नई दिल्ली, । पाकिस्तान को अपने मित्र तालिबान की मदद करना बेहद महंगा पड़ सकता है। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अमेरिका आतंकवाद पर सबसे बड़े प्रहार की तैयारी में जुट गया
ै। अमेरिकी सीनेट के 22 सांसदों ने तालिबान और आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए एक बिल पेश किया है। इस बिल में तालिबान से ज्यादा पाकिस्तान को घेरने की रणनीति तैयार की गई है। अगर यह बिल पास हो जाता है तो पाकिस्तान पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा ? क्या सच में पाकिस्तान पाई-पाई के लिए तरस जाएगा ? इस बिल के क्या मायने हैं ? बिल से काननू बनने के क्या प्रावधान हैं ? आइए जानते हैं पर विशषज्ञों की राय। 1- पाकिस्तान की इमरान सरकार पर गुपचुप तरीके से तालिबान लड़ाकों को हथियार मुहैया कराने और सैन्य प्रशिक्षण देने का गंभीर आरोप है। 2- तालिबान की मदद को लेकर पाकिस्तान पर अमेरिका और दुनिया से झूठ बोलने का आरोप। इमरान सरकार पर अमेरिका से छिपाकर तालिबान लड़ाकों को अपने देश में संरक्षण देने का आरोप। 3- पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सैनिकों और उनकी गतिविधियों की जानकारी तालिबान तक पहुंचाने का आरोप। 4- यह भी आरोप है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान सरकार के गठन में आइएसआइ की अहम भूमिका रही। 5- अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद पाकिस्तान की सेना पर यह आरोप है कि उसने पंजशीर घाटी में गुप्त तरीके से तालिबान लड़ाकों का साथ दिया। प्रतिबंधों की दहलीज पर खड़ा अमेरिका प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि पाकिस्तान के खिलाफ अभी यह बिल सीनेट में पेश किया गया है। अब सीनेट में इस बिल पर बहस होगी। उन्होंने कहा कि इस बिल को तैयार करने में कई संसदीय समितियों ने मदद की है। अब अमेरिकी रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और अमेरिका की खुफिया एजेंसियां इस पर जानकारी मुहैया कराएंगी। उच्च स्तर पर विचार विमर्श के बाद यह बिल को अंतिम रूप दिया जाएगा। अगर सीनेट में यह बिल पास हो गया तो यह बिल अमेरिकी राष्ट्रपति के पास जाएगा। राष्ट्रपति बाइडन की मोहर लगने के बाद यह कानून का रूप ग्रहण करेगा। उन्होंने कहा कि अगर यह बिल पास हो गया तो बाइडन प्रशासन पर पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाने का दबाव बनेगा। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा हआ तो यह चौथी बार होगा, जब पाक अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करेगा। इसके पूर्व पाकिस्तान पर वर्ष 1965,1971 और 1998 में भी प्रतिबंध लग चुका है। उन्होंने कहा कि हालांकि, उस वक्त ये प्रतिबंध इतने कठोर नहीं थे। अमेरिका ने अन्य प्रावधानों के जरिए पाक को लगातार मदद पहुंचाई थी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के क्रियाकलाप से डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन दोनों ही बेहद नाराज है और दोनों पार्टियों का नजरिया भी एक है। इसलिए इस बिल को पास होने में कोई बड़ी दिक्कत नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि देखा जाए तो पाकिस्तान को लेकर ट्रपं प्रशासन से ज्यादा बाइडन प्रशासन सख्त है। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद बाइडन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से एक बार भी बात नहीं की है, जबकि ट्रंप ने इमरान से मुलाकात की थी। बाइडन तो फोन से भी बातचीत करने को तैयार नहीं हैं। प्रो. पंत ने कहा कि पाकिस्तान की इमरान सरकार इस बिल को लेकर जरूर चिंतित होगी। अगर यह बिल पास हो गया तो यह पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी होगी। प्रो. पंत ने कहा कि अगर यह बिल पास हो गया तो अमेरिका को आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। आर्थिक मदद देने वाले तमाम संगठनों की फंडिंग रुक जाएगी। इसमें प्रमुख रूप से आइएमएफ, वर्ल्ड बैंक और एशियन डवेलपमेंट बैंक पाकिस्तान को आर्थिक मदद और कर्ज देना बंद कर देंगे। इसका सीधा असर तंग पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ यह बिल अमेरिकी एम्बार्गो एक्ट 1807 के उसका एक्सटेंशन है। हम पर आर्म्स डील, टेक्नोलाजी, ट्रेड और एक्सपोर्ट से जुड़ी सख्त पाबंदियां लग सकती है। यूरोपीय देशों की तिरछी नजर अमेरिका के इस कदम के बाद यूरोपीय देशों ने भी पाकिस्तान के खिलाफ कदम उठा सकते है। अफगानिस्तान में पाकिस्तान की घोखेबाजी को लेकर यूरोपीय यूनियन पाक से सख्त खफा है। यूरोपीय यूनियन भी तालिबान और अफगानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपना सकता है। पाकिस्तान को यह भय सता रहा है कि अगर यूरापीय यूनियन में उसका स्पेशल स्टेटस का दर्जा छिन जाता है तो उसे एक बड़े आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा। दरअसल, अगर पाकिस्तान का यह दर्जा समाप्त हुआ तो यूरोपीय यूनियन से मिलने वाली आर्थिक और टैक्स सुविधाएं भी समाप्त हो जाएंगी। इसका असर पाक की आर्थिक व्यवस्था पर पड़ेगा। खासकर तब जब पाकिस्तान के कुल निर्यात का 45 फीसद यूरोपीय यूनियन को जाता है। अगर इसमें अमेरिकी हिस्सेदारी को भी जोड़ दिया जाए तो यह 70 फीसद तक पहुंच जाएगा।
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