नई दिल्ली, । Black Fungus & Mask: भारत पिछले कुछ महीनों से कोरोना वायरस की दूसरी ख़तरनाक लहर से जूझ रहा है। इसी बीच कोरोना के साथ ब्लैक और वाइट फंगस ने भी देश के कई राज्यों में दस्तक दी है। ऐसा माना जा रहा है
ि ये फंगल इंफेक्शन कोविड के मरीज़ों को ही हो रहा, खासतौर पर जिन्हें स्टेरॉयड्स दिए गए या जिन्हें डायबिटीज़ है। राजस्थान सरकार ने तो ब्लैक फंगस को एपिडेमेक घोषित कर दिया है। क्या है ब्लैक फंगस इंफेक्शन? ब्लैक फंगल संक्रमण या कहें म्यूकोर-मायकोसिस, एक दुर्लभ फंगल इंफेक्शन है, जो एक म्यूकोर्मिसेट्स के रूप में जाने वाले मोल्डों के समूह के कारण होता है। ये संक्रमण अक्सर कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को अपना शिकार बनाता है। खासतौर पर डायबिटीज़ से पीड़ित और गंभीर कोविड-19 संक्रमण के इलाज के लिए स्टेरॉयड का अत्यधिक उपयोग होने पर। हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि ब्लैक फंगस इंफेक्शन उन लोगों में भी देखा गया जिन्हें कोविड-19 संक्रमण नहीं हुआ। मास्क से भी हो सकता है ब्लैक फंगस कोरोना वायरस से बचने के लिए सभी का मास्क पहनना सबसे ज़रूरी है, लेकिन साथ ही मास्क को साफ और सेनिटाइज़्ड रखना भी महत्वपूर्ण है। कुछ लोग एक ही मास्क को कई दिनों तक लगाए रहते हैं। अब यह बात सामने आई है कि 2-3 हफ्तों तक एक ही मास्क के प्रयोग से ब्लैक फंगस हो सकता है। माइक्रोबायोलोजिस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक बोलने और सांस लेने से मास्क में एरोसोल जमा हो जाते हैं। 25 से 35 डिग्री सेल्सियस गर्मी और नमी के बीच फंगस पनप सकता है। वहीं, कई मरीज कपड़े का मास्क पहनते हैं, जिसमें फंगस का ख़तरा ज़्यादा रहता है। हर छह घंटे में कोविड-19 मरीज़ का मास्क बदलना चाहिए, लेकिन कई मरीज़ एक मास्क कई दिनों तक पहने रहते हैं। ऐसे में वह फंगस का इंफेक्शन भी बन सकता है। एंटीसेप्टिक से धोने व धूप में रखने से फंगस मर जाता हैं। कई मेडिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर गंदे मास्क का इस्तेमाल और कम हवादार कमरों में रहा जाए तो ब्लैक फंगल इंफेक्शन हो सकता है। कई प्रमुख अस्पतालों के डॉक्टरों ने बताया कि जो ब्लैक फंगस के मरीज़ भर्ती हुए हैं, उनमें साधारण रोगी और कोरोना रोगी दोनों हैं। जांच में पता चला कि वे बिना धोए लंबे समय तक एक ही मास्क पहने रहते थे, जिसकी वजह से उन्हें भी ये फंगल इंफेक्शन का शिकार होना पड़ा।
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