नई दिल्ली, । म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सेना का खूनी खेल जारी है। प्रदर्शनकारियों की आवाज को दबाने के लिए सेना उनका दमन कर रही है, बावजूद इसके देश में प्रदर्शनों का दौर जारी है। आं
सांग सू की के समर्थक बेखौफ होकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उधर, सेना के भय से म्यांमार के लोगों का पलायन भी जारी है। म्यांमार और भारत से सटे नार्थ ईस्ट स्टेट में खासकर मिजोरम में भारी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने म्यांमार की सैन्य हुकूमत पर लोकतंत्र की बहाली के लिए लगातार दबाव बनाए हुए हैं। आइए जानते हैं कि म्यांमार के पड़ोसी मुल्कों खासकर चीन, पाकिस्तान और भारत में सैन्य शासन के प्रति क्या दृष्टिकोण है ? म्यांमार में सैन्य हुकूमत के पीछे चीन का क्या स्टैंड है ? वह सैन्य शासन का विरोध क्यों नहीं कर रहा है ? पाकिस्तान, म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की घटना से क्यों चिंतित है ? म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ उसने चीन का साथ क्यों नहीं दिया ? इसके साथ यह भी जानेंगे कि म्यांमार को लेकर भारत की क्या विवशता है। उन्होंने कहा कि म्यांमार में सैन्य शासन के बाद लोकतांत्रिक देशों की तुलना चीन की प्रतिक्रिया काफी अलग थी। म्यांमार में सैन्य शासन के बहाने चीन ने लोकतांत्रिक पद्धति पर ही तंज कसा था। चीन के ग्लोबल टाइम्स की एक रिपोर्ट से चीनी सरकार के दृष्टिकोण का पता चलता है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि दुनिया के कुछ ही देश ऐसे हैं, जहां ताकत दिखाकर लोकतात्रिक व्यवस्था को लागू किया गया है। अखबार ने लिखा है कि छोटे देशों के पास लोकतंत्र बहाल करने की शक्ति नहीं है। छोटे मुल्क पश्चिम के लोकतांत्रिक देशों का अनुकरण करते हुए देश में लोकतंत्र बहाल करने की कोशिश करते हैं। उन्हें लोकतांत्रिक पद्धति का खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि इन मुल्कों के पास कोई राजनीतिक व्यवस्था को बहाल करने का विकल्प नहीं बचता है। प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि चीन की लोकतांत्रिक प्रणाली में कतई आस्था नहीं है। इसलिए उसने म्यांमार में कभी लोकतंत्र बहाली या आंग सांग सू की रिहाई की बात नहीं की। म्यांमार में सैन्य शासन से पाक चिंतित प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की घटना पाकिस्तान को अचरज में डालने वाली नहीं हो सकती है। पाकिस्तान में कई बार लोकतांत्रिक सरकारों को सैन्य शासन ने उखाड़ फेका है। इस वक्त पाकिस्तान में एक निर्वाचित सरकार है। इसलिए उसकी सहानुभूति लोकतांत्रिक सरकार के प्रति है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तानी अखबार द डॉन ने म्यांमार में सैन्य शासन को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी। अखबार ने कहा था कि म्यांमार में सैन्य शासन लोकतांत्रिक प्रक्रिया और मूल्यों को कमजोर करता है। पाकिस्तान ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। अखबार ने भी म्यांमार की इस राजनीतिक घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। अखबार ने आगे लिखा था कि अक्सर विकासशील देशों में सेना संवैधानिक तरीके से चुनी हुई सरकार का तख्तापलट करती है। पाकिस्तान सरकार ने आंग सांग के प्रति अपनी सहानुभूति भी प्रगट की थी। अखबार में आगे लिखा था कि आंग सांग की कई वर्षों की तपस्या और संघर्ष के बाद म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली हो सकी थी, लेकिन देश में एक बार फिर सैन्य शासन स्थापित हो गया। सेना को चाहिए कि चुनी हुई सरकार के हाथ में फिर से सत्ता सौंप दे। अखबार ने कहा म्यांमार में यदि लंबे समय तक सैन्य शासन कायम रहा तो यह भविष्य के लिए बेहद खतरनाक होगा। अखबार ने पूरी दुनिया से अपील करते हुए लिखा है कि म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए अन्य मुल्कों को आगे आना चाहिए। भारत ने दी सधी हुई प्रतिक्रिया प्रो. पंत ने कहा कि म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के प्रति भारत ने बहुत सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। भारत अपने इस नीति पर कायम है कि वह किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा, जब तक कि उस घटना का प्रभाव उसके आंतरिक मामलों पर नहीं पड़े। हालांकि, आंग सांग सू की रिहाई और म्यांमार में अपने हितों को लेकर भी उसकी चिंता कायम है। भारत की यह चिंता लाजमी है, क्यों कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। उसकी लोकतांत्रिक मूल्यों में अपार आस्था भी है। भारत, म्यांमार को लेकर दोहरी समस्या से जूझ रहा है। म्यांमार में सैना के खौफ से लोग पलायन कर रहे हैं। ऐसे में भारत पूरी घटना पर पैनी नजर बनाए हुए है। खास बात यह है कि भारत का वहां के सैन्य शासकों से भी मधुर संबंध रहे हैं। नार्थ ईस्ट के राज्यों में सक्रिय आतंकवादी गुटों को नियंत्रित करने के लिए और आतंकियों को पकड़वाने में म्यांमार की सेना भारत की काफी मदद की है। ऐसे में सेना के खिलाफ कोई नकारात्मक टिप्पणी करने भारत की दुविधा बरकरार रही। यही कारण है कि भारत सरकार ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट पर उस तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी जैसा कि अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों ने दी है। भारत ने अमेरिका या अन्य यूरोपीय देशों की तरह सैन्य शासन के खिलाफ प्रतिबंधों की बात नहीं कहीं है, लेकिन भारत म्यांमार में लोकतांत्रिक मूल्यों, नागरिकों के हितों की वकालत करता रहा है।
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