अगर एक देश चलाएगा तो दूसरा भी चला सकता है। इससे दोनों देशों की तबाही हो सकती है।
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