नई दिल्ली,आज अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस है। यह हर साल 18 दिवस को मनाया जाता है। इसे पहली बार साल 2020 में मनाया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को एक समान वेतन के लिए लोगों को जागरु
क करना है। दुनियाभर के सभी देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन दिया जाता है। कई रिपोर्टों में अनुपात को विस्तार से बताया गया है। भारत में भी समान वेतन में अनुपात देखा जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो वर्तमान समय में भी लोगों के जागरुक होने के बावजूद वेतन अनुपात को एक समान करने में कई दशक लग जाएंगे। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।। मनु स्मृति के श्लोक भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में पूरी तरह लागू नहीं हो पाया है। इसका अर्थ यह है कि जहां नारी की पूजा की जाती है। वहां, देवता निवास करते हैं। देश में नारी को सम्मान तो मिला है, लेकिन समान हक नहीं मिल पाया है। इसका प्रमाण वेतन अनुपात है। वर्तमान समय में भी नारी को उनकी प्रतिभा के हिसाब से वेतन नहीं दिया जाता है। इस विषय पर गंभीरता से विचार करने के साथ ही आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है। आइए, अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस के बारे में विस्तार से जानते हैं- अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस का इतिहास संयुक्त राष्ट्र संघ ने लिंग वेतन अंतर के मद्देनजर नवंबर 2019 में एक प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य लिंग वेतन अंतर को समाप्त करना है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनियाभर के सभी देशों के वेतन अनुपात पर संज्ञान लेकर सभा में 18 सितंबर को समान वेतन दिवस मनाने का प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। वहीं, साल 2020 में पहली बार 18 सितंबर को पहली बार अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस मनाया गया। अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस का महत्व जैसा कि आप जानते हैं कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को कमतर आंका जाता है। हालांकि, आज की तारीख में महिलाएं किसी से कम नहीं है। हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का परचम फहराया है। इसके लिए न केवल महिला, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लोगों को एक सामान अधिकार और एक समान वेतन मिलना चाहिए। इससे समस्त समाज का कल्याण होगा। आम लोगों को भी जागरुक होने की जरूरत है। इससे समाज में व्याप्त अंतर कम होगा।
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