पौराणिक मान्यता के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य षष्ठी या लोलार्क षष्ठी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन वाराणसी में स्थित लोलार्क कुण्ड या सूर्य कुण्ड में स्नान की प
ंपरा है। मान्यात है कि इस दिन श्रद्धालुगण संतान प्राप्ति और रोगों से मुक्ति के लिए लोलार्क कुण्ड में स्नान करते हैं। इस साल लोलार्क षष्ठी आज, 12 सितंबर दिन रविवार को पड़ रही है। रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित होने के कारण इस वर्ष की लोलार्क या सूर्य षष्ठी का विशेष महत्व है। पौराणकि कथा के अनुसार सूर्य देव ने विद्युन्माली नाम के शिव भक्त असुर का वध कर दिया था। इससे क्रोधित हो कर भगवान शिव ने सूर्य देव को मारने के लिए अपना त्रिशूल हाथ में उठा लिया। शिव जी के क्रोध से बचते हुए सूर्य देव काशी में आकर रूकेथे। माना जाता है कि यहां पर उनके रथ का एक पहिया गिर गया था,इस कारण इस स्थान का नाम लोलार्क पड़ गया। काशी में भगवान शिव की शरण में पहुंच कर सूर्य देव को अभयदान मिला। तब से मान्यता है कि काशी के इस सूर्य कुण्ड या लोलार्क कुण्ड में स्नान करने से भक्तों को सभी रोग और दोषों से मुक्ति मिलती है। निःसंतान दंपति लोलार्क षष्ठी पर इस कुण्ड में स्नान करके संतान प्राप्ति का सुख प्राप्त करते हैं। लोलार्क षष्ठी पर स्नान का विधान भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि लोलार्क षष्ठी के नाम से जानी जाती है। मान्याता है कि इस दिन काशी के लोलार्क कुण्ड में सूर्य की किरणें इस प्रकार से पड़ती हैं कि इस कुण्ड़ का जल विशेष फलदायी हो जाता है। इस दिन लोलार्क कुण्ड में स्नान और दान का विशेष महत्व है। निःसंतान दंपत्ति को इस दिन कुण्ड में स्नान करके अपने कपड़े यहां छोड़ देने चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य चढ़ा कर भगवान सूर्य से संतान प्राप्ति की कामना करें। ऐसा करने से उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
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