नई दिल्ली, । जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय सलाहकार संस्था प्राइस वाटरहाउसकूपर्स (पीडब्ल्यूसी) के अनुसार 2035 तक दुनिया के एक तिहाई रोजगार आटोमेशन, एआइ और नई तकनीक की भेंट चढ़ जाएंगे। इनमें सर्वाधिक
ऐसी नौकरियां होगीं जिन्हें अकुशल या अर्धकुशल लोग करते हैं। नौकरियों पर खतरे के इस ट्रेंड की शुरुआत हो चुकी है। हम भविष्य के उस चरम की कल्पना कर रहे हैं जब लोगों की नौकरियां व्यापक पैमाने पर खत्म होने लगेंगी। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए दुनिया के साथ यहां भी आटोमेशन को प्रोत्साहन देना ही होगा। लिहाजा नौकरियां यहां भी कम होंगी। देश की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा हिस्सा भारतवंशियों द्वारा भेजे जाने वाले धन का होता है। इस पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। खैर.स्याह कह लीजिए या सुनहरी, लेकिन भविष्य की जब ये तस्वीर अभी से दिखाई देने लगी है तो देश के कई राज्यों में दो बच्चा नीति को लेकर उठाए जा रहे कदमों का जो लोग विरोध कर रहे हैं, वह बेमानी सा लगने लगता है। दो बच्चा नीति पर जनसांख्यिकीविद बंटे हुए हैं। कुछ इसे अच्छा और देशहित में बताते हैं तो कुछ इसे वक्त से पहले का कदम बताने लगते हैं। कुछ लोग इसे कानून बनाकर लागू न करने की जगह लोगों की चेतना पर छोड़ देने की भी बात करते हैं। ऐसे लोगों को आईना दिखाने वाले भी पीछे नहीं। वे इससे पैदा हो रहे सामाजिक विद्रूप की तस्वीर पेश करते हैं कि एक जागरूक तबका तो स्वचेतना से दो बच्चा नीति का पालन करता है लेकिन एक खास मत के लोग इससे बेपरवाह हैं, जिससे कई क्षेत्रों में सामाजिक असंतुलन पैदा हो चुका है। तमाम तर्को और नजरिये को अगर देखें तो लगता है कि जनसंख्या का नियंत्रण और नियोजन दोनों अपरिहार्य हो चला है। जिस आबादी के लिए हमारे पास भौतिक और प्राकृतिक संसाधन मौजूद हों, हमें वहीं संख्या नियत करनी चाहिए और वर्तमान आबादी का नियोजन यानी उन्हें अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल मुहैया कराकर राष्ट्रनिर्माण में उनकी भूमिका तय किए जाने की जरूरत है। ऐसे में देश की जनसंख्या के नियंत्रण और नियोजन की जरूरत की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है। पुराना है इतिहास : कोरोना काल में कई लोगों के रोजगार छिने हैं। कुछ लोगों को समय के साथ रोजगार मिल भी जाएगा। लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी होंगे, जिन्हें शायद वह रोजगार कभी नहीं मिल पाएगा, जिसमें वे काम कर रहे थे। इसकी वजह है आटोमेशन। वैसे तो दुनिया आटोमेशन की ओर बहुत समय से बढ़ रही है, लेकिन कोरोना काल में यह गति बढ़ गई है। कई जगहों पर उम्मीद से पहले मशीनों ने लोगों का काम संभाल लिया है। 16वीं सदी में शुरुआत : आटोमेशन का इतिहास पांच सदी पुराना है। 1589 में पहली बार विलियम ली नाम के पादरी ने लंबे मोजे (स्टाकिंग) को तैयार करने का मशीनी तरीका ईजाद किया था। हालांकि महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने उनकी इस ईजाद को पेटेंट देने के इन्कार कर दिया था। उनका मानना था कि इससे मोजे बनाने वाले पारंपरिक कारीगरों के हाथ से रोजगार छिन जाएगा। विलियम ली की यह मशीन बहुत प्रभावी तो नहीं रही, लेकिन समय के साथ कई टेक्सटाइल मशीनों के बनने की राह जरूरी खुली। कार के पहियों पर दौड़ा आटोमेशन : 20वीं सदी के आखिर तक कारों के निर्माण में रोबोट का इस्तेमाल होने लगा था। शुरुआत में कुछ सामान्य और बार-बार किए जाने वाले काम के लिए इनका इस्तेमाल हुआ। इनसे गुणवत्ता भी सुधरी और उत्पादन की गति भी बढ़ी। 