नई दिल्ली,। पिछले महीने की 27 तारीख को शिक्षा मंत्रालय ने पूर्व आइएएस अधिकारी और राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के कुलाधिपति एन गोपालस्वामी की अध्यक्षता में 11 सदस्यों की एक समिति क
गठन किया। इस समिति का गठन मैसूर में भारतीय भाषा विश्वविद्यालय और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन और इंटरप्रिटेशन की स्थापना की कार्ययोजना तैयार करना है। इस समिति से अपेक्षा की गई है कि वह भारतीय भाषा विश्वविद्यालय की स्थापना व उसके अंतर्गत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन और इंटरप्रिटेशन को स्वायत्त संस्था के तौर पर स्थापित करने के नियम भी तय करे। इसके अलावा समिति भारतीय भाषा विश्वविद्यालय और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन और इंटरप्रिटेशन के उद्देश्य व लक्ष्य भी तय करे। यह भी कहा गया है कि मैसूर के भारतीय भाषा संस्थान के उद्देश्यों को भी इसमें शामिल करे। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही गई है कि इस समिति को मैसूर स्थित भारतीय भाषा संस्थान की जमीन, इमारत, मानव संसाधन का आकलन भी करना है, ताकि प्रस्तावित भारतीय भाषा विश्वविद्यालय की स्थापना में उसका उपयोग किया जा सके। समिति यह भी सुझाएगी कि भारतीय भाषा संस्थान को भारतीय भाषा विश्वविद्यालय में तब्दील करने के लिए कितना वित्तीय संसाधन लगेगा। इस समिति के गठन से एक बात तो साफ हो गई है कि शिक्षा मंत्रालय मैसूर स्थित भारतीय भाषा संस्थान को भारतीय भाषा विश्वविद्यालय में बदलने का निर्णय कर चुकी है। उसके उद्देश्यों में संशोधन करके या दायरा विस्तृत करके। दरअसल भारतीय भाषा विश्वविद्यालय का प्रस्ताव ढाई साल पुराना है। भारतीयता में विश्वास रखनेवाले संगठनों व व्यक्तियों ने कई दौर की बैठकों के बाद यह तय किया था कि भारत में हिंदी और भारतीय भाषाओं का एक विश्वविद्यालय बनाया जाए और इसका प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा जाए। यह प्रस्ताव भारतीय संविधान की मूल भावनाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 343 से लेकर 351 तक भाषा के बारे में विस्तार से चर्चा है। जब हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विश्वविद्यालय का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा था तो अनुच्छेद 343 व 351 का विशेष ध्यान रखा गया था। अनुच्छेद 343 साफ तौर पर कहता है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश दिए गए हैं। इसमें कहा गया है, संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिíदष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए व जहां आवश्यक और वांछनीय हो, वहां उसके शब्द भंडार के लिए मुख्यत: संस्कृत से और गौणत:
Comments