तावडू 19 जून (दिनेश कुमार): मेवात क्षेत्र गौ वंश तस्करी से अछूता नहीं है। इस तरह के कृत्य होना आम बात बन चुकी है। यूं तो राज्य सरकार ने गौ वध निषेध कानून भी बनाया है ताकि गौ वंश की रक्षा की जा सके। ल
किन इस का कोई असर मेवात में नहीं दिखाई दे रहा है। जागरूकता का अभाव : क्षेत्र के गणमान्य लोगों का मानना है कि लोगों को शिक्षित व जागरूक करने की आवश्यकता है। ग्रामीण आंचल में घर-घर में दूध देने वाला पशु मिलेगा। जोकि ग्रामीण आंचल के लोगों की अर्थिक ताकत के रूप में काम कर रहा है। सरकार द्वारा बनाए गए कानून की पालना हो इसको लेकर गौ तस्करों पर पुलिस प्रशासन सख्ती से पेश आ रहा है। बदलाव की आवश्यकता : गौधन को आवारा छोडे जाने के पीछे बडा कारण यह भी है कि बैलों से हल लगाने का काम बिल्कुल सिमट चुका है। खेती की जमीन पर ईमारतें खडी हो गई हैं। क्षेत्र के बचे हुए खेतों में बैलों की जगह ट्रक्टर ने ले ली है। बदलती मानसिकता : मेवात में गाय, बैलों व पशुओ की तस्करी का बडा कारण लोगों खासकर किसानों की गलत मानसिकता है । इनमें से बहुत से लोग दूध देना छोड चुकी गायों को, बछडे व बैल को बेकार व बोझ समझने लगते हैं। सरकारी मदद : प्रदेश सरकार गौ सदनों की आत्मनिर्भता के लिए कदम उठा रही है। निष्काम भाव से कार्य करने वाले संगठनों को गौ सदन के लिए सुविधाएं प्रदान कर रही है। एनिमल वैलफ ेयर बोर्ड आफ इंडिया भी गौ सदन के लिए वित्तीय मदद देता है और प्रदर्शन को देखकर आगे भी मदद जारी रखता है।
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