1979 में फिएट ने बहुचर्चित विज्ञापन जारी किया था, जिसकी टैगलाइन थी ‘हैंड बिल्ट बाई रोबोट्स’ (रोबोट के हाथों तैयार)। कार निर्माण में रोबोट ने सबसे पहले असेंबली लाइन के काम जैसे वेल्डिंग और स्प्रे पेंटिंग में इंसानों की जगह ली थी। टेक्नोलाजी बढ़ने के साथ-साथ रोबोट का इस्तेमाल कई जटिल प्रक्रियाओं में भी होने लगा है। मशीनों के साथ आगे बढ़ेगा भविष्य : वल्र्ड इकोनामिक फोरम के क्लास श्वाब का कहना है, ‘कोरोना महामारी ने हमें तेजी से एक और औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ा दिया है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि डिजिटल, फिजिकल और बायोलाजिकल क्षेत्र में नई टेक्नोलाजी मनुष्यों को केंद्र में रखकर आगे बढ़े। टेक्नोलाजी से संपूर्ण समाज का भला हो और सभी तक पहुंच सुनिश्चित हो।’ कहां-कहां बढ़े मशीनों के कदम : टेक्नोलाजी के उभार ने लगभग हर क्षेत्र में आटोमेशन को बढ़ावा दिया है। बहुत से काम जिनके लिए पहले अलग-अलग शिफ्ट में कई-कई लोगों की जरूरत होती थी, अब वहां एक मशीन दिन-रात उनका काम करती रह सकती है। होम आटोमेशन : साफ्टवेयर और टेक्नोलाजी की मदद से घर के कई उपकरणों पर एक कमांड के जरिये नियंत्रण करना संभव हो गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने इसमें बहुत मदद की है। आफिस आटोमेशन : विभिन्न आफिस में डाटा कलेक्शन से लेकर कई छोटे-बड़े काम आज मशीनों से होने लगे हैं। आज सैकड़ों लोगों का डाटा एक कमांड पर नियंत्रित किया जा सकता है। कस्टमर केयर : बैंकिंग, टेलीकाम से लेकर विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियां कस्टमर केयर सेवाओं में भी आटोमेशन का इस्तेमाल करने लगी हैं। कई सामान्य सवालों के जवाब अब आटोमेशन के माध्यम से दिए जाने लगे हैं। कस्टमर केयर अधिकारी से बात का विकल्प सबसे आखिरी में दिया जाने लगा है। निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में आटोमेशन ने कई लोगों की जगह ले ली है। कई अन्य क्षेत्रों में भी आटोमेशन: चिकित्सा, परिवहन से लेकर मैन्यूफैक्चरिंग एवं कंस्ट्रक्शन तक कई अन्य क्षेत्रों में भी मशीनों के प्रयोग ने इंसानों की जगह ली है। 19वीं सदी में टेक्सटाइल की दुनिया में आईं मशीनें : विलियम ली के तीन सदी बाद 19वीं सदी में टेक्सटाइल की दुनिया में मशीनों की दखल बढ़ी। औद्योगिक क्रांति के बाद ग्रामीण इलाकों से लोग तेजी से बढ़ते शहरों की ओर पहुंचने लगे थे। भाप से चलने वाली मशीनों से हाथ के मुकाबले उत्पादन कई गुना तेजी से होता था। खेतों में काम करने वाले मजदूरों के सामने भी मशीनीकरण से चुनौती आई। बढ़ती आबादी के लिए ज्यादा अनाज की जरूरत थी। इसलिए खेती में बीज डालने से लेकर फसल कटाई तक मशीनों का उपयोग बढ़ा। छिड़ गए थे दंगे: मशीनीकरण को लेकर कामकाजी आबादी की प्रतिक्रिया बहुत सकारात्मक नहीं थी। ब्रिटेन में बढ़ते आटोमेशन के खिलाफ बड़ा आंदोलन हुआ। लोगों ने दंगे किए, मशीनें तोड़ीं और कई उद्योग जला दिए।
Comments