नई दिल्ली तजाकिस्तान की राजधानी दुशांबे कई दिनों से चर्चा में है। इसकी वजह है यहां पर हो रही हर्ट ऑफ एशिया की 9वीं इस्तांबुल प्रोसेस कांफ्रेंस। इस बैठक में दुनिया के 50 देशों के विदेश मंत्र
हिस्सा ले रहे हैं। भारत की तरफ से इसमें हिस्सा लेने विदेश मंत्री एस जयशंकर सोमवार को दुशांबे पहुंचे थे। वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी इस बैठक में शिरकत कर रहे हैं। इस बैठक में शामिल देशों के बीच यूं तो कई मुद्दों पर बातचीत होनी है, लेकिन सभी की दिलचस्पी इस बात को लेकर है कि क्या भारत और पाकिसतान के विदेश मंत्री आपस में द्विपक्षीय मसलों पर औपचारिक या अनौपचारिक बातचीत करेंगे। आपको यहां पर बता दें कि बीते कुछ वर्षों में दोनों देशों के संबंध काफी निचले स्तर पर जााने के बाद हाल के कुछ दिनों में बदलते दिखाई दे रहे हैं। काफी लंबे समय के बाद दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच हुई बातचीत और सीमा पर संघर्ष विराम के फैसले से दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार की नई आस जगी है। इसके बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को दो बार पत्र लिखा जिससे ये उम्मीद बढ़ी कि दोनों देशों के बीच संबंध अब सुधरेंगे। अब जबकि काफी लंबे समय के बाद भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्री आमने सामने होंगे ये सवाल उठना जरूरी हो जाता है कि आगे क्या होगा। सवाल ये भी है कि दोनों के बीच क्या सिर्फ हालचाल जानने भर की मुलाकात होगी या इससे आगे बढ़कर ये दोनों कुछ मुद्दों पर बातचीत भी करेंगे। दरअसल, ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि दुशांबे में बैठक से पहले विदेश मंत्री जयशंकर ने ईरान के अपने समकक्ष मंत्री जे जरीफ से चाहबार पोर्ट समेत विभिन्न मसलों पर बातचीत की है। इसी तरह से हर्ट ऑफ एशिया की बैठक से इतर उन्होंने तुर्की के विदेश मंत्री से भी बातचीत की। इस दौरान अफगानिस्तान में शांत प्रक्रिया समेत दोनों देशों के संबंधों को मजबूत बनाने को लेकर भी बातचीत हुई। इसी तरहसे उन्होंने अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी से भी वहां के भविष्य और शांति प्रक्रिया को लेकर बातचीत की। उन्होंने शांति प्रक्रिया में भारत को शामिल करने पर खुशी का इजहार भी किया। आपको बता दें किअफगान राष्ट्रपति भी फिलहाल दुशांबे में ही मौजूद हैं। इन सभी को लेकर जयशंकर ने ट्वीट कर जानकारी दी है। इन सभी बैठकों के बाद ऐसी संभावना जताई जा रही है कि एस जयशंकर और कुरैशी के बीच भी इसी तरह से बातचीत हो सकती है। हालांकि जयशंकर ने खुद इस तरह की किसी बैठक की संभावना से इनकार किया है। वहीं कुरैशी ने भी कहा है कि इस तरह की किसी बैठक से इनकार किया है। इसके बाद भी इस बैठक को लेकर कयासबाजी का दौर जारी है। आपको बता दें कि आखिरी बार दोनों देशों के विदेश मंत्री मई 2019 में बिश्केक में शंघाई कोंंपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की बैठक से इतर मिले थे। उस वक्त तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कुरैशी से मुलाकात की थी। जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एचएस प्रभाकर का मानना है कि इस बैठक में दोनों के बीच शिष्टाचार मुलाकात तो जरूर होगी। ये इसलिए भी हो सकती है क्योंकि बीते कुछ दिनों में दोनों देशों के बीच रिश्तों पर जमी जो धूल है वो हटती हुई दिखाई दे रही है। इसलिए यदि ऐसा नहीं हुआ तो अंतरराष्ट्रीय जगत में ये संदेश जाएगा कि दोनों देश संबंधों सुधारने को लेकर प्रयासरत नहीं है। जबकि भारत की तरफ से हमेशा ही यही कोशिश रही है कि पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर होने ही चाहिए। हालांकि प्रभाकर ये भी मानते हैं कि शिष्टाचार मुलाकात से आगे कुछ कयास लगाने अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन ये मुलाकात भविष्य की संभावनाओं को जरूर मजबूती देगी। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच काफी लंबे समय के बाद बातचीत हो रही है इसलिए अच्छा यही है कि ज्यादा उम्मीद न रखी जाए। बैठक से पहले जयशंकर दुशांबे में भारत के बोर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन द्वारा बनाए जा रहे आठ लेन के हाईवे की प्रोग्रेस देखने भी गए। उनका कहना है कि इस हाईवे के बन जाने के बाद दुशंबे को जाम जैसी समस्या से आजादी मिल जाएगी। ये प्रोजेक्ट कहीं न कहीं तजाकिस्तान और भारत के बीच बेहतर संबंधों को रेखांकित करता है। आपको बता दें कि हर्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रोसेस की शुरुआत 2 नवंबर 2011 को हुई थी। इसका मकसद अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता कायम करना है। फरवरी 2020 में अफगानिस्तान को लेकर तालिबान और अमेरिका के बीच शांति समझौता भी हो चुका है।
